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रविवार, 10 अक्तूबर 2010

क्या आप पढना चाहेंगें ? संडे सुभाषितं

आजकल हिन्दी ब्लागिंग में लोग  क्या पढ रहे हैं, यह ठीक से समझ में नहीं आता. अनुमान तो मेरा यही है कि,ज्यों-ज्यों ब्लागविद्या का विस्तार होता जाता है,पाठक गहरी चीजों से दूर होते जा रहे हैं. मगर, इन सुभाषितों में गंभीर कहे जा सकने वाला तो ऎसा कुछ भी नहीं है.लेकिन इनमें कुछ ऎसा जरूर है कि जो ह्रदय तथा बुद्धि को गुदगुदाना जानता हैं. इसलिए, मुझे थोडी आशा बनी रहती है है कि ये सुभाषि पढे जायेंगें.......

1. व्यवस्था घर की सुन्दरता है; संतोष घर की बरकत है; आतिथ्य घर की शान है; धर्मशीलता घर का कलश है---श्री ब्रह्मचैतन्य


2. आँखें सबने पाई हैं, लेकिन नजर किसी किसी ने------मैकिया वैली

3. जीवन के न्याय पर से मैं अपना विश्वास कैसे खो दूँ, जब कि मखमलों पर सोने वालों के स्वपन जमीन पर सोने वालों के स्वपनों से सुन्दरतर नहीं होते-----खलील जिब्रान


4. ईश्वर की चक्की बडी धीमे चलती है, मगर बारीक पीसती है----जर्मन कहावत

5. अच्छा पडोसी आशीर्वाद है और बुरा पडोसी अभिशाप---हैसिएड

6. अगर हम गिरते हैं तो अधिक अच्छी तरह से चलने का रहस्य सीख जाते हैं----अरविन्द


7. ईश्वर कभी बहरा नहीं होता, सिवाय जब कि आदमी का दिल ही गूँगा हो----क्वार्ल्स


8. हम जिसकी आराधना करते हैं वैसे हो जाते हैं. प्रार्थना का अर्थ इससे ज्यादा नहीं है-----महात्मा गाँधी


9. चिडियों की तरह हवा में उडना और मछलियों की तरह पानी में तैरना सीखने के बाद अब हमें इन्सान की तरह जमीन पर चलना सीखना है------राधाकृ्ष्णन


10. यह ज्यादा अक्लमन्दी की बात हो कि हम उस ईश्वर की बातें कम करें जिसे हम समझ नहीं सकते, और उन पारस्परिक लोगों की बातें ज्यादा करें जिन्हे हम समझ सकते हैं------खलील जिब्रान


11. स्वयं अपने प्रति सच्चे रहोगे तो गैर के प्रति झूठे नहीं हो सकोगे---स्वामी रामतीर्थ


12. जो मनचाहा बोलता है, उसे अनचाहा सुनना पडता है-----संस्कृत सूक्ति

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रविवार, 3 अक्तूबर 2010

संडे सुभाषितं

आज ‘संडे सुभाषितं’ में पुन: आपके लिए प्रस्तुत हैं चन्द सूक्तियाँ…….जिनसे पता चलता हैं कि मनुष्य के जागृ्त मन नें पृ्थ्वी के विभिन्न खंडों में रहकर भी अनन्त युगों तक,जीवन से जूझकर और जीवन को अपनाकर अपने अनुभव द्वारा सत्य को किस प्रकार प्राप्त किया है और उसे किस अमर वाणी में व्यक्त किया है! बकौल सन्त ज्ञानेश्वर: "अमृ्त को कोई अधिकाधिक परोसता जाए,तो क्या कभी कोई कहता है कि 'बस!अब ओर नहीं चाहिए'?". सो,ये ज्ञानामृ्त आपको परोस रहा हूँ….ओर तब तक प्रत्येक रविवार आपको परोसा जाता रहेगा…जब तक कि आप स्वयं नहीं कह देते कि “बख्श दीजिए,बस अब ओर नहीं”:)

1. सच्ची मैत्री का नियम यह है कि जाने वाले मेहमान को जल्दी रूखसत करो और आने वाले का स्वागत करो----होमर

2. यौवन, धन-सम्पत्ति, प्रभुता और अविवेक---इनमें से प्रत्येक अनर्थकारक है, जहाँ चारों हों वहाँ क्या ठिकाना !—हितोपदेश

3. स्वानुभव की बातें शब्दज्ञान हैं; जब कि स्वानुभव आत्मज्ञान हैं, किसी के स्वानुभव की बातें कहने-सुनने से कोई आत्मज्ञानी नहीं हो जाता,वह सिर्फ शब्द-ज्ञानी भर है-----योगवशिष्ठ

4. इस तरह प्रार्थना कर मानों कोई पुरूषार्थ काम न आयेगा, और इस तरह पुरूषार्थ कर कि मानो कोई प्रार्थना काम न आयेगी----जर्मन कहावत

5. धन सिर्फ अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए इस्तेमाल की चीज है, उसे नागरिक प्रतिष्ठा और नैतिक उत्कृ्ष्टता का प्रतिनिधि नहीं बना देना चाहिए----विलियम पोर्टर
दौलतमन्द बनने के लिए सिर्फ ईश्वर की ओर से पीठ फेरने की जरूरत है----फ्रांसीसी कहावत

6. एक ज्ञानी की मित्रता दुनिया भर के तमाम बेवकूफों की दोस्ती से बढकर है-----डैमोकिटस

7. अपने को बदल दो, तकदीर बदल जायेगी-----पुर्तगाली कहावत

8. अपने जीवन के हर क्षण मैं यह अनुभव करता हूँ कि ईश्वर मेरा इम्तिहान ले रहा है---महात्मा गाँधी
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रफ़्तार