पुनर्जन्म----एक ऎसा विचार जिसे हिन्दू धर्म की सभी शाखाओं द्वारा स्वीकृत किया गया है. भगवतगीता का कहना है कि जिसका जन्म होता है, उसकी मृत्यु होती है और जिसकी मृत्यु होती है उसका जन्म भी होना निश्चित है. लेकिन जन्म अन्त समय के संस्कार और इच्छाओं के अनुरूप होता है.
भारतीय दार्शनिकों को तो पुनर्जन्म स्वीकारने में कोई परेशानी नहीं होती किन्तु विज्ञान जगत का स्वीकार करना ही भारतीय दर्शन की सबसे बडी बिजय होगी. विज्ञान की स्पष्ट धारणा है कि कभी भी कुछ पूर्णत: समाप्त नहीं होता. केवल उसका रूप परिवर्तित हो जाता है. तो क्या यह संभव नहीं कि जीवन भी समाप्त न होकर परिवर्तन हो जाए.
"यह सम्पूर्ण जीवन जगत तरंगात्मक है. जीवन मनोभौतिक तरंगों का समानान्तरीकरण है. यह समानान्तरीकरण का ही जीवन है. इसका नियोजन मनुष्य की मानसिक या शारीरिक मृत्यु का कारण होता है."
विज्ञान जगत भी इस बात को स्वीकार करता है कि जीवन तरंगात्मक है. इ.सी.जी.( E.C.G.) भी इस बात का स्पष्ट प्रमाण देती है. तरंग जहाँ जीवन हैं, सीधी रेखा मृत्यु की द्योतक है.
जब हम मानकर चलते हैं कि तरंगें कभी समाप्त नहीं होती तो यह मानना ही पडेगा कि मनुष्य की मृत्यु के पश्चात उसकी मनस तरंगें ब्राह्मंड में ही विचरण करती रहती हैं और जब किसी भौतिक तरंग (शरीर) से उनका समानान्तरीकरण हो जाता हैतो यह उस मनस तरंग का पुनर्जन्म हुआ.
यहाँ यह उल्लेख करना आवश्यक है कि आधुनिक विज्ञान जगत यह मान रहा है कि शरीर की मृत्यु के पश्चात मस्तिष्क लगभग 5 या 6 घंटे की अवधि तक जीवित रहता है. मेरे शब्दों में मनस की अन्तर्यात्रा सम्भव है. भारतीय शैली में अग्निसंस्कार में मृतक की कपालक्रिया द्वारा मस्तिष्क की मृत्यु को भी पूर्णरूप से सुनिश्चित कर लिया जाता है ताकि आत्मा मुक्त हो जाए, भटके नहीं.
किसी भी शैली का अंतिम संस्कार शरीर को नष्ट कर ही देता है. अत: यह तो निश्चित है कि शरीर का पुनर्जन्म नहीं होता किन्तु विशेष स्थितियों में मनस या तरंगों का पुनर्जन्म हो सकता है. कोई आवश्यक नहीं ईसा या बुद्ध की तरंग पुन: धरती पर ही जन्म लें. हो सकता है हजारों वर्षों बाद किसी अन्य जीवित ग्रह पर उनका पुनर्जन्म हो रहा हो.
पुनर्जन्म की स्मृति की व्याख्या भी इसी आधार पर सहजता में होती है. क्योंकि अधिकांशत: पुनर्जन्म का स्मरण रखने वाले व्यक्ति अबोध शिशु ही होते हैं. उनके संस्काररहित कच्चे मन से कोई मनस तरंग सम्पर्क स्थापित कर लेती है किन्तु जब उनका मस्तिष्क अपने ज्ञान व अनुभव स्वयं पर अंकित करने में सक्षम हो जाता है तो ऎसी स्मृतियाँ विलुप्त हो जाती हैं. यह मेरी धारणा है. वैसे भी प्राय: असामान्य रूप से मृत्यु प्राप्त करने वाली को ही पुनर्जन्म की घटनायें देखने सुनने को मिलती हैं.
किन्तु इस ज्योतिषांज्योति का अमृत प्राप्त कर लेने वाला साधक ब्रह्ममय हो जाता है. उसकी मनस तरंगें महामानस में विलीन हो जाती है.
