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रविवार, 5 दिसंबर 2010

मियाँ नौचंदी चले गये.........

सुबह सैर को निकले तो राह में अपने बिलागर भाई मियाँ नौचंदी मिल गए. दुआ-सलाम हुई तो पूछ लिया कि क्या बात है मियाँ! बहुत दिनों से आप ब्लागिंग में दिखाई नहीं दे रहे. ऎसे कौन से काम में उलझ गये कि ब्लाग लिखने का भी समय नहीं मिल पा रहा."
मियाँ नौचंदी:----" अजी छोडिये पंडित जी, क्या रखा है इस ब्लागिंग-फ्लागिंग में. यूँ समझ लीजिए कि बस अब इससे हमारा मन भर गया है."
"कमाल है मियाँ! ऎसी भला क्या बात हो गई कि यूँ मन उचाट कर बैठे?"
मिय़ाँ नौचंदी:- "अब क्या बतायें जनाब! पहले तो दुनियादारी से ही फुर्सत नहीं मिलती. गर इधर-उधर से कुछ टाईम निकालकर कभी लिखने का मन बनता भी तो बेगम सिरहाने आन खडी होती. न मालूम किसने उसके दिमाग में ये फितूर भर दिया कि मियाँ ब्लागिंग के बहाने औरतों से चैटिंग किया करते हैं. लाहौल-विला-कुव्वत! बताईये पंडित जी आपको क्या हम ऎसे आदमी दिखते हैं?"
"ओह्! मियाँ ये तो आपके साथ बहुत ही बुरी हुई. बहरहाल, आपको उनकी इस गलतफहमी को दूर कर देना चाहिए था."
"ये हम ही जानते हैं कि हमने उनके इस दिमागी फितूर को कैसे दूर किया. हमें कैसे-कैसे पापड नहीं बेलने पडे इसके लिए"
" चलिए गलतफहमी तो दूर हो गई न ! फिर ब्लागिंग से मन उचाट होने का ऎसा कौन सा कारण रहा ?"
मियाँ नौचंदी:-- "अजी पंडित जी, अब क्या बतायें आपको. देखिए हम कोई लेखक या कवि तो हैं नहीं कि दिन-रात मन में भाव उमडे पडे जा रहे हैं. हमें तो एक पोस्ट लिखने के लिए भी पूरे हफ्ता भर दिमाग का तेल निकालना पडता है. ऎसे में भला हम क्या तो ब्लागिंग करें और क्या छोडें?"
"लो कर लो बात! अरे मियाँ यहाँ कौन से साहित्यकारों का अखाडा जमा है. सबके सब तो आप और हम जैसे ही हैं. आपके जो जी में आए, वो लिखिए---इसी का नाम ही तो ब्लागिंग है. वैसे एक बात है, अभी तक आपने जितनी भी पोस्टें लिखी हैं, उन्हे देखकर तो कोई भी नहीं मान सकता कि यें किसी अनाडी के हाथों लिखी गई हैं."
मियाँ नौचंदी:-" ये तो आपकी जर्रानवाजी है पंडित जी, वर्ना हम भला लिखना क्या जाने"
" अरे नहीं मियाँ, हम मजाक नहीं कर रहे, सच मानिये. हमें तो आपको पढना बहुत अच्छा लगता है. लेकिन, एक बात है कि ब्लागिंग से मन उचाट होने की इतनी सी वजह तो नहीं हो सकती. बताईये ऎसी भला क्या बात हो गई?"
मियाँ नौचंदी:- " बात ये है पंडित जी, कि हमारे बिलाग पर तो कोई कुत्ता भी झाँकने नहीं आता. हम इतनी मेहनत से अगर कुछ लिखते भी हैं तो उसे पढने वाला ही कोई न मिले तो ऎसे लिखने का भी भला क्या फायदा?"
"अरे! तो ये बात है! मियाँ तुम भी न निरे'खाँटी" आदमी हो. भाई हम हैं न आपको पढने वाले"
मियाँ नौचंदी:--"छोडिए पंडित जी, पूरा साल भर इस हमाम में रहकर हम तो इतना जान पायें कि जैसे वेश्यायों के घर में नकद नारायण की पूछ होती है, वैसे ही यहाँ ब्लगिंग में भी सिर्फ टिप्पाचारियों का ही आदर होता है. यहाँ क्या खबीस और क्या पट्ठा---सब एक बराबर है. पूछ उसी की है जो दे दनादन आँख मूँदकर एक लाईन से टीपना जानता हो. आपने वो कहावत तो सुनी ही होगी, कि--"जिसकी जेब में चाँदी है, तवायफ उसी की बान्दी है"
"कह तो आप ठीक ही रहे हैं, लेकिन........"
मियाँ नौचंदी---लेकिन-वेकिन को मारिए गोली पंडित जी, यूँ भी आजकल ब्लागिंग में बडे भारी खतरे हो रहे हैं. देखते नहीं कि आए दिन वहाँ किसी न किसी भले आदमी की बेईज्जती खराब हो जाती है"
"लो कर लो बात, मियाँ क्या इसी हिम्मत पर ब्लागिंग करने चले थे ? भाई जब ऎब पालने का शौक रखते हो तो इज्जत को ताक पर रख देना चाहिए. ब्लागिंग को आपने क्या हँसी ठठ्ठा समझ रखा है. मियाँ ये तो वो कूचा है, जिसमें से सिर के बल गुजरना होता है. कहते हैं कि----"कटाए सर को उल्फत में वही सरदार होता है!"
मियाँ नौचंदी:- " अजी छोडिए पंडित जी, मारिए गोली ऎसी सरदारी को. हमें नहीं चाहिए ऎसी सरदारी जिसमें इज्जत का दिवाला पिट जाए. अच्छा तो पंडित जी अब चला जाये, एक बहुत जरूरी काम याद आ गया. फिर मिलते हैं"

