राजकुमार गौतम उद्यान में सैर कर रहे थे कि अकस्मात उनके पाँवों के पास एक पक्षी आकर गिरा. राजकुमार नें देखा कि उसके परों में एक तीर चुभा है और वह बडी बेचैनी से छटपटा रहा है. दयाद्र होकर गौतम नें पक्षी को उठाया और वे बडे यत्न से रक्त में भीगे हुए तीर को निकालने लगे, ताकि किसी प्रकार उस निरीह पक्षी के प्राणों को बचाया जा सके. गौतम अभी तीर को निकाल भी न पाये थे कि हाथ में धनुष-बाण लिए एक शिकारी आया और उनसे बडे रोष भरे स्वर में कहने लगा------
" राजकुमार! ये मेरा शिकार है, जो मेरी क्षुधापूर्ती का साधन बनने वाला है. आपको इसे उठाने का क्या अधिकार था? "
राजकुमार गौतम स्नेह भरे स्वर में बोले----"जब आपको उसके प्राण लेने का अधिकार है, तब मुझे उसके प्राण बचाने का भी अधिकार न दोगे भाई !"
" राजकुमार! ये मेरा शिकार है, जो मेरी क्षुधापूर्ती का साधन बनने वाला है. आपको इसे उठाने का क्या अधिकार था? "
राजकुमार गौतम स्नेह भरे स्वर में बोले----"जब आपको उसके प्राण लेने का अधिकार है, तब मुझे उसके प्राण बचाने का भी अधिकार न दोगे भाई !"
8 टिप्पणियां:
इस दृष्टांत के माध्यम से करूणा का शानदार संदेश दिया आपने।
बहुत ही अच्छी कथा है ... सच है अपना अपना अधिकार है ..
मैंने भी बचपन में पढ़ी थी, लेकिन इस दृष्टि से पहली बार..
इस कथा के माध्यम से आपने जीवदया का बहुत अच्छा सन्देश दिया पंडित जी/
प्रणाम/
इस कथा के माध्यम से आपने जीवदया का बहुत अच्छा सन्देश दिया पंडित जी/
प्रणाम/
Gautam kee ye katha suparichit hai,lekin baar baar padhna bhee achha lagta hai.
बहुत सुंदर जी, हम सब को अपने अधिकार का इस्तेमाल जरुर करना चाहिये, लेकिन सिर्फ़ अच्छॆ कामो के लिये
आज देश की भी यही दशा है। सरकार प्राण लेने का अधिकार लिए है लेकिन जनता को जीवन सुरक्षित करने का अधिकार नहीं है।
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