एक प्रतियोगिता जिसमे भाग ले रहे हैं 12 प्रतियोगी।जिसमें जीतने वाले को ईनाम के रूप में मिलेंगे पूरे 10 लाख रूपये। जी हाँ पूरे 10 लाख!। वैसे दस लाख बहुत बडी रकम होती है न!!जिसके भाग्य में विजेता बनना लिखा होगा उसकी तो जैसे लाटरी ही खुल जाएगी।इन रूपयों से आप अपने लिए कोई गाडी खरीद सकते हैं,मकान ले सकते हैं और चाहे तो बीवी बच्चों को (या किसी ओर को!)लेकर कहीं घूमने जा सकते हैं। यानि कि दस लाख रूपयों में आपकी बहुत सारी इच्छाएं पूरी हो सकती हैं। यार दोस्तों,मुहल्ले,नाते-रिश्तेदारों में नाम होगा वो अलग। सभी आपके भाग्य को सराहेंगे कि भई मुकद्दर हो तो इन जैसा। क्या किस्मत पाई है-पूरे दस लाख रूपये जीत कर आए हैं। माना कि इनमे से कुछ ईर्ष्या करने,जलने भुनने वाले लोग भी होंगे। लेकिन ये तो एक अच्छी बात है, समाज में जब तक सौ पचास लोग अपने से ईर्ष्या करने वाले न हों तो तब तक आदमी के स्टेटस का पता भी नहीं चलता।जब कुछ पास में होगा तभी तो जलने वाले होंगे न। जिसके पल्ले कुछ है ही नहीं उससे भला कौन जलेगा।
खैर जाने दीजिए लोगों का तो काम ही जलना है,उन्हे जलने दीजिए। हाँ तो हम कहाँ थे? हाँ याद आया हम बात कर रहे थे प्रतियोगिता की जिसके विजेता को मिलेंगे पूरे 10 लाख रूपये। ये दस लाख का जिक्र होते ही पता नहीं क्यूं मुझे बार बार चक्कर सा आने लगता है, शायद बहुत बडी रकम है न इसलिए। वैसे भी हमने अपनी सारी जिन्दगी में दस लाख रूपये इकट्ठे देखे कहाँ हैं सो चक्कर आना तो जायज है:)।
आप लोग भी सोच रहे होंगे कि ये क्या दस लाख-दस लाख लगा रखी है; पूरी बात तो बता ही नहीं रहे। खैर चलिए बताए देते हैं तनिक धीरज तो रखिए भाई। हाँ तो ये दस लाख रूपये आप भी जीत सकते हैं वो भी बडी आसानी से, बिना कुछ खास मेहनत किए।
जैसा कि मैने आपको बताया कि एक प्रतियोगिता है जिसमें 12 लोग भाग लेंगे, उनमे से 11 लोगों को हरा कर जो आखिरी प्रतियोगी बच जाएगा, वो ईनाम के पूरे 10 लाख रूपये(लो जी फिर से चक्कर आने लगे!) अपने घर ले जाएगा।
क्या कहा! उसके लिए हमें करना क्या होगा?।
अरे बता रहे हैं भाई! तनिक धीरज नाम की भी कोई चीज होती है कि नाहीं। 10 लाख क्या ऎसे फोकट में ही मिल जाएगा, उसके लिए कछु न कछु तो करना ही पडेगा न।
हाँ तो चलिए बताए देते हैं कि आपको क्या करना होगा। प्रतियोगिता में कईं राउण्ड होंगें। हरेक राऊण्ड मे से एक हारने वाला प्रतियोगी बाहर निकलता जाएगा। आखिर में जो बचेगा वो बन जाएगा लखपति.पूरे दस लाखपति।
सबसे पहले राउण्ड में आप लोगों के सामने एक प्लास्टिक का बडा सा भगोना टाईप कोई बर्तन रखा जाएगा। जिसमे होगा लाल लाल टमाटरों का सूप। सूप का नाम सुनकर आपके मुँह में पानी काहे आने लग पडा भाई। तनिक ठहरिए अपनी जीभ को कन्ट्रोल में रखिए और आगे भी सुन लीजिए। हाँ तो सुनिए, टमाटरों के सूप में होंगे ढेर सारे बाल। आपको क्या करना है कि अपने हाथ पीठ पीछे बाँधकर उस भगोने में से वो बालामृ्त पेय अपने मुँह में भरकर पास में ही रखे दूसरे वाले एक भगोने में डालना है। यानि कि बिना हाथों का प्रयोग किए सिर्फ मुँह के जरिए उस भगोने को पूरा का पूरा खाली करना है। बारी बारी से सभी प्रतियोगियों को वो भगोना खाली करना पडेगा लेकिन न तो वो बर्तन बदला जाएगा और न ही वो बालों वाला टमाटो सूप।
क्या कहा! ये तो सब का मुँह से निकला जूठन है, हम नहीं करेंगे।
अरे भाई ऎसा काहे सोचते हो। एक दूसरे का जूठन से तो आपस में प्रेम बढ्ता है। फिर दस लाख रूपयों का भी तो सवाल है।
लो जी आगे की सुनिये, अगले राऊण्ड में आपको एक बडी सी जिन्दा मछली दी जाएगी जिसे आपको अपने दातोँ से छीलकर छोटे छोटे टुकडों में बाँटना होगा।