इतना कहकर मियाँ नौचंदी तो अपने रास्ते निकल लिए और हम खडे सोच रहे हैं कि काश हमसे कहने की बजाय मियाँ ब्लाग पर इस बात की घोषणा करके जाते कि "हम ब्लागिंग छोड रहे हैं" तो भला कौन जाने देता उन्हे. अब तक तो भाई लोगों नें "ब्लागर बचाओ आन्दोलन" छेड दिया होता.
 ओह! न जाने अब ब्लागजगत इस अपूरणीय क्षति को कैसे सह पाएगा......:)
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ज्योतिष की सार्थकता
धर्म यात्रा

32 टिप्‍पणियां:

naresh singh ने कहा…

मियाँ ये तो वो कूचा है, जिसमें से सिर के बल गुजरना होता है...... सहमत है आपसे |

Sushil Bakliwal ने कहा…

मियां नौचंदी को मैं आवाज लगाऊँ क्या ?

सुज्ञ ने कहा…

सटीक व्यंग्य है, मियां नौचंडी की व्यथा।

Arvind Mishra ने कहा…

जरुर कोई लखनऊ के ब्लागरों की खबर आपको लीक कर रहा है

बेनामी ने कहा…

ये तो ब्लागिंग का बहुत बडा नुक्सान हो गया/ब्लागजगत ने अपना एक अनमोल रत्न खो दिया/ हमें नौचन्दी जी का पता मिले तो हम अपनी ओर से कोशिश कर देखें/ शायद रूक जाएं :)
प्रणाम/

Smart Indian ने कहा…

अच्छा व्यंग्य है।
मियाँ के लिये: जैसा देस वैसा भेस

PN Subramanian ने कहा…

चाहे किसी ने भी लीक किया हो, मामला गंभीर है.

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

पूछ उसी की है जो दे दनादन आँख मूँदकर एक लाईन से टीपना जानता हो. आपने वो कहावत तो सुनी ही होगी, कि--"जिसकी जेब में चाँदी है, तवायफ उसी की बान्दी है"

बहुत सटीक सिक्सर दिया है पंडितजी.:)

रामराम.

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

पूछ उसी की है जो दे दनादन आँख मूँदकर एक लाईन से टीपना जानता हो. आपने वो कहावत तो सुनी ही होगी, कि--"जिसकी जेब में चाँदी है, तवायफ उसी की बान्दी है"

बहुत सटीक सिक्सर दिया है पंडितजी.:)

रामराम.

