ad

गदहा लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
गदहा लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

शुक्रवार, 3 जुलाई 2009

पीर पराई जानिए!!!!!!!!

श्रावण मास में की जाने वाली कांवड यात्रा से तो हरेक व्यक्ति भली भान्ती परिचित है। एक अलग ही पहचान और महत्व है इस यात्रा का। पाप नाशिनी गंगा और भगवान भोलेनाथ के प्रति असीम मानवीय श्रद्धा का प्रतीक है ये कांवड यात्रा।

इसी कांवड के प्रसंग में ही एक प्राचीन कथानक स्मरणीय है------एक बार संत एकनाथ जी गंगोत्री से कांवड़ लेकर, रामेश्वर की ओर पैदल यात्रा करते हुये जा रहे थे। साथ में हीं उनके कई संगी-साथी भी चल रहे थे। रास्ते में उन्हे एक ऐसे स्थान से गुजरना हुआ जहाँ कि पानी का अत्यन्त अभाव था। चलते चलते एक जगह उन्होने देखा कि बीच रास्ते में एक गदहा प्यास से व्याकुल होकर तड़प रहा है। राह चलते लोग उसे देखते और आगे निकल जाते। एकनाथ जी उस रास्ते से जाते समय यह नज़ारा देखकर शास्त्रों की, संतो की यह बात याद करने लगे कि "हर प्राणी में ईश्वर का वास है। यह देह ही देवालय है और इस देह में यह चेतन देव ही शिव है। जब गदहे के रुप में यह चेतन देव तड़प रहे हैं तो इन्हें इस हालत में छोड़कर मैं रामेश्वर कैसे जा सकता हूँ? मैं तो अपने शिव को यहीं मनाऊँगा।" ऐसा सोचकर वह हर-हर महादेव कहते हुए गंगाजल गदहे के मुँह में डालने लगे। उनके सभी संगी-साथियों और राह चलते अन्य लोगों ने भी बहुत समझाया कि अरे! क्यूँ मूर्खों वाला काम रहे हो। ये तो गदहा है। मर भी जायेगा तो क्या फर्क पड़ जाएगा ? लेकिन एकनाथ तो सच्चे संत थे। हर जीव में ईश्वर का दर्शन करते थे। और चमत्कार यह हुआ कि उसी गदहे के मुख में उन्हें साक्षात भगवान भोलेनाथ के दर्शन हो गए।

इस प्रसंग को लिखने का मेरा प्रयोजन आप सब को सिर्फ ये याद दिलाना है कि किसी का दिल दुखाकर,किसी का अपमान करके की गई भक्ति, पूजन कभी सफल नहीं हो सकती। किसी दुखी/पीड़ित की उपेक्षा करना तो एक तरह से ईश्वर का ही अपमान है। इसलिए चाहे हम मंदिरों/मस्जिदों/गुरूद्वारों में जितने मर्जी शीश झुका लें,सुबह शाम घण्टे-घडियाल बजा लें किन्तु जब तक किसी के दुख को देखकर हमारा अन्तरमन द्रवित नहीं जो जाता, हमारे ह्र्दय में दया का भाव जागृ्त नहीं हो जाता तो हमारा भजन-पूजन, दान-पुण्य करना सब व्यर्थ है।
एक निवेदन:- यदि अपने आसपास आपको कोई रोगी,लाचार,गरीब व्यक्ति मिले तो उसकी यथासंभव मदद करने की चेष्टा करें ओर जो बेचारे बेजुबान पशु-पक्षी भूख प्यास और गर्मी से व्याकुल होकर प्राण त्यागने को विवश हो रहे हैं, उनके लिए भी हमारा कुछ कर्तव्य बनता है।यदि हम सिर्फ इतना ही करने में सक्षम हो सकें तो यही हमारे लिए ईश्वर की सबसे बडी पूजा होगी।

जय भोले नाथ............
www.hamarivani.com
रफ़्तार