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गुरुवार, 18 मार्च 2010

बडे बडे फन्ने खाँ ब्लागर यहाँ एक कौडी में तीन के भाव बिक रहे हैं-- (आह्वान)

प्रभो! आओ, आओ.....हम इस समय तुम्हे बडे दीन होकर पुकार रहे हैं। तुम तो दीनों की बहुत सुनते थे। सुनते क्या थे, तुम तो दीनों के लिए थे ही। क्या हमारी न सुनोगे?! देखो जरा इस ब्लागजगत को एक नजर देखो तो सही। पारस्परिक ईर्ष्या द्वेष नें यहाँ का सत्यानाश कर के रख दिया है। बडे बडे फन्ने खाँ ब्लागर एक कौडी में तीन के भाव बिक रहे हैं। सबकी बुद्धि नष्ट-भ्रष्ट हो चुकी है। किसी में सहनशीलता, धर्म, विवेक, आपसी प्रेम, बन्धुत्व जैसा कोई गुण नहीं दिखाई पडता। लम्पटगिरी दिनों दिन बढती चली जा रही है। छोटे बडों को उपदेश देने में निमग्न हैं और बडे दिन रात छोटों पर गुर्र गुर्र करने में लगे हुए हैं। तमाशबीन अनामी/बेनामी का मुखौटा पहने एक दूसरे को आपस में लडाने को ही अपना कर्तव्य मानकर यहाँ जमे हुए हैं। कुछ जलील इन्सान धर्म की ओट लिए अधर्म का नंगा नाच करने में जुटे हैं। बिना अर्थ जाने पुस्तकों में से पढे हुए को टीप टीप कर विद्वान होने का भ्रम फैलाने में बडे जोरों शोरों से लगे हुए हैं। धर्म के वास्तविक मूल्यों की परख कहीं लुप्त हो चुकी है, आस्था और निष्ठाओं पर कुठाराघात किया जा रहा है। एक दूसरे का जम के अनादर किया जा रहा है और कोई ससुरा सुनने को तैयार नहीं।
प्रभो! आप ये समझ लीजिए कि एक दम से हाहाकार सी मची हुई है। ब्लाग देवीयों की दशा सोचनीय सी हो रखी है। बुजुर्ग ब्लागरों की मन की पीडा असह्य है। ब्लागिंग धर्म की कोई मर्यादा नहीं। समाज की तरह ही यहाँ भी जातियाँ, उपजातियाँ उत्पन हो गई हैं। ऊंच-नीच का भाव यहाँ भी शुरू हो चुका है। अच्छे एवं गुणवत्तापूर्ण लेखन का स्थान सक्रियता क्रमाँक की दौड नें ले लिया है। लोग सुबह पोस्ट लिखते हैं और शाम तक छ: बार देख चुके होते हैं कि सक्रियता क्रमाँक बडा कि नहीं?। लोग ब्लागिंग धर्म को भूलकर बस चाटूकार धर्म निभाने में लगे हुए हैं। गुरू जैसा परम पवित्र शब्द भी यहाँ आकर अपनी गरिमा खो चुका हैयहाँ गुरू माने===ऊपर चढने की सीढी। बस ये सीढी तभी तक है जब तक कि ऊपर नहीं चढ जाते। एक बार ऊपर चढे नहीं की उसके बाद तो इस सीढी का एक एक डंडा बिखरा मिलता हैं। तब चेले खुद किसी ओर के गुरू बन चुके होते हैं और गुरू उनके द्वारे हाथ बाँधे अपनी पोस्ट पर टिप्पणी की भीख माँगता दिखाई पडता है। लोगबाग ब्लागिंग धर्म को भूलकर बस जय गुरूदेव्!  जय गुरूदेव! करते इस ब्लाग भवसागर को पार करने में जुटे हैं।
बडे बडे दंगेच्छु,बकवादी,जेहादी,माओवादी,आतंकवादी, और भी जितने प्रकार के वादी है, यहाँ अपने अपने डेरे जमाने लगे हैं। प्रेम और सहानुभूति का स्थान घृ्णा नें ले लिया है। हिन्दू और अहिन्दूओं, देशप्रेमियों और पडोसी प्रेमियों के झगडे, अनर्गल प्रलाप, गाली गलौच साधारण और सुबह शाम की घटना हो चुकी हैं। धर्म के नाम पर समझो अधर्म हो रहा है। क्या इस समय और ऎसे समय में भी तुम यहाँ अपने पधारने की जरूरत नहीं समझते ?
दीनानाथ! आओ, आओ । अब विलम्ब न करो। ब्लागजगत की ऎसी दशा है और तुम देखते तक नहीं, सुनते तक नहीं। अब नहीं आओगे तो कब आओगे। कहीं ऎसा तो नहीं कि कलयुग में तुम भी दीनों की बजाय इन माँ के दीनों का पक्ष लेने लगे हो।(माँ का दीना पंजाबी भाषा में एक बहुत ही आम बोलचाल में प्रयुक्त होने वाला शब्द है, किन्तु इसका अर्थ कोई परम विद्वान ही बता सकता है, हमें तो पता नहीं :-)
हे महादेव औघडदानी, भोले बाबा ऎसा वर दो
                        सोने का सर्प चढाऊंगा, इनकी बुद्धि निर्मल कर दो ।।(स्व-रचित नहीं)

(बहुत दिनों से हम सोच रहे थे कि पता नहीं लोगों को अपनी पोस्ट पर नापसंद के चटके कैसे मिल जाते हैं,हमें तो आजतक किसी नें नहीं दिया। ईश्वर नें चाहा तो शायद आज हमारी ये इच्छा पूरी हो ही जाये :-)
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रफ़्तार