एक सच्चे धार्मिक व्यक्ति का यह नैतिक कर्तव्य बनता है कि वो महापुरूषों,संतो-महात्माओं के वचनों का पालन करे,उनके दिखाए मार्ग का अनुसारण करे,अब वो महापुरूष चाहे किसी भी धर्म,जाति,सम्प्रदाय से संबंध क्यों न रखते हों। वैसे भी सत्पुरूष धर्मों और जातियों के बंधन से परे होते हैं---- उनकी शिक्षाएं,उनके विचारों को किसी धर्म,देश या काल के बन्धन में नहीं बाँधा जा सकता,उनके विचार सब के लिए उतने ही उपयोगी हैं,जितने कि उस धर्म विशेष के मानने वाले के लिए-----हजरत मोहम्मद जितना आपके हैं,उतने ही मेरे भी हैं। अब यदि मैं "जय मोहम्मद,जय मोहम्मद" कहूँ तो क्या कोई मुझे रोक सकता हैं---हर्गिज नहीं। ये मेरी इच्छा है कि मैं अपने ईश्वर को किस रूप में ध्याता हूँ। ऎसा करने से मुझे न तो कोई कुरआन रोक सकती है,न गीता और न ही इस देश का कानून।
एक बात ओर (जैसा कि मैने पहले भी कहा है) कि किसी भी व्यक्ति के लिए महापुरूषों,सन्तों की आज्ञा,उनके वचन शिरोधार्य होने चहिए--------आप हजरत साहब और कुरआन के फरमाबर्दार हैं,होना भी चाहिए;लेकिन कुरआन में शायद ये कहीं नही लिखा होगा कि आप लोग अपने धर्म का प्रचार करने के लिए दूसरे धर्म के धर्मग्रन्थों का आश्रय लें,उनसे तुलना करें। होना तो ये चाहिए कि हम अपने धर्मग्रंथों की शिक्षाओं पर अमल करते हुए पहले स्वयं उन्हे अपने व्यवहार में सम्मिलित करें,फिर बाकी समाज को भी उससे अवगत कराया जाए ताकि समाज भी उनसे लाभान्वित हो सके। ये नहीं कि अपने धर्म को बडा दिखाने के उदेश्य से हम लोग अन्य दूसरे धर्मों से उसकी तुलना करने बैठ जाएं। अब हजरत साहब नें अपनी जिन्दगी में सैंकंडों,हजारों बार ये कहा है कि "मैं एक मामूली आदमी हूँ" तो क्या उनका हुक्म मानने के नाम पर आप लोग उन्हें मामूली आदमी ही मानने लगेंगें। चलिए हजरत तो ईश्वर के दूत थे, आपके सामने कोई उच्च पद प्राप्त या फिर कोई ऊंची शख्सियत का व्यक्ति आए और शालीनता दिखाते हुए कहे कि भई मैं तो एक नाचीज,अदना सा आदमी हूँ तो क्या आप लोग उनके व्यक्तित्व अनुसार व्यवहार न करते हुए उन्हे नाचीज और अदना इन्सान मान लेंगें?। अगर नहीं तो फिर हमें इस देश के दूसरे पैगम्बरों(श्रीराम,कृ्ष्ण,बुद्ध,नानक इत्यादि) को भी उसी दृ्ष्टि से देखना चाहिए,जिस दृ्ष्टि से हम हजरत मोहम्मद साहब को देखते हैं।

जब इस्लाम मानता है कि हर कौम और मजहब के पैगम्बर अल्लाह के ही भेजे गए पैगम्बर हैं और हिन्दू भी मानता है कि जगत की समस्त विभूतियाँ ईश्वर का अंश हैं तो इस प्रकार आपके मजहब के मुताबिक राम,कृ्ष्ण,बुद्ध,महावीर वगैरह भी अल्लाह के पैगम्बर हैं और हिन्दी धर्म के मुताबिक ईसा,मुहम्मद वगैरह "ईश्वर के अंश" हैं,बल्कि हिन्दू धर्म नें तो अपना ढाँचा ही ऎसा बना लिया है कि जो जो हिन्दूस्तान में आकर बसता जाए,वो अपनी विशेषताएं रखते हुए भी हिन्दू मजहब कहलाता जाए। हिन्दू धर्म के इस ढाँचे का फायदा उठाकर क्यों न देश के धार्मिक झगडों,विवादों,तनावों को दफनाकर आपसी प्रेम और सौहार्द का वातावरण निर्मित किया जाए.......तो फिर इस नेक काम की आज से ही शुरूआत करते हुए हम भी बोलते हैं कि "भगवान हजरत मोहम्मद की जय" और आप भी बोलिए कि "पैगम्बर रामचन्द्र जी की जय"