मनोज कुमार ने कहा…

व्यंग्य सार्थक है।

Unknown ने कहा…

शर्मा साहेब अब जाने वाले को भला कौन रोक सकता है! :))
बहुत दिनों बाद आज खुल के हंसने का मौका मिला है! बेहतरीन व्यंग्य साहब! मजा आ गया पढकर!

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" ने कहा…

@ अरविन्द मिश्र जी,
आपने लखनऊ वालों की अच्छी याद दिलाई. बहुत दिन हुए अब तो नवाबों नें भी यहाँ हाजिरी बजाना झोड दिया. पहले तो बेचारे गाहे-बगाहे चले आते थे. मिलें तो इत्तला दीजिएगा कि आपको बडी शिद्दत से याद किया जा रहा है :)

@निरंजन मिश्र जी,
इस राह के मुसफिरों को फिर से घूमकर यहीं आना पडता है:)

संजय @ मो सम कौन... ने कहा…

कहीं नहीं जायेंगे नौचंदी भाई, इन गलियों को छोड़कर।

अजित गुप्ता का कोना ने कहा…

जिन्‍हें पता ही नहीं कि ब्‍लागिंग क्‍यों करनी चाहिए उन्‍हें तो बन्‍द ही कर देनी चाहिए।

anshumala ने कहा…

मिया से पूछिये की उन्हें पता है की उनके टिप्पणी नहीं देने से ना जाने कितने ब्लोगर उनकी तरह टिप्पणी विहीन रह कर ब्लोगिंग छोड़ कर चले गये | सीधी सी बात है या तो आप कही की कार्य संस्कृति में ढल जाइये नहीं ढल सकते तो अपनी उपेछा की शिकायत मत कीजिये |

वीरेंद्र सिंह ने कहा…

हालाँकि दिखने में तो आप बड़े शांत और गंभीर स्वभाव वाले लगते हैं .
लेकिन व्यंग इतना मस्त लिखा है कि पढ़कर मज़ा आ गया.
आपका व्यंग सार्थक रहा. नौचंदी जी की फिक्र मत कीजिए.

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" ने कहा…

@ अंशुमाला जी,
अगर मियाँ नौचंदी इतनी समझ रखते तो यूँ छोड कर जाते भला. खैर, जाएंगें कहाँ..जहाज के पंछी को जहाज पर ही लौटकर आना होता है :)

@विरेन्द्र जी,
आपको व्यंग्य अच्छा लगा समझिए हमारी मेहनत सफल हुई.बाकी रही बात प्रकृति की, तो वो तो जन्मजात गम्भीर ही है. बस कभी-कभार जब भी ये गंभीरता थोडा कचोटने लगती है तो बस यूँ ही कुछ देर के लिए चैनल बदल बैठते है :)

एक बेहद साधारण पाठक ने कहा…

अजित जी ने वही बात कह दी जो मैं कहता

"जिन्‍हें पता ही नहीं कि ब्‍लागिंग क्‍यों करनी चाहिए उन्‍हें तो बन्‍द ही कर देनी चाहिए"

@वत्स जी
बहुत धारदार व्यंग है इसकी धार इन्डली.कॉम पर नजर आ रही है ,एक पसंद का चटका हम भी लगा आये :)

राज भाटिय़ा ने कहा…

पंडित जी आप तो वादा कर के भी भुल गये जनाब, हमे इंतजार मे लटकाये रखा. आज बहुत दिनो बाद आया हुं. धन्यवाद

बेनामी ने कहा…

Dhanwad, es badiya hasy mishrit vyang ke liye. . .sir ji, aap se ek madad ki gujaris hai. Mai bhi aap ki tarah kisi nam se .com domain blog ke liye banana chahta hu. Batane ka kast kare ki kaise bana sakata hu?

दिगम्बर नासवा ने कहा…

लिखते लिखते अंत में छक्का लगा ही दिया आपने ... सच है .... बोल के जाते तो अब तक कई पोस्ट आ जातीं ...

R K Singh ने कहा…

धन्वाद इस बढ़िया हास्य और व्यंग्यात्मक लेख के लिए I
sir ji, aap se ek madad ki gujaris hai. Mai bhi aap ki tarah kisi nam se .com domain blog ke liye banana chahta hu. Batane ka kast kare ki kaise bana sakata hu?

