मुझे लग रहा है कि अब इस ब्लागजगत में मठाधीशी, अनामी-बेनामी ब्लागर, तेरा धर्म-मेरा धर्म जैसी टपोरपंथी, अन्याय, वगैरह से लडने की शक्ति बिल्कुल ही चूक गई है, तभी तो कितने दिन हो गए ऎसी कोई धमाकेदार सी किसी को गरियाती हुई कोई पोस्ट नहीं दिखाई पडी. विश्वास नहीं हो रहा कि ये वही बीते कल वाला ब्लागजगत ही है या कि हम ही गलती से किसी ओर जगह चले आए हैं. हमें भी मामला कुछ समझ में नहीं आ रहा कि आखिर बात क्या है. माहौल में ये अजीब सी खामोशी क्यूं छाई हुई है भाई. इत्ते दिन बीतने के बाद भी कहीं से ऎसी कोई पोस्ट न पढने को मिले तो इसका मतलब ये समझा जाए कि समूचा ब्लागजगत अब समझौतावादी हो गया है. क्या आप लोगों नें भी देश की जनता की तरह बिगडे हालातों से समझौता करना सीख लिया है. उस गरीब जनता की तरह, जिसके लिए कि आशा की कोई भी किरण किसी भी क्षितिज पर शेष न रह पाई है.
अरे भाई! ऎसा कैसे चलेगा.....हमें तो ये खामोशी कुछ चुभने सी लगी है. लग ही नहीं रहा कि ये वही ब्लागजगत है. भाई कम से कम मन को इतना तो अहसास होते ही रहना चाहिए कि हम हिन्दी के ब्लागर हैं.......:-)