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बुधवार, 9 जून 2010

इज्जतदार आम आदमी

वह उदास और परेशान सा मेरे पास आया. उसके चेहरे पर घबराहट के चिन्ह स्पष्ट दिखलाई पड रहे थे. मैने पूछा "क्या हुआ! ये इतने घबराए हुए से क्यूं हो ?"
बोला" देख नहीं रहे, चारों तरह क्या हो रहा है. हत्याएं, लूट-खसोट, भुठमेड और गुण्डागर्दी का नंगा नाच हो रहा है.अपने मोहल्ले मे तो आज सुबह पुलिस फाईरिंग भी हुई थी और अब पुलिस सारे मोहल्ले की तलाशी लेती घूम रही है. अब क्या करें?"
"मगर तुमको किस बात की फिक्र हो रही है भाई ?"
"बताईये हमको फिक्र नहीं होगी तो फिर किसे होगी?" उसके लज्फों से घबराहट अब भी झलक रही थी.
"क्यूँ ? तुम क्या कोई चोर डाकू हो?"
"नहीं"
"तो किसी का खून-वून किया या किसी दंगे वगैरह में हाथ होगा"
"अरे राम-राम्! कैसी बातें कर रहे हैं आप"
"तो फिर क्या कोई बहुत बडे सेठ साहूकार हो कि जिसने घर में ब्लैक मनी छिपा रखी है?"
"नहीं भाई नहीं. आप तो जानते ही हैं कि मैं तो एक साधारण सा दुकानदार हूँ बस"
 "अरे भाई जब तुमने कुछ किया ही नहीं तो फिर पुलिस की सर्च से तुम्हे किस बात का डर. तुम कोई गुंडे बदमाश हो तो बताओ"
"अजी ऎसा कुछ होता तो फिर डर ही किस बात का था ?" वह कांपता सा बोल उठा " बस इज्जतदार आदमी हूँ इसीलिए.........."
इतना कहकर वो तो चुपचाप चला गया. मगर लग रहा है कि, मानो वो जाते जाते अपने डर में मुझे भागीदार बना गया.....
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रफ़्तार