अभी परसों की ही बात है, बैठे बैठे मन में विचार आया कि चलो कोई नईं ढंग की पोस्ट ही लिख ली जाए। वैसे यहां बहुत से लोग शायद ये भी सोच रहे होंगे कि पहले क्या कभी ढंग की पोस्ट लिखी है, जो अब की बार लिखोगे .:)। लेकिन खैर जैसा भी है, कभी किसी हलवाई को अपनी मिठाई की बुराई करते सुना है। और तो और जब एक सब्जी वाला भी कभी अपनी सब्जी को खराब नहीं कहता (चाहे कैसी भी गली सडी क्यूं न हो) तो भई हम तो फिर भी एक ब्लागर हैं। हम अपने लिखे को खराब कैसे कह सकते हैं। अब पढने वाला चाहे लाख बुराई करता रहे-----हमारी बला से।
खैर छोडिए, मुद्दे की बात की जाए। हां तो हम परसों जब एक नई पोस्ट लिखने बैठे, जो कि भ्रूण हत्या जैसे एक गंभीर सामाजिक विषय पर आधारित थी। जिसका कि हमने शीर्षक भी अपने दिमाग में सोच के रख लिया था। लेकिन ये क्या! हम लिखना कुछ चाहें,लिखा कुछ जाए.......... कहां तो कन्या भ्रूण हत्या पर लिखने बैठे थे ओर कहां दिमाग में वफा, अश्क, लम्हे,जुबां, मयखाना जैसे शब्द गूंजने लगे। एक दो बार दिमाग से इन शब्दों को परे झटकने का प्रयास किया, सीट से उठकर दो चार मिनट चहलकदमी भी की। लेकिन जब दोबारा से लिखने बैठे तो फिर वही हाल। दिमाग सोच सोच कर परेशान कि आखिर ये हो क्या रहा है। जब सोचने समझने की बिल्कुल भी ताकत न रही तो लैपटाप उठा कर साईड में रख दिया। धर्मपत्नि को कह कर तेज मसाले वाली कडक चाय बनवाई। चाय पीते पीते अचानक से दिमाग की घण्टी बजने लगी, कि हो न हो जरूर ये सब संगति का असर है। शायर, कवि बिलागर भाईयों (बहनें भी) की कविताएं/गजलें पढ पढ कर दिमाग में काव्यरसिकता छाने लगी है। कबीर दास जी सच कह गए हैं कि "कबीरा संगत साधु की, कभी न निष्फल जाए"।
अब भाई लोगों की (कु) संगति का ये असर हुआ कि हम पिछले तीन दिनों से बेफालतू की तुकबन्दी करने में ही उलझे हुए हैं। बार बार लिखे जा रहे हैं, मिटाए जा रहे हैं। लेकिन इतनी सर खपाई का ये नतीजा जरूर निकला कि हम इन तीन दिनों में 2- 4 लाईनों की तुकबन्दी करने में सफल हो गए।
अब जब चन्द लाईनें लिख ही ली हैं तो फिर उन्हे कोई सुनने वाला भी तो चाहिए कि नहीं। बस इसी उधेडबुन में खोए हम कोई मुर्गा फंसने की राह देख रहे थे। तभी शाम को अचानक से बिना किसी पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के भाई मुफलिस जी का आना हो गया। हमने भी आव देखा न ताव , बस दुआ सलाम करते ही झट से उन्हे पकाना शुरू कर दिया। अभी मुश्किल से कोई दो लाईनें ही सुना पाए थे कि मुफलिस जी उठ खडे हुए। बोले कि कोई काम याद आ गया है, इसलिए अभी जाना पडेगा। फिर किसी दिन आराम से बैठकर महफिल जमाते हैं।
अब मुफलिस जी तो पल्लू छुडा के भाग लिए और साथ ही हमारे भी ज्ञान चक्षु खुल गए कि भई, ये काम अपने बस का नहीं.....अपनी तो पंडिताई भली जिसमे यूं किसी की मिन्नतें तो नहीं करनी पडती। बस हींग लगे न फटकरी और रंग चौखा ।
किसी ने सच ही कहा है कि इन्सान कवि या शायर तब ही बन पाता है, जब कि उसमे सामने वाले को पकड के रखने का (अव) गुण विकसित हो चुका हो.:)। लेकिन शायद ऊपर वाले ने हमें इस (दुर)गुण से नवाजा ही नहीं।
खैर चलते चलते आप खुद पढ लीजिए कि आप लोगों की (कु) संगति में रह कर कैसी ऊलजलूल तुकबन्दी को अंजाम दिया है। लेकिन ध्यान रहे-----कि हूटिंग करना मना है।
जिन्दगी
फर्ज की लहरों पे अब तक डौल रही है जिन्दगी
रिश्तों के पलडे में खुद को तौल रही है जिन्दगी !!
यूं तो,हर तरफ दिख रही है भीड इस जमाने की
पर कहीं कुछ अपना सा, टटोल रही है जिन्दगी !!
हर शख्स चेहरे पे इक नकाब पहने फिर रहा
पर धीरे-धीरे सबके पर्दे खोल रही है जिन्दगी !!
आज तलक उलझा हुआ हूं उन्ही चन्द सवालों में
"अब भी कईं जवाब हैं बाकी" बोल रही है जिन्दगी !!
