पिछले सप्ताह की बात है, अचानक किसी आवश्यक कार्य से हिमाचल प्रदेश स्थित कांगडा जी जाने का कार्यक्रम बन गया.रात के समय ही हम गाडी में बैठे सफर के लिए निकल पडे. गाडी में हम कुल जमा चार लोग थे---एक मैं,एक हमारे यहाँ की नगरनिगम के पार्षद,एक व्यवसायी और चौथा ड्राईवर.हमारा ड्राईवर जो था, वो था एक मुसलमान युवक---नाम शायद जाहिद करके कुछ था. एक तो पहाडी रास्ता ऊपर से लम्बा सफर, घुमावदार सडकें.....अब किसी किसी मोड पर तो गाडी यूँ टर्न लेती कि एकदम से प्राण हलक में आ जाते.न मालूम ये पिछले कुछ दिनों से यहाँ ब्लागजगत में देखे जा रहे अधर्मी लम्पटों के आचरण का असर था या क्या था लेकिन उस ड्राईवर को देखते हुए हमारे दिमाग में कुछ अजीब से विचार जन्म लेने लगे. वो जिस स्पीड से गाडी चला रहा था और मोड पर जिस तेजी से टर्न ले रहा था---उसे देखते हुए लगा कि आज सही सलामत घर वापसी मुश्किल है.हमने उसे कईं बार कहा भी कि भाई जरा गाडी धीरे चलाओ,लेकिन वो पट्ठा कहाँ मानने वाला था.हमारे कहने का उसपर सिर्फ इतना असर होता कि मुश्किल से 2-3 किलोमीटर तक वो गाडी कहने मुताबिक चलाता, फिर थोडी देर में ही धीरे धीरे गाडी उसी पहले वाली स्पीड में ही पहुँच जाती.अब हमारा ये हाल था कि हमें उसकी शक्ल में साक्षात यमराज के दर्शन होने लगे. दिन भर दुनिया जहान के लोगों की जन्मपत्रियाँ बाँचते बाँचते इतना समय भी नहीं निकाल पाते कि कभी खुद की जन्मकुंडली के ग्रह-नक्षत्रों पे ही निगाह डाल लें.अपनी कुंडली देखे हुए भी शायद बरसों बीत गए होंगें.ये भी नहीं मालूम कि कहीं किसी "मारकेश" ग्रह की दशा ही न चल रही हो.अगर चलने से पहले अपनी कुंडली देख लेते तो जाने का प्रोग्राम कैंसिल न सही, कम से कम चलने से पहले "महामृ्त्युंजय" का जाप ही कर लिए होते.लेकिन अब भला क्या किया जा सकता था ? उसकी रफ्तार देख देखकर हमें तो सचमुच भय सा लगने लगा था.मन में उल्टे सीधे विचार आ रहे थे कि अगर कहीं इसने गाडी किसी खड्ड में गिरा दी तो एक ही समयावच्छेद से तीन तीन महान आत्माओं को सदगति प्रदान करने का महापुण्यफल इसके हाथों सिद्ध हो जाएगा और साथ ही दुनिया से कुछ काफिरों को खत्म करने का सबाब भी इसे मिल जाएगा. वाह रे ड्राईवर! तेरे तो दोनों हाथों में लड्डू हैं---पुण्य भी और सबाब भी.पर शुक्र है ऊपर वाले का कि ऎसा पाक ख्याल उसके दिमाग में नहीं आया.इसका कारण कदाचित हमारे ही कुछ पापकर्म रहे होगें,जिनका भुगतान करने को उसने हमें जीवनदान दे दिया.कम से कम मुझे तो कुछ ऎसा ही लगा........ |
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रविवार, 8 अगस्त 2010
भय और अविश्वास भरा सफर.......
