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शुक्रवार, 3 दिसंबर 2010

उस युग से इस युग तक.........

सुनने में आता है कि आदिकाल से चलकर इस आधुनिक युग तक पहुँचे मानव नें भरपूर प्रगति की है. इस दौरान उसके रहन-सहन, उसके कार्य आदि में नि:संदेह कईं परिवर्तन हुए हैं. जरा उस आदिमानव के बारे में सोच कर देखें, जो जंगल में शिकार की खोज में घूमता होगा और इधर आधुनिक मनुष्य, इस वैज्ञानिक युग का मनुष्य अपने आविष्कारों का पूरा लाभ उठा रहा है, प्रगति का यह एक पहलू तो है.खान-पान, रहन-सहन, आवास, सुख-सुविधाएं---सभी में प्राचीन काल से लेकर अब तक बहुत भारी परिवर्तन हुए हैं. कालचक्र के घूर्णन के साथ-साथ इन्सान उन्नति करता चला आया है.
लेकिन फिर भी एक बात जरूर सोचने की है कि आखिर ये 'प्रगति' है क्या ? क्या यह इन्सान के दिमाग तथा उन्नति की उत्क्रान्ति है ? क्या वातावरण के अनुकूल अपने को ढालने की क्षमता को प्रगति कहेंगें? या प्रकृति का दास बनने की बजाय उनका स्वामी बनने का नाम प्रगति है?
सच पूछिए, तो मैं आजतक प्रगति नाम के इस शब्द का वास्तविक अर्थ समझ नहीं पाया हूँ. क्या यह मनुष्य की अन्वेषण तथा खोज की प्रतिभा का विकास है ? जब हम यह कहते हैं कि इन्सान नें जंगली जीवन से आज के सभ्य जीवन तक इतनी उन्नति की है, तब हमारे दिमाग में मनुष्य की संपन्नता, सुख-सुविधा के यह सारे प्रतीक रहते हैं, हैं ना ? ओर एक स्तर पर कोई भी इस उन्नति को, प्रकृति के ऊपर समय तथा स्थान विशेष पर की गई मानवी विजय को झुठला नहीं सकता.
माना कि प्रौद्योगिकी के इस विकास को परे नहीं रखा जा सकता. पर इन्सान इतनी उन्नति के बाद क्या अपने आदिकाल से कम हिँसक, कम लालची और कम स्वार्थी है? क्या वह आपसी सम्बन्धों के प्रति अधिक सभ्य है? क्या वह पहले से अधिक विचारशील है ? क्या वह न्याय और औचित्य पर बल देता है? क्या वह सुसंस्कृत है? इतने वर्षों, इतने युगों में उसने जिस विकास को जन्म दिया है, क्या उस विकास नें उसे और परिष्कृत बनाकर एक सच्चे मानव का रूप दिया है ? क्या इतने विकास के बावजूद भी इन्सान सुखी हैं ? क्या मनुष्य नें पृथ्वी पर पाई जाने वाली व्यवस्था से अपने सम्बन्ध को पहचाना है ? क्या वह भावनाओं के प्रति संवेदनशील है ? क्या उन्नति के साथ-साथ उसके ह्रदय का क्षरण नही हुआ है ? यदि उसके अन्दर कोई परिवर्तन नहीं हुआ, तब इस प्रगति का क्या अर्थ है ? जीवन, सभ्यता तथा संस्कृति का क्या अर्थ है?
क्या यह सम्भव है कि हम 'प्रगति' नाम की इस औद्योगिक उन्नति का लाभ उठाते हुए अंदर से मानव बने रहें? किन्तु मानवता क्या है ?.......सोचियेगा जरूर!!! एक बार!!! स्वयं की खातिर्!!!
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