R K Singh ने कहा…

धन्वाद इस बढ़िया हास्य और व्यंग्यात्मक लेख के लिए

sir ji, aap se ek madad ki gujaris hai. Mai bhi aap ki tarah kisi nam se .com domain blog ke liye banana chahta hu. Batane ka kast kare ki kaise bana sakata hu?

Satish Saxena ने कहा…

,पंडित जी ,
ब्लॉग जगत की दुर्दशा पर आपके विचार मुझसे मेल खाते हैं ! मगर शायद धर्म के मामले में, मैं काफिर हूँ ( आशा है क्षमा करोगे ). जितना मैंने आपको पढ़ा है कुछ विरोधाभासों के बावजूद , आपका प्रसंशक हूँ ! आप समाज, संस्कृति के प्रति उल्लेखनीय कार्य कर रहे हैं ! अक्सर मैं कट्टर पंथियों , चाहें वे किसी धर्म के हूँ , का स्वागत नहीं कर पाता, आपको उनसे अलग पाता हूँ ! आप मेरे विचारों को टिप्पणी रूप में छाप सकते हैं !
अभिनन्दन स्वीकारें
सादर

एक बेहद साधारण पाठक ने कहा…

आप इस टिपण्णी को हटा सकते हैं

ये सिर्फ नए लेख की सूचना देने के लिए है

http://my2010ideas.blogspot.com/2010/12/scientific-evidence-reincarnation.html

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" ने कहा…

@ R.k. singh ji,
आर.के.सिँह जी, इसके लिए आपको अपना एक निजि डोमेन खरीदना होगा. जो कि आजकल बहुत ही कम कीमत(लगभग 500/550 रूपये) पर उपलब्ध हैं. इसके साथ आपको 5 सबडोमेन भी प्राप्त होंगें. आप उन पाँचों सबडोमेन्स को अपने पाँच अलग अलग ब्लागस में यूज कर सकते हैं.
जैसे कि हमारा अपना डोमेन नेम है-----panditastro.com. अभी हमारे द्वारा अपने तीन विभिन्न ब्लागस इस डोमेन पर चलाए जा रहे हैं.
1.ज्योतिष की सार्थकता--blog.panditastro.com
2.कुछ इधर की, कुछ उधर की--bakwasbaji.panditastro.com
3.धर्म यात्रा--dharmjagat.panditastro.com
अभी भी हमारे पास 2 सबडोमेन्स शेष हैं, जिन्हे हम अन्य दो ब्लागस पर यूज कर सकते हैं.

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

मियॉं नौचंदी की अच्‍छी खबर ली है।

---------
त्रिया चरित्र : मीनू खरे
संगीत ने तोड़ दी भाषा की ज़ंजीरें।

निर्मला कपिला ने कहा…

सटीक व्यंग। इसे आज ही पढ पाई। शुभकामनायें।

बेनामी ने कहा…

पं.डी.के.शर्मा"वत्स" जी आप की इस जानकारी के लिए मै आप
का सुक्रिया अदा करता हू |
par mujhe ye nahi pata hai ki mai domain kaha se karidu...aap agar kuch jankari de deti to badi kripa hoti.....

R K Singh ने कहा…

पं.डी.के.शर्मा"वत्स" जी आप की इस जानकारी के लिए मै आप
का सुक्रिया अदा करता हू |
par mujhe ye nahi pata hai ki mai domain kaha se karidu...aap agar kuch jankari de deti to badi kripa hoti.....agar aap mujhe apni email id dete ya phir kuch aur contact ke liye to mai aap se achi tarah bat kar pata.......अगर अच्छा लगे तो दे दीजिये नहीं तो कोई बात नहीं

R K Singh ने कहा…

@पं.डी.के.शर्मा"वत्स"
SIR, kya mujhe har sal 500Rs, dena hoga....?
mai har sal nahi de skata hu......plz bataiye......ek bar paisa deke possible hai.....

बेनामी ने कहा…

I recommend to you to visit on a site, with a large quantity of articles on a theme interesting you. I can look for the reference.

www.hamarivani.com
रफ़्तार