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15 टिप्पणियां:
पंडित जी, मैं तो ये मानता हूँ कि किसी एक की करनी का फल अन्यों को भी भोगना पडता है/ कुछ लोगों द्वारा फैलाय जा रहे धार्मिक विद्वेष का ही नतीजा है कि उस कौम से संबंधित दूसरे लोगों को भी शकभरी निगाह से देखा जाता है/
वत्स जी हमे आमो की पेटीयां एक पाकिस्तानी देने आता है, आने से पहले वो फ़ोन कर देता है, ओर मै सभी पेटिया खोल कर देखता हुं कि कही कोई आम खराब ना हो, ओर वो मुझे कहता है यार!! इतने साल होगये दोस्ती को यकिन नही....... तो मैने उसे पिछली बार मजाक मै कह दिया.. ऒये मै इस लिये सारी पेटिया देखता हुं कही तुने उस मै कोई बम्ब ना रख दिया हो, तेरा क्या, मै तो गया ना..... सीधा ऊपर उझे जन्नत मिले या जह्न्नुम यह बात की बात है, तो उस ने मुझे बांहो मै भर लिया ओर वोला कुछ कमीनो ने हमारा धर्म बदनाम कर दिया, यार मै तेरे ऊपर अपनी जान भी दे दूगां, लेकिन ऎसी बात मत कह, मै उसे बीस साल से जानता हुं, तो मैने उसे कहा, ऒये खोते दे पुत्र मै तो मजाक कर रहा था.
समूचे विश्व में ही आज किसी भी मुस्लिम को शंका की दृ्ष्टि से देखा जा रहा है! लेकिन ये लोग सब कुछ देखते समझते हुए भी खुद में सुधार लाना ही नहीं चाहते!
समूचे विश्व में ही आज किसी भी मुस्लिम को शंका की दृ्ष्टि से देखा जा रहा है! लेकिन ये लोग सब कुछ देखते समझते हुए भी खुद में सुधार लाना ही नहीं चाहते!
सही कहा पंडित जी, जब जान आफ़त मे आती है तब सब कुछ याद आता है. इसीलिये कहते हैं कि हर खतरे के पीछे एक नई सोच होती है.
रामराम.
हा हा!! महामृत्युंजय का पाठ न कर पाना हमेशा सालता फिर तो...:)
अच्छा रहा -सही सलामत लौट आये ...भगवान का शुक्र है.
ye musalmaano ko badnaam karne ki saajish hai
लाख लाख शुक्र है सही सलामत अ गए मेरे पंडित जी ...
शायद आप कुछ ज्यादा ही सोच गए !
कांगडा का मार्ग तो वैसे भी दुर्गम,दुष्कर है।
एक बार सफ़र शुरू किया, बस मोड मोड पर भय रूह तक उतर जाता है।
मेरे एक मित्र है मुस्लिम है मैंने एक बार उनसे पुछा की क्या तुमको लोग शक की नजर से देखते है तो तुमको बुरा नहीं लगता तो उसने कहा की जब मै छोटा था पंजाब में आतंकवाद अपने चरम पर था और इंदिरा जी की हत्या के बाद पगड़ीवाले सरदारों को देख कर मुझे भी बहुत डर लगता था उन सभी को हम भी शक की नजर से देखते थे धीरे धीरे सब ठीक होगया कुछदिनों बाद ये भी ठीक हो जायेगा |
यह समझपाना बहुत मुश्किल है कि यह इंसान के भीतर की कमजोरी है या उस का स्वभाव है कि हम हमेशा कभी भी संशय कि अवस्था मे हमेशा बुरा ही सोचते हैं...हमे हमेशा किसी अनिष्ट की आशंका घेरे रहती है...शायद इसी लिए आपके मन में यह विचार आए होगें।
बड़ी कठिन स्थिति रही होगी.
कांगड़ा इस बारिश में ..!रास्ता फिसलन भरा होता है..लेकिन वहाँ जाकर वहाँ की प्राकृतिक सुंदरता देख कर रहा सहा भय मिट गया होगा.पहाड,घाटियाँ तो बारिशों में और भी निखर जाते हैं .
पंडित जी को डर ! राम राम राम ... |
चलिए आपकी यात्रा तो सफल रही ... सही सलामत रही ....ओए एक पोस्ट भी लग गयी इसी बहाने ...
क्या बात है पंडित जी ... राम राम ...
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