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शुक्रवार, 8 अक्तूबर 2010

दास्तान-ए-टाईम खोटीकार

पिछले कुछ दिनों से सोच रहे थे कि चाहे मजाक-मजाक में ही सही, ब्लागिंग की कृ्पा से अपण लेखक तो बन ही चुके हैं. समीर लाल जी नें व्यंग्यकार का ठप्पा भी लगा ही दिया है, तो क्यों न अब कहानीकार बनने की ओर कदम बढाया जाए. लो जी, कुछ दिन तक इसी पर विचार करते रहे और ज्यों ज्यों ये विचार मन में अपनी जडें जमाता गया, त्यों त्यों ही हमारा कहानी लिखने का इरादा मजबूत होता चला गया. सो, एक दिन इरादा बुलन्द करके हम कहानी लिखने बैठ गए, लेकिन ऊपरवाला ही जानता है कि कहानीकार बनने की चाह में हमें कितने पापड बेलने पडे, कितनी परेशानियों का सामना करना पडा. यूँ लगा कि मानो ईश्वर हमें कहानीकार बनने ही नहीं देना चाहता------.

बहरहाल हुआ ये कि हम धैर्य धारण करके कहानी लिखने बैठ तो गए......अभी कहानी लिखनी शुरू भर ही की थी, कि खट् से लाईन चली गई. ससुरा, मुहूर्त ही खराब हो गया. पंचाँग उठाकर देखा तो पता चला कि हम तो शुरूआत ही राहूकाल में कर बैठे. लेकिन भला अब किया भी क्या जा सकता था. सो,  अब दिन भर इसी इन्तजार में बैठे रहे कि कब लाईट आए और कब हम लिखना शुरू करें. लेकिन बिजली विभाग वाले भी इतने भलेमानस कहाँ है कि जो एक बार बिजली बन्द कर उसे इतनी जल्दी शुरू कर दें. सारा दिन बीत गया. बिजली न आनी थी और न आई.

खैर, देर रात गए जैसे ही विद्युत विभाग की कृ्पा हुई तो हम झट से कम्पयूटर खोलकर बैठ गए.अब जैसे-तैसे कुछ लिखने की कौशिश की भी तो एक ओर हादसा हो गया. बडी मुश्किल से अभी दो एक पंक्तियाँ ही लिख पाए थे कि गली में सुकवि श्वानों नें अपना कवि सम्मेलन प्रारम्भ कर दिया. अब ऎसे में भला क्या तो दिमाग काम करता और क्या लिखा जाता. कुछ दिन लगातार ऎसे ही चलता रहे. दिन में विद्युत विभाग नाक में दम किए रखता और रात को जैसे ही कुछ लिखने बैठते तो गली भर के श्वान इकट्ठे हो कीर्तन शुरू कर देते. अब तो समझिए कि हद ही हो गई. हमने भी एक दिन आव देखा न ताव, बस पूरे गुस्से में आकर एक लट्ठ उठाया और रात भर मोहल्ले की गलियाँ घूम घूम कर उनकी ऎसी खातिरतवज्जो की, कि ससुरे अब हमारी गली तो गली बल्कि यूँ कहिए कि मोहल्ले में भी दिखाई नहीं पडेंगें.

खैर जी, जैसे तैसे करके हमने अपनी कहानी तो पूरी कर डाली, लेकिन ससुरी एक ओर समस्या खडी हो गई. हुआ ये कि कहानी की लम्बाई उम्मीद से कुछ क्या बल्कि बहुत ही अधिक हो गई. अब बडी भारी समस्या कि इस "भागवत महापुराण" के लिए पाठक कहां से मिले. ब्लागरों से तो ऎसी कोई उम्मीद करना ही फिजूल है कि इत्ती लम्बी कथा को कोई बाँचने बैठेगा. यहाँ तो लोग चार लाईनो की पोस्ट तक नहीं पढते, बल्कि उसपर भी बिना पढे वाह! वाह्! सुन्दर कथा जैसी टिप्पणी टिका जाते हैं, तो भला हमारी इस कहानी को कौन पढने बैठेगा!

अब लगता है कि हमने नाहक ही इत्ती मेहनत कर डाली. इससे अच्छा तो, इतने टाईम में चार छ: व्यंग्य छाप दिए होते या दस बीस कवितानुमा ही कुछ लिख दिए होते. टाई भी बचता और "वाह-वाह" होती अलग से.......लेकिन शायद इसी को कहते हैं--टाईम खोटीकार.
बहरहाल अभी तो कहानी ड्राफ्ट में सेव करके रख छोडे हैं.....सोचते हैं, हिन्दी ब्लागिंग जब अपनी इस शैशवावस्था से बाहर निकल आएगी, तो छाप देंगें.........

तब तक आप इस माह का अपना राशीफल बाँच लीजिए.......
 मासिक भविष्यफल----अक्तूबर 2010( मेष से कन्या राशी)
मासिक भविष्यफल---अक्तूबर 2010 (तुला से मीन राशी)
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