मनुष्य की आत्मा का परिचय हमें मानसिक क्रियाकलापों द्वारा ही होता है. प्रत्येक क्षण हम अपने अन्दर किसी न किसी क्रियाकलाप की विद्यमानता पाते हैं. एक हलचल के पश्चात दूसरी, दूसरी के पश्चात तीसरी.….ऎसे ही प्रतिक्षण कोई न कोई मानसिक क्रिया हम सब के भीतर चलती ही रहती है. इन सभी मानसिक क्रियाकलापों को तीन श्रेणियों में बाँटा जा सकता है:---- 1. ज्ञान सम्बन्धी---जैसे कि प्रत्यक्ष-ज्ञान, स्मृ्ति, कल्पना आदि 2. भाव सम्बन्धी---जैसे सुख, दु:ख, प्रेम, हर्ष, उत्साह, ग्लानि, क्रोध इत्यादि 3. क्रिया सम्बन्धी--जैसे कि ध्यान, प्रयत्न, प्रवृ्तियाँ आदि मानसिक क्रियाकलापों के यह भेद उनकी पारस्परिक पृ्थकता का समर्थन नहीं करते. वे प्राय: हमारे मानसिक जीवन में सम्मिलित रूप में ही उपस्थित होते हैं. मान लीजिए.….बाजार में जाते हुए आप किसी कुष्टरोगी को देखते हैं, आपको उसकी स्थिति पर दु:ख होता है. तुरन्त उस की मदद करने का विचार मन में उठता है. विचार कर आप यह निश्चित करते हैं कि मुझे बेचारे इस दीन-हीन, रोगी की सहायता करनी चाहिए. इस निश्चयानुसार अपनी जेब से कुछ पैसे निकालकर उसकी आर्थिक सहायता कर देते हैं. इस उदाहरण में तीनों प्रकार की मानसिक क्रियायों का समावेश पाया जाता है. उस कुष्टरोगी को देखकर दु:ख का अनुभव, उसकी दु:ख निवृ्ति का चिन्तन तथा सहायता का प्रदान-----भाव, ज्ञान तथा क्रिया तीनों क्रियाकलापों का बोधक है. यद्यपि इन तीनों प्रकार के क्रियाकलापों का भेद प्रकट किया जा सकता है तथापि मानसिक जीवन में उनकी सर्वथा पृ्थकता सम्भव नहीं. जब भी हम मानसिक जीवन का अवलोकन करते हैं तो इनमें से किसी न किसी की प्रधानता अवश्य प्रकट होती है. क्रोध की दशा में भाव की प्रधानता, अध्ययन काल में ज्ञान की प्रधानता, इसी प्रकार किसी कार्य को करने की स्थिति में क्रिया की प्रधानता दिखती है. नीचे दिए गए चित्र द्वारा इस उपरोक्त कल्पना का भलीभान्ती स्पष्टीकरण हो जाता है...... क्रमश:……. अन्त में एक बात अपने पाठकों से कहना चाहूँगा, कि हालाँकि विषयगत रूचि न होने अथवा विषय की जानकारी के अभाव अथवा जटिल शब्दावली के कारण कुछ पाठकों को ये विषय थोडा बोझिल लग सकता है, किन्तु यदि आपने आरम्भिक एक दो पोस्टस को थोडा ध्यानपूर्वक समझने का प्रयास कर लिया तो आगामी पोस्टस में आप स्वयं मानने लगेंगें कि इससे सरल और सर्वोपयोगी विषय तो कोई है ही नहीं. यूँ भी, अपने सामाजिक व्यवहार को दक्षतापूर्ण चलाने तथा उसको अधिक शान्तिमय बनाने के लिए मनोविज्ञान से थोडा बहुत परिचय तो सब के लिए ही परम आवश्यक है. मनोविज्ञान---मन का विज्ञान या आत्मा का ?मनोविज्ञान----क्या, क्यों, कैसे ?आगामी पोस्ट में हम बात करेंगें "मनोविज्ञान की कार्यपद्धति तथा इसका अन्य विज्ञानों से सम्बन्ध" के बारे में...... 2 3 |
ad
सोमवार, 27 सितंबर 2010
मानसिक क्रियाकलाप तथा उनके भेद (मनोविज्ञान भाग-2)
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
16 टिप्पणियां:
अच्छी रचना पोस्ट की है ........
जाने काशी के बारे में और अपने विचार दे :-
काशी - हिन्दू तीर्थ या गहरी आस्था....
अगर आपको कोई ब्लॉग पसंद आया हो तो कृपया उसे फॉलो करके उत्साह बढ़ाये
pandit ji aaj ki post se vishay kuch kuch samajh mein aane laga hai/ ab toh aagami post ki besabri se pratiksha rahegi/
pranaam/
pandit ji aaj ki post se vishay kuch kuch samajh mein aane laga hai/ ab toh aagami post ki besabri se pratiksha rahegi/
pranaam/
शर्मा साहेब सच मानिये हमें तो ये विषय बेहद अच्छा लगा! विषय वाकई गहन है लेकिन आप सहज और रोचक शब्दों में समझाने का प्रयास कर रहे हैं तो देर सवेर तो हमें भी समझ आ ही जाएगा!
शर्मा साहेब सच मानिये हमें तो ये विषय बेहद अच्छा लगा! विषय वाकई गहन है लेकिन आप सहज और रोचक शब्दों में समझाने का प्रयास कर रहे हैं तो देर सवेर तो हमें भी समझ आ ही जाएगा!
पठनीय व ज्ञानवर्धक पोस्ट
मनोविज्ञान विषय अत्यंत दिलचस्प है
आप आगे भी सरल भाषा एवं उदाहरण के माध्यम से इस विषय को जारी रखें !
आभार & शुभ कामनाएं
मन पर सुंदर विश्लेषण। ज्ञानवर्धक!!
ज्ञानदान यज्ञ जारी रखें
लगता है हिन्दी माध्यम का छात्र अंगरेजी माध्यम में आ गया है |इस लिये सारा ज्ञान चौबारे के ऊपर से निकल गया | जय हो .....|
लगता है हिन्दी माध्यम का छात्र अंगरेजी माध्यम में आ गया है |इस लिये सारा ज्ञान चौबारे के ऊपर से निकल गया | जय हो .....|
लगता है हिन्दी माध्यम का छात्र अंगरेजी माध्यम में आ गया है |इस लिये सारा ज्ञान चौबारे के ऊपर से निकल गया | जय हो .....|
विषय कुछ कुछ समझ आता जा रहा है .... ध्यान करने पर आपकी बातों को प्रत्यक्ष पा रहा हूँ .... ज्ञान वर्धक आलेख है पंडित जी ,... आगे लेख की प्रतीक्षा है ....
उपयोगी रहा यह आलेख!
सही कहा आपने, मनोविज्ञान विषय नीरस सा लगता है जब्कि यह हर एक मनुष्य के स्व के व्यवहार में निहित होता है. बहुत ही सहज व्याख्या की आपने, आभार.
रामराम.
ग़ज़ब का लिखते हैं भई आप....
rochak aur gyanvardhak
सुंदर विवेचन.
एक टिप्पणी भेजें