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शनिवार, 20 फ़रवरी 2010

कुछ ऎसे सवाल जिनका जवाब खोजना बहुत जरूरी सा लगने लगा है!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

जन्मसंख्या की दृ्ष्टि से दुनिया का सबसे बडा लोकतन्त्र देश-----भारत। जहाँ संसार के हर धर्म को मानने वाला शख्स मिलेगा। जहाँ आधुनिकता की चरम सीमा तक पहुँच चुके धन कुबेरों की कमी नहीं तो दूसरी ओर अनादिकाल से चले आ रहे आदिवासी भी साथ साथ ही पल रहे हैं। सुनने में आता है कि देश की आजादी के बाद के शुरूआती समय में ये कहा जाता था कि जातिभेद और धर्मभेद के कारण और अविकसित राष्ट्रीयता के चलते ये देश आने वाले 5-10 सालों में ही या तो अपनी आजादी गँवा बैठेगा या फिर टुकडों में बँटकर पूरी तरह से छिन्न भिन्न हो चुका होगा। लेकिन तब से लेकर आज तक पाकिस्तान और चीन जैसे पडोसियों के प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से चलाए जा रहे युद्धों को झेलते हुए भी ये देश हर कसौटी पर खरा उतरता रहा। आज भी यहाँ लोकतन्त्र प्रणाली कायम है, भले ही वह औपचारिक, लुंज-पुंज एवं त्रुटियों का भंडार ही क्यों न बन चुकी हो।

लेकिन इन बडी बडी उपलब्धियों के बावजूद, देश की विशालता एवं विविधता के बाद भी आज एक आम भारतीय पूरी तरह से हताश और निराश है। आजादी के समय के सारे प्रश्न आज भी ज्यों के त्यों खडे हैं, उलटा समाज का नैतिक ह्रास होता हुआ ही दिख रहा है। ऎसा लग रहा है कि मानो हम लोग किसी उल्टी दिशा की ओर बढते चले जा रहे हैं। जिधर देखो उधर संकंट ही संकट क्यों दिखाई पड रहा है। मोर्चा नागरिक अधिकारों का हो कि जनसंख्या वृ्द्धि का,गरीबी-बेरोजगारी घटाने का हो कि भ्रष्टाचार का, शिक्षा की समस्या लीजिए या नशाखोरी की,मँहगाई का सवाल हो कि अराजकता का, महिलाओं की दशा लीजिए या एक आम आदमी की सुरक्षा के हालातों पर दृ्ष्टि डालिए------इस देश में चारों तरफ संकंट ही संकंट क्यों दिखाई दे रहा है?
आज इन सवालों को समझना और इनके जवाब खोजना बहुत जरूरी हो गया है। इस देश के कर्णधारों के पास तो इन सवालों का कोई जवाब नहीं, सोचा कि शायद आप लोगों में से किसी के पास इन सवालों का कोई जवाब हो............
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रफ़्तार