भारतीय दार्शनिकों को तो पुनर्जन्म स्वीकारने में कोई परेशानी नहीं होती किन्तु विज्ञान जगत का स्वीकार करना ही भारतीय दर्शन की सबसे बडी बिजय होगी. विज्ञान की स्पष्ट धारणा है कि कभी भी कुछ पूर्णत: समाप्त नहीं होता. केवल उसका रूप परिवर्तित हो जाता है. तो क्या यह संभव नहीं कि जीवन भी समाप्त न होकर परिवर्तन हो जाए.
"यह सम्पूर्ण जीवन जगत तरंगात्मक है. जीवन मनोभौतिक तरंगों का समानान्तरीकरण है. यह समानान्तरीकरण का ही जीवन है. इसका नियोजन मनुष्य की मानसिक या शारीरिक मृत्यु का कारण होता है."
विज्ञान जगत भी इस बात को स्वीकार करता है कि जीवन तरंगात्मक है. इ.सी.जी.( E.C.G.) भी इस बात का स्पष्ट प्रमाण देती है. तरंग जहाँ जीवन हैं, सीधी रेखा मृत्यु की द्योतक है.
जब हम मानकर चलते हैं कि तरंगें कभी समाप्त नहीं होती तो यह मानना ही पडेगा कि मनुष्य की मृत्यु के पश्चात उसकी मनस तरंगें ब्राह्मंड में ही विचरण करती रहती हैं और जब किसी भौतिक तरंग (शरीर) से उनका समानान्तरीकरण हो जाता हैतो यह उस मनस तरंग का पुनर्जन्म हुआ.
यहाँ यह उल्लेख करना आवश्यक है कि आधुनिक विज्ञान जगत यह मान रहा है कि शरीर की मृत्यु के पश्चात मस्तिष्क लगभग 5 या 6 घंटे की अवधि तक जीवित रहता है. मेरे शब्दों में मनस की अन्तर्यात्रा सम्भव है. भारतीय शैली में अग्निसंस्कार में मृतक की कपालक्रिया द्वारा मस्तिष्क की मृत्यु को भी पूर्णरूप से सुनिश्चित कर लिया जाता है ताकि आत्मा मुक्त हो जाए, भटके नहीं.
किसी भी शैली का अंतिम संस्कार शरीर को नष्ट कर ही देता है. अत: यह तो निश्चित है कि शरीर का पुनर्जन्म नहीं होता किन्तु विशेष स्थितियों में मनस या तरंगों का पुनर्जन्म हो सकता है. कोई आवश्यक नहीं ईसा या बुद्ध की तरंग पुन: धरती पर ही जन्म लें. हो सकता है हजारों वर्षों बाद किसी अन्य जीवित ग्रह पर उनका पुनर्जन्म हो रहा हो.

किन्तु इस ज्योतिषांज्योति का अमृत प्राप्त कर लेने वाला साधक ब्रह्ममय हो जाता है. उसकी मनस तरंगें महामानस में विलीन हो जाती है.
12 टिप्पणियां:
पंडित जी,
बहुत ही सशक्त और वैज्ञानिक अभिगम से आपने विषय प्रस्तुत किया है।
वस्तुतः आत्मा के आत्मप्रदेश तरंग अवस्था में ही गति करते है। शुद्ध आत्मप्रदेश सीधी रेखा में उधर्वगति करते है।
यह मात्र आपकी धारणा ही नहीं बल्कि सत्य है। कि आत्मा पर मान माया लोभ क्रोध का आवरण छा जाता है इसी लिए पुनर्जन्म की स्मृतियां अक्सर बाल अवस्था के बाद विस्मृत होने की सम्भावना अधिक होती है। बाल अवस्था में भी शुद्ध मनस के कारण स्मृति-ज्ञान आ सकता है।
रहस्य इतना गहन है कि अब तक वर्षों के मंथन के बाद भी हाथ कुछ नहीं लग पाया है।
I do believe in this theory.