22 टिप्पणियां:
अभी तक किसी की वाह वाह नहीं!?
चलिये मैं ही कह देता हूँ -वाह वाह वाह
आपके कुसंगातिये ज़रूर कच्चे रहे होंगे. वर्ना आप जैसा कोई उन्हें कहाँ मिलता है जो कहता हो कि आओ भाई मुझे बिगाडो. आशा है प्रयास जारी रखेंगे...और एक न एक दिन, भले ही देर सबेर सही, आप भी बिगड़े मिलेंगे. ऐसी शुभकामनायें.
हूटिंग करने का तो प्रश्न ही कहाँ उठता है..बस, वाह वाह!! कहने रुके हैं भाई..बेहतरीन!!
वत्स साहब...........तारीफ़ करूंगा तो कुछ बोलना नहीं ................ आपने जिन भावों को लिखा है .........जिन यथार्थ बातों को कहा है............वो आपकी मौलिक सोच और कवी मन को प्रगट करती है.............इतना ही नहीं आप तो पंडित हैं..........किताबों, छंदों और गीत को तो आपने पैदा होते ही समझ ली होंगी ..........और आपकी रचना इस बात की भी पुष्टि करती है की शिल्प....और घड़ने में भी आपकी महारत है...............
लाजवाब लिखा है आपने...............कमाल का.........यथार्त लिखा है
आज भी उलझा हुआ हूं उन्ही चन्द सवालों में
"अब भी कईं जवाब हैं बाकी" बोल रही है जिन्दगी !!
waah!!kya baat hai..[KU]sangati ka aisa asar bhi khuub hai..pahli kavya rachna aap ki bahut badhiya hai.
sach mein bhaav abhivyakti achchee kar paye hain...badhaayee.
आज भी उलझा हुआ हूं उन्ही चन्द सवालों में
"अब भी कईं जवाब हैं बाकी" बोल रही है जिन्दगी !!
waah!!kya baat hai..[KU]sangati ka aisa asar bhi khuub hai..pahli kavya rachna aap ki bahut badhiya hai.
sach mein bhaav abhivyakti achchee kar paye hain...badhaayee.
तुकबन्दी ही सही निकली तो पँ. जी के मुख से है । वाह वाह तो कहना ही पड़ेगा । वैसे फोटो भी बहुत सही लगाया है ।
आपने तो बातों बारों मे एक बडिया पोस्ट दाग दि हैतो
कबीरा संगत साधु की कभी ना निश्फल जाये
बैठे 2 टिप्पणी हम भी दिये चटकाये
यूँ तो जिधर देखो भीद है जमाने की
पर कहीं कुच अपना स टटोल रही है ज़िन्दगी
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति है आभार्
सारगर्भित एवं प्रेरक रचना।
धर्म की व्याख्या के बहाने जीवन के गहरे सूत्र भी आपने उपलबध करा दिये।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
ha ha ha majaa aagayaa shuruyaati lekh ke paraa to khaasa dilchasp rahe niche zindagi ke baare me kitne karine se aapne aapne man ke bhav ko likhaa hai.. bahot khub... dhero badhaayee aapko sahib...
arsh
bahut hi behtareen hai......aapne to apne mann ki vyatha hi jahir kardi yakin maniye ye bhi ek bahut hi accha hunar hai.....blog me aane ke liye dhanyawaad
sharmaji sadar namaskar....mere blog par ane aur tippani ke liye dhanyawad.....jyotish interesting subject hai ....aur apka blog bhi...badhai
Yun hi likhte rahiye.Shubkamnayen.
कुछ नया भी लिखें, पाठकों की परीक्षा कब तक लेंगे।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
भाई तारीफ ही करवानी है तो बोल देते हैं तुसी ग्रेट हो ।
क्या कमाल लिखा है ।
यूं तो,जिधर देखो उधर ही भीड है जमाने की
पर कहीं कुछ अपना सा, टटोल रही है जिन्दगी !!
but bdhya post ban gai hai aapki aap to blog par dal dijiye kbhi n kbhi dad to mil hi javegi .pnditain ko sunane ki bhi jrurat nhi hai .
badhai .vaise schmuch ham sab apna kuch ttol rhe hai .
आज तलक उलझा हुआ हूं उन्ही चन्द सवालों में
"अब भी कईं जवाब हैं बाकी" बोल रही है जिन्दगी !
बहुत खूब...इधर उधर,उधर इधर करते करते भी आपकी पोस्ट लाजवाब बन गयी है.
जनाब लिखते रहिये और पोस्ट करते रहिये बिना मिन्नतों के पाठक मिल जायेंगे ब्लॉग जगत में.
सुभान अल्लाह, क्या ग़ज़ल लिखी है पंडित जी. जब ओपनिंग बाल में ही इतना दम है तो ओवर पूरा होने पर क्या होगा? आप तो बस लिखते जाईये!
आप लिख ही नहीं रहें हैं, सशक्त लिख रहे हैं. आपकी हर पोस्ट नए जज्बे के साथ पाठकों का स्वागत कर रही है...यही क्रम बनायें रखें...बधाई !!
___________________________________
"शब्द-शिखर" पर देखें- "सावन के बहाने कजरी के बोल"...और आपकी अमूल्य प्रतिक्रियाएं !!
Good fill someone in on and this mail helped me alot in my college assignement. Thanks you for your information.
एक टिप्पणी भेजें