वो बस कभी तो यूँ ही बिला वजह बैठा बैठा मुस्कुराने लगता है. कभी उसकी आँखे आकाश में टंगी रहती हैं, कभी एकदम से मुखडा माघ के मेघों की तरह गम्भीर बना लेता है. कान श्वान की भन्ती सजग हो उठते हैं, मानों स्वर्ग से कोई सूचना बेतार के तार से उसके पास आ रही हो. सुना है मुसलमानों के नबी हजरत मोहम्मद साहब के समीप वहिश्त से पैगामात आए करते थे, मगर उन्होने तो कुछ किया भी.ये भला क्या करेगा. बैठा कल्पनाओं में जितनी आनन्दानुभुति लेता है, व्यवहारिकता में उससे सौ गुणे घबडाता हैं.
ऎसे आदमी पागल होते हैं. अगर कोई अपने मतलब से, अपने स्वार्थ से मुस्कुराता है या ख्यालों में खोया है, तो वह ठीक है. कम से कम वह पागल तो हरगिज नहीं है. लेकिन अगर कोई बिला वजह के मुस्कुराता है, तो वह मुस्कुराहट का अपव्यय करता है. इस व्यापारिक युग में अपव्यय सबसे खराब चीज मानी जाती है. सो, मुस्कुराहट का भी अपव्यय नहीं होना चाहिए. जो फिजूल बिना कारण के मुस्कुराता है, बिना किसी मतलब के ख्यालों में खोया रहता है तो वह पागल नहीं तो भला ओर क्या है ?
खाने-पीने का भी उसका कोई हिसाब-किताब नहीं. जो मिला सो खा लिया. नहीं मिला, नहीं खाया. अपनी मौज में चाहे बैठे मुस्कुराते रहे चाहे गम्भीरता का पल्लू ओढ लिया. जरूर ही वह पागल है; वर्ना खाना तो आदमी को समय से तीनों टाईम खाना ही चाहिए. इसी दो वक्त की रोटी के लिए आदमी चोरी, डकैती, घूसघोरी, जालसाजी और तरह तरह की बेईमानियाँ करता फिरता है. इसी भोजन के लिए षडयन्त्र होते हैं, हत्याएं होती हैं, तख्तो ताज पलट दिए जाते हैं. भोजन ही तो जीवन की सार वस्तु है. उस भोजन की ओर से लापरवाह ? उस भोजन के बिना भी अलमस्त ? वह जरूर पागल है. यदि वह पागल नहीं होता तो भूख लगने पर समय से खाना तो खाता. लेकिन नहीं चाहे कितनी भी जोरदार भूख लगी हो, वो अकेले बैठे कभी मुस्कुराता रहता है, तो कभी किसी सोच में डूबा दिखाई देता है. जरूर वह पागल है !
मैं शाम-सवेरे, दिन-दोपहर उसे बराबर देखता रहता हूँ. वह हमेशा यूँ ही कभी मुस्कुराता मिलता है तो कभी किसी सोच में डूबा हुआ. मेरे ही घर में रहता है. हालाँकि वो हमारे परिवार का कोई सदस्य नहीं है, इसलिए ये भी नहीं कह सकता कि वो हमारा कोई अपना है. अब उसे पारिवारिक सदस्य भी कैसे कहूँ ? मगर वह मेरे ही साथ रहता है.
न जाने कौन है वो ?........
लोग कहते हैं कि वो "ब्लागर" है...लेकिन न जाने मुझे ऎसा क्यों लगता है कि वो जरूर कोई पागल है.
हाँ शायद " पागल " ही है वो........
17 टिप्पणियां:
हे भगवान.
मैं तो अपने आप को कुछ और ही समझे बैठा था आजतक :(
:-))
पा+गल= यानि जो बात को पा गया वो हे पागल. लेख बहुत अच्छा लगा धन्यवाद
जनाब अब तो हमें भी अपने आप पर शक सा होने लगा है :)
जनाब अब तो हमें भी अपने आप पर शक सा होने लगा है :)
लोग कहते हैं कि वो "ब्लागर" है...लेकिन न जाने मुझे ऎसा क्यों लगता है कि वो जरूर कोई पागल है.