बहुत दिनो बाद आपकी पोस्ट देखी तो खुशी से उछल पडी। मैने दो बार आपको मेल भी की थी और दानिश जी से भी आपके बारे मे पूछा था आप इतने दिन कहाँ थे? फिर से आये बहुत बहुत स्वागत बधाई। आलेख तो हमेशा ही आपके ग्यानवर्द्धक होते हैं मै भी पुनर्जन्म मे विश्वास रखती हूँ।
@
पंडितजी ने किस आधार पर यह कहा दिया की म्रत्यु के बाद मस्तिष्क ५-६ घंटे जीवित रहता है?
मेडिकल विज्ञान के अनुसार तो यदि मस्तिष्क एवं अन्य किसी संबंधित नाडी तंत्र को सामान्य परिस्थितियों में ३ मिनट से अधिक ओक्सिजन नहीं मिले तो वे मर जाते हैं और फिर दोबारा कार्यकारी नहीं हो सकते. इसी कारण अधरंग या फालिज के रोगी पूरी तरह ठीक कम ही हो पाते हैं, तो यह ५-६ घंटे की बता कहाँ से आ गई?
दूसरे, जिस इ.सी. जी. की बात पंडितजी ने करी है वह ह्रदय को कार्यकारी रखने के लिए हृदय के नाडी तंत्रों में प्रवाहित हो रही सूक्ष्म विद्युत तरंगों का रिकार्ड है. सम्पूर्ण मानव रचना को तरंग मान लेने और फिर उसके आधर पर कोई भी मन गढंत निष्कर्ष निकाल लेने का कारण नहीं.
वाह वाही करने वालों को पहले ज़रा अपने मस्तिष्क परा थोड़ा जोर देकर सत्य-असत्य, संभव-असंभव को पहचानने का थोडा प्रयास तो करना चाहिए, ना की आंख और दिमाग बंद करके बस हरा बात को सच घोषित करा और प्रशंसा के पुल बांधने आरंभ कर दिए!
पुनर्जन्म और 84 लाख योनियों में आवागमन , ये दो अलग अलग सिद्धांत हैं ।
पुनर्जन्म परलोक में होता है जबकि आवागमन यहीं चक्कर काटने का नाम है ।
हम पुनर्जन्म में विश्वास रखते हैं लेकिन आवागमन को दार्शनिकों की कल्पना मानते हैं ।
गीता भी एक दर्शन है ।
आवागमन की मान्यता वेदों में नहीं पाई जाती जो कि धर्म का मूल स्रोत है ।
...लेकिन किसी के मानने पर कोई पाबंदी तो है नहीं । आज के वैज्ञानिक दौर में भी सफ़ेद झूठ बोला जा रहा है कि मृत्यु के घंटो बाद भी दिमाग़ जीवित रहता है ।
ECG और तरंग आदि शब्द बोले नहीं कि भाई लोगों ने इसे महान वैज्ञानिक खोज ही घोषित कर दिया ?
वाह , ज्ञान हो तो ऐसा जिसे पढ़कर डाक्टर भी हैरान हो जाय और अर्जुन भी।
कहा जाता है कि इस उपदेश को सुनकर अर्जुन ने श्री कृष्ण जी की पूरी सेना समेत करोड़ो हिंदुओं को मार डाला था।
पंडित जी, याद अथवा याद्दाश्त आत्मा का नहीं दिमाग का विषय हैं। क्या दिमाग भी पुनर्जन्म में साथ चला जाता है?
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विलुप्त हो जाएगा इंसान?
कहाँ ले जाएगी, ये लड़कों की चाहत?
बहुत ही बढिया व विचारणीय पोस्ट लिखी है। धन्यवाद।
jyotish ki sarthakta ka kya ho raha hai.
मर के मिट्टी बनें मुर्दा शरीरों के जी उठने के अंधविश्वासी अब संभव-असंभव बातानें निकले है।
वाह रे कुंद दिमागों!! जगह और गिरेबान देखकर छोटे से दिमाग को श्रम दो।
हमें तो पुनर्जन्म और आवागमन वाली थ्योरियों पर विश्वास है।
मुझे भी भरोसा है इस मान्यता पर, परामनोविज्ञान की जानकारी लेने के लिए अभी मानव मस्तिष्क को बहुत दूर जाना होगा !
शुभकामनाये पंडित जी !
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