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शुक्रवार, 11 जून 2010

हे पंगेच्छु ब्लागर !!!

हे पंगेच्छु ब्लागर!
तुम्हारे अंतस का ब्लागर कीट
नित्य नए पंगें का सृ्जन करता है
और करता है रूप बदल
नित्य नईं बकवास.....

नैट पर आते ही
अपने कलुषित मन
रूपी गधे पर सवार हो
प्रस्थित हो जाते हो तुम
किसी नए पंगें की खोज में....

और पंगों के नित्य नवीन
प्रयोग करके भी तुम
क्या हासिल कर पाते हो ?
महज चन्द टिप्पणियाँ!
और कुछ समानधर्मी
ब्लागरों की वाह! वाह!

किन्तु सच बताना.....
क्या तुम इन तुच्छ प्राप्तियों को
अपनी प्रयोगधर्मिता
एवं अनथक श्रम का
सही मूल्यांकन मानते हो ?

*बस यूँ ही,कविता/फविता जैसा कुछ :)

रविवार, 16 मई 2010

इस सर्वसुलभ माध्यम का उपयोग निज एवं समाज के विकास के लिए किया जाए तो ही बेहतर है!!!!!!

ये ठीक है कि यहाँ ब्लागजगत में आज बहुत से ब्लागर इस प्रकार की शैली को अपना रहे हैं, जो आपस में विद्वेष और कटुता बढा रही है और लोगों को अच्छाई की अपेक्षा बुराई की ओर ले जा रही है। लेकिन इसमें भी मैं दोष पढने वाले व्यक्ति का ही अधिक मानता हूँ। क्यों कि आज व्यक्ति का दृ्ष्टिकोण ही इस प्रकार की भाषा को चाहता है। यह तो संसार है, इसमें अच्छा-बुरा सब कुछ है। वास्तव में देखा जाए तो अच्छा और बुरा कुछ भी नहीं। किसी चीज को अच्छे और बुरे की पदवी भी हमारा दृ्ष्टिकोण ही देता है। हम यहाँ हैं तो हमें अपनी रूचि के अनुसार विषयवस्तु और विचार को चुनना है। हमारी रूचि, हमारा दृ्ष्टिकोण ऎसा होना चाहिए कि जिससे हम उन्ही बातों को ग्रहण कर सकें जिनसें हमारा मन, बुद्धि, जीवन, समाज एवं राष्ट्र का विकास हो सके।
देखा जाए तो ब्लागिंग आज के युग में ज्ञान बढाने का एक सर्वसुलभ एवं सर्वोत्तम साधन बन चुका हैं। हमें चाहिए कि हम इसका अधिकाधिक लाभ उठा सकें, इसकी सार्थकता को समझने का प्रयास करें ताकि अपने एवं समाज के विकास में महती भूमिका अता कर सकें न कि सिर्फ फालतू के विवादों को जन्म देकर अपनी बेशकीमती उर्जा एवं अमूल्य समय को यूँ व्यर्थ में नष्ट किया जाए।
गूगल कृ्पा भई ब्लाग बनाया, लोग कहैं यह मेरा है
न यह तेरा न यह मेरा,  चिडिया रैन बसेरा है!!
www.hamarivani.com
रफ़्तार