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बुधवार, 11 फ़रवरी 2009

बेरोजगारी


एक डूबते हुए आदमी ने
पुल पर चलते हुए आदमी से
आवाज लगाई "बचाओ,बचाओ"
पुल पर चलते आदमी नें नीचे
रस्सी फैंकी ओर कहा "आओ"...

नदी में डूबता हुआ आदमी
रस्सा नहीं पकड पा रहा था
रह रह कर चिल्ला रहा था
"मैं मरना नहीं चाहता"
"जिन्दगी बहुत महगी है"
अरे! कल ही तो एक कंपनी में
मेरी नौकरी लगी है......

इतना सुनते ही पुल पर चलते
आदमी ने अपनी रस्सी खींच ली
ओर भागते भागते उस कंपनी में गया
जाते ही मालिक को बताया कि
एक आदमी अभी अभी डूब कर मर गया है
ओर इस तरह आपकी कंपनी में
एक जगह खाली कर गया है....

मैं बेरोजगार हूं, मुझे रख लो
मालिक बोला, अरे तुमने देर कर दी
अब से कुछ देर पहले
हमने उस आदमी को लगाया है
जो उसे धक्का देकर
तुमसे पहले यहां आया है.......

बुधवार, 24 दिसंबर 2008

दर्द और मजबूरी

सिर्फ तीन लोग ही थे उस परिवार में.वो,उसकी पत्नि शान्ती और एक जवान लेकिन बेरोजगार बेटा.यूं तो कहने को वो एक सरकारी विभाग में चपरासी की नौकरी करता था.लेकिन किराये के मकान में रहते हुए किसी तरह बडी मुश्किल से ही परिवार का गुजारा चल पाता था.

आज जैसे ही वो डयूटी से आकर घर के एक कोने में पडी कुर्सी पर बैठने लगा तो दर्द के मारे मुंह से एक आह सी निकल पडी.
‘‘अरी! रमेश की मां, अब नहीं मुझसे बसों में उतरा–चढ़ा जाता, घुटने तो अब बिल्कुल ही जवाब देने लगे हैं। ड्यूटी पर जाकर बैठना भी बडा दूभर लगता है। अब तो डाक्टरों ने भी कह दिया, भई आराम करो। ज्यादा चलना–फिरना ठीक नहीं, बेआरामी से हालत बिगड़ सकती है।’’

‘‘अपना तो ईश्वर भी बैरी हुआ पडा है,अगर लड़का कहीं छोटे–मोटे काम पर अटक गया होता तो जैसे–तैसे गुजारा कर लेते।’’ रामलाल की बात सुनकर पत्नी के ह्र्दय की पीड़ा बाहर आने लगी।

‘‘मैंने तो अब रिटायरमैंट के कागज भेज ही देने हैं। बहुत कर ली नौकरी, अब जब शरीर ही इज़ाजत नहीं देता तो..।’’ रामलाल ने अपनी बात जारी रखी।

‘‘वह तो ठीक है...मगर...’’ पत्नी ने अपने मन की चिन्ता को और उजागर करना चाहा।

‘‘अगर–मगर कर क्या करें? चाहता तो मैं खुद भी नहीं, लेकिन...अब क्या करूं।’’

‘‘मैं तो कहती हूं कि धीरे–धीरे यूँ ही जाते रहो। तीन साल पड़े हैं रिटायरमैंट में।

क्या पता अगर कहीं तुम्हे कुछ हो गया, तो बाद में नौकरी तो मिल जाएगी लड़के को,इतना पढने के बाद भी बेकार बैठा है।’’

यह सुनते ही रामलाल का चेहरा एकदम पीला पड़ गया।
ओर पत्नी की आँखों से झर–झर आँसू बहने लगे, जिन्हे वो मुंह फेर कर छुपाने की कौशिश करने लगी।
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रफ़्तार