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शनिवार, 26 जून 2010

कैसे कैसे लोग........

कल रात एक ब्लागर बन्धु से पहली बार जीमेल चैट पर कुछ वार्तालाप हुई तो वो भले आदमी बातों बातों में ही एक विचित्र सा आग्रह करने लगे. हुआ ये कि उन्होने अपने बारे में किसी पोस्ट में कुछ लिखने को कह दिया। क्यों कहा़ ? ये वो जानें। पर मैं तो अपनी जानता हूँ, अपनी कहता हूँ। मैं ब्लाग लिखता हूँ, पढता भी हूँ---यानि कि थोडा बहुत दोनों काम ही कर लेता हूँ। परन्तु होता कुछ नहीं, होता हुआ दिखता भी कुछ नहीं; पर मैं दिखाने का चाव और भाव भी नहीं रखता। क्यों?  यह सब कुछ करने-धरने-देखने दिखाने पर निर्भर है, आदमी के स्वभाव और रूचि पर डिपैंड करता है। मुझ से यह कभी न हुआ और शायद होने वाला भी नहीं। यह किसी खास टाईप के आदमी का ही काम हो सकता है, हर किसी के बस की बात नहीं। हालाँकि यूँ तो मैं विभिन्न पत्रिकाओं में ज्योतिष विषय पर पिछले बहुत सालों से लिखता आ रहा हूँ,  पर क्या क्या लिखा, कहाँ कहाँ लिखा, इसकी तो खुद मुझे भी खबर नहीं। हाँ ज्योतिष से इतर किसी अन्य विषय पर थोडा बहुत जो कुछ भी आडा-तिरछा लिखा, वो सिर्फ यहीँ ब्लाग पर आकर ही लिखा. लेकिन किसी की फरमाईश पर लिखना अपने बूते से बाहर की बात है। ओर अगर कहीं फरमाईश ऎसी हो जिसमें सामने वाले की विज्ञापनबाजी या खुशामद की मंशा झलकती हो तो ऎसा तो भई सात जन्म भी मुमकिन नहीं.अरे भाई यहाँ हमने क्या कोई विज्ञापन ऎजेंसी थोडे खोल रखी है जो तुम्हारा विज्ञापन करते फिरें.ओर हमें किसी से ऎसे कोई अलिखित समझौते करने की भी कोई जरूरत नहीं कि "मैं तुम्हारी तारीफ में कुछ लिखूँ और बदले में तुम हमारी तारीफ में".
यहाँ तो ये हाल है कि मन में कोई विचार आया तो बेशक उस पर कोई पोस्ट लिख डाली ओर न मन किया तो समझिए महीना भर छुट्टी, इसलिए हमने तो उन्हे स्पष्ट मना कर दिया कि भाई ये काम अपने बस का नहीं। हाँ इसके अलावा कुछ ओर सेवा हो तो बोलिए......वर्ना कोई ओर दूसरा द्वार खटखटाईये।
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रफ़्तार