हाँ शायद " पागल " ही है वो........
पंडित जी,
खूब!!!!!
पा= पा लिया
ग= गलत करने वाला
ल= ललकार देता है यूं ही ?
ओह तभी... हम सब ... यहां वहां... जाने कहां
अरे शर्मा साहब आज आप ऐसी बातें क्यों कर रहें हैं ...पागल तो हर व्यक्ति होता है बस उसके किस्म बदल जातें हैं ...इसलिए इसमें इतना घबराने की क्या बात है | अब मुकेश अम्बानी साहब को ही लीजिये वह 6000 करोड़ के आवास में रहना चाहतें हैं ,एक व्यक्ति को 100 नौकर की देखरेख देना चाहतें है ..इसे भी एक सामान्य आदमी पागलपन ही कहेगा जबकि मुकेश अम्बानी की जगह बैठा व्यक्ति सामान्य आदमी को पागल कहेगा और मुझसे अगर कोई पूछे तो आज इन दोनों के बीच संतुलन बैठाने की सोचने वाला मुझ जैसा आदमी सबसे बड़ा पागल है और उसे कहा भी जाना चाहिए ...इसलिए घबराइए नहीं इस ब्लॉग जगत में एक से बढ़कर एक पागल हैं ....
पागल होना कोई बुरी बात नहीं मग़र उसके होने की वजह सही होनी चाहिए
4.5/10
टाईम पास
पोस्ट मुस्कराने को बाध्य करती है
पंडित जी हमरी बीबी भी हमरे बारे में कुछ ऎसा ही सोचती है/ आज आपने भी इस पर मोहर लगा दी/ खैर कोई बात नहीं हम तो जी पागल ही भले :))
प्रणाम/
शक के घेरे में तो बहुत सारे (मेरे सहित) आ रहे हैं. निदान भी बता देते तो ....
पागल होना भी जरुरी है
विजयादशमी पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं
दशहरा में चलें गाँव की ओर-प्यासा पनघट
हम ब्लाग पर दूसरों के विचार जानने का प्रयास कर रहे हैं तो पागल और जो अपना ही विचार दुनिया में थोपे जा रहे हैं वो समझदार? ब्लागर तो अनेकता में एकता का मंत्र है। दुनिया में कितने और सार्थक विचार भी हैं यह यहीं आकर जाना है मैंने। इसलिए अब आप पागल कहो या ब्लागर कहो या और कुछ, लेकिन सारे विचारों से अपना ज्ञान जरूर बढा रहे हैं।
अगर बलोगर पागल ना होते तो इस पागल खाने में आपकी उणसे मुलाक़ात कैसे होती |
@नरेश जी,
हम भी तो इसी पागलपन के मरीज हैं :)
@ अजीत गुप्ता जी,
आप सही कहती हैं. ब्लागिंग में आकर सचमुच बहुत कुछ नया सीखने, जानने, समझने को मिला है.यूँ लगता है कि मनो पिजंरे के पंछी को खुला आकाश मिल गया हो...उडता चले. इसी नें विचारों को एक नया एवं पूर्ण आधार दिया है. इसलिए ब्लागिंग के महत्व को तो नकारा ही नहीं जा सकता. बाकी, ये पोस्ट तो सिर्फ उन ब्लाग व्यसनियों के बारे में है, जिनके लिए सोते-जागते, उठते बैठते, हर जगह बस ब्लागिंग ही ब्लागिंग है :)
कुछ कुछ तो शायद सारे ब्लॉगर ऐसे ही होंगे ... बढ़िया !
दशहरा की शुभकामनायें !
इस पागल से मिलकर खुशी हुई।
................
..आप कितने बड़े सनकी ब्लॉगर हैं?
एक टिप्पणी भेजें