पिछले दो एक दिनों पहले की बात है कि जब एक रात हम अपनी मित्र मंडली के साथ किसी गूढ वार्तालाप में व्यस्त थे । खैर उस वार्तालाप का तो कोई निष्कर्ष नहीं निकला लेकिन बैठे बैठे हमारे मन में जरूर एक प्रेरणा सी जग उठी---कि चलें अपनी बीती जिन्दगी का कुछ लेखा जोखा ही मिला लिया जाए । जब मिलाने बैठे तो पता चला कि अपनी तो आधी जिन्दगी यूँ ही निकल गई---अपना खुद का तो कोई मतलब हल हुआ नहीं बल्कि आज तक दूसरे लोग ही अपना मतलब साध कर चलते बने ।
हम तो वहीं के वहीं रह गए--जहाँ से अपनी जीवन यात्रा आरम्भ की थी । यानि की ढाक के वही तीन पात ।
फिर सोचा--चलो खैर जो बीत गया सो बीत गया, उसे भूलकर अब कुछ आगे की सुध ले ली जाए ।
बस उस दिन से मन में ठान ली कि अब तो हम कुछ करके ही रहेंगें । लेकिन फिर सोचा कि भई आखिर हम करेंगें क्या ? आखिर कुछ करने की प्रेरणा भी तो होनी चाहिए कि नहीं । इधर उधर कुछ लोगों पर नजर दौडाई--जो कि अपने जीवन में कुछ कर चुके और अब तक कर ही रहे हैं ।
सबसे पहले याद आए श्री मधु फोडा जी, जो कि कभी किसी जमाने में नेताओं के सभा सम्मेलनों में पहले पहुँचकर दरिया बिछाया करते थे ओर बाद में वहीं खडे रहकर उनका भाषण सुना करते थे । लेकिन ऊपर वाले की कुछ ऎसी कृ्पा हुई कि दरियाँ बिछाने से शुरू हुआ उनका ये सफर आज मुख्यमन्त्री की कुर्सी तक पहुँच चुका है । वैसे तो इससे आगे का उनका लक्ष्य केन्द्र की सरकार में शामिल होने ओर वहाँ बैठकर देश सेवा करने का था...पर कुछ ग्रह दशा ऎसी खराब शुरू हुई कि एक घोटले में नाम आ गया ओर हाथ से मुख्यमन्त्री की कुर्सी भी जाती रही । लेकिन उनका कहना है कि अगर सी.बी.आई वालों नें बख्श दिया तो एक दिन आपको इसी देश का प्रधानमन्त्री बन कर दिखाएंगें । वैसे हमारी अन्तरात्मा कह रही है कि उनकी ये इच्छा भी पूरी हो ही जाएगी । इन्हे याद करते ही हमारे मन में भी उत्साह का एक इन्जैक्शन सा लग गया ।
फिर याद आए एक अन्य सज्जन ----श्रीमान चालू चक्रम जी । भई क्या कमाल के दृ्ड प्रतिज्ञ इन्सान हैं । पैसा कमाने के मैदान में उतरे तो कर्म-कुकर्म की ओर से आँखें ही मूँद ली । कुछ समय पहले तक कोयले की दलाली किया करते थे---लेकिन बिना अपना मुँह काला कराए न जाने कितनों का काला,पीला,हरा,नीला कर चुके हैं । इन्होने तो इस कहावत को भी मिथ्या सिद्ध कर डाला कि "कोयले की दलाली में मुँह काला" । एक बार किसी बडी सी कम्पनी वाले से इनकी दोस्ती हो गई तो उसने इनके गुणों को पहचान कर इन्हे अपनी कम्पनी में मैनेजर की नौकरी पर रख लिया । आज ये उस कम्पनी के मालिक हैं और वो बेचारा मालिक इन्ही की कम्पनी में नौकरी कर रहा है । वाह रे भाग्य्!
इन्हे याद करके हमें बडा आत्मिक बल मिला ।

भई हम तो इन सब लोगों के कृ्तज्ञ हैं और शपथ लेकर कहते हैं कि हम भी अब कुछ हो के ही रहेंगें । बस भगवान हमें थोडी सी निर्लज्जता बख्श दे ।