अरे! आप तो फिर से बिदकने लगे। क्या कहा! ये तो जानवरों का काम है।
अजी छोडिए,आप भी इक्कीसवीं सदी में रह के न जाने कौन से जमाने की बात कर रहे हैं। जब बिना ब्याह किए ही लडका-लडकी इकट्ठे रह सकते हैं, फैशन के नाम पर कपडों का त्याग करके नंगा रहा जा सकता है तो फिर आप ये इत्ता सा काम करने में काहे बिदक रहे हैं भाई। वैसे भी, दस लाख क्या ऎसे ही फोकट में मिल जाएंगे। खैर छोडिए आप आगे सुनिए।
तीसरे राऊण्ड में आपको ज्यादा कुछ खास नहीं करना है। आपको एक हाथ में गोबर लेकर ( जित्ता जोर से खींचकर मार सकते हैं) सामने वाले के मुँह का निशाना बाँधकर मारना है। अगर आपका निशाना सही लग गया तो समझिए आप अगले राऊण्ड के लिए पास वर्ना घर जाकर पहले निशाना लगाने की प्रैक्टिस कीजिए। तब अगली बार भाग लीजिएगा।
अभी आपको तीन राऊण्ड के बारे में बता दिया है। अगर आप यहाँ तक पहुँच गए तो बाकी के राऊण्ड के बारे में भी आपको आगे बता दिया जाएगा। वैसे चिन्ता मत कीजिए आगे भी कोई ज्यादा मुश्किल नहीं है। बहुत ही आसान है जैसे कि जिन्दा कीडे मकोडे खाना वगैरह वगैरह।
क्या कहा! ये तो पाप है!
लो कल्लो बात। भई आप ऎसा क्यूँ सोचते हैं। आप ये जानिए कि ऎसा करके एक तरह से आप पुण्य का ही काम कर रहे हैं।
कैसे?
भाई मेरे कीडे मकोडों की जिन्दगी भी कोई जिन्दगी है। आप तो एक तरह से इन्हे इस कीट योनि से मुक्ति प्रदान कर रहे हैं। है न पुण्य का काम्! बस आँख मूंदकर और अपने भगवान का (या फिर शैतान का) नाम लेकर झट से मुँह में डाल लीजिएगा। वैसे भी इनमे कोन सी कोई हड्डी वगैरह होती है।
क्या कहा! आप इसमें हिस्सा नहीं लेंगे।
अजी छोडिए! नहीं भाग लेना तो न सही। हम कौन सा आपके भरोसे बैठे हैं।भाई मेरे ये आज का इण्डिया है, यहाँ बिना ढूँढे भी हजारों-लाखों मिल जाएंगे जो कि चन्द पैसों के लिए जूठन,गोबर और कीडे-मकोडे तो क्या आदमी का माँस भी खा जाएँ। यहाँ तो फिर भी दस लाख रूपयों का सवाल है।
वैसे तो मैं टेलीवीजन जैसी बीमारी से बिल्कुल ही दूर रहने वाला प्राणी हूँ। ज्यादा से ज्यादा कभी महीने बीस दिन में समाचार सुनने का मन किया तो देख लिया वर्ना नहीं। परसों समाचारों के लिए जैसे ही टी.वी देखने का मन बना तो देखा कि बेटा अपने कमरे में बैठा बडा मग्न होकर कोई कार्यक्रम देख रहा है। मन में उत्सुकता हुई कि देखूँ तो सही कि ये इतने ध्यान से कौन सा कार्यक्रम देख रहा है। मैने पूछा कि बेटा क्या देख रहे हो? तो झट से बोला कि पिता जी देखिए बहुत बढिया प्रोगाम आ रहा है, इसमें जीतने वाले को दस लाख रूपये ईनाम में मिलेंगे। मैंने लगभग दस पन्द्रह मिन्ट उसके साथ बैठकर वो प्रोग्राम देखा होगा कि बस इतने में ही दिमाग भन्ना गया। क्या देखता हूँ कि प्रतियोगीयों को कभी जूठन खाने का कहा जा रहा है,कभी मुँह पर गोबर मलना तो कभी जिन्दा मछली खाने को और प्रतियोगी भी अपने अपने क्रम से बडी आसानी से हँसते मुस्कुराते हुए किए जा रहे हैं। सारे के सारे प्रतियोगी अच्छे घरों के दिखाई दे रहे थे,जिनमें लडके-लडकियाँ दोनो शामिल थे। सिर्फ 15 मिन्ट ही वो कार्यक्रम देखा होगा कि गुस्से से दिमाग ऎसा भन्नाया कि सबसे पहला काम ये किया कि झट से केबल की तार निकालकर साईड मे इकट्ठी करके रखी। कल केबल वाले को बोलकर कनैक्शन भी कटवा दिया।
लेकिन कल से एक बात जो दिमाग से निकल ही नहीं रही कि आखिर इन्सान पैसों के लिए क्या कुछ कर सकता है। हम लोग देखते हैं कि अक्सर मीडिया को दोष दिया जाता है कि वो समाज को पतन की ओर मोड रहा है।लेकिन मैं ये नहीं समझ पा रहा हूँ कि जो लोग इनाम के लालच में ऎसे कार्यक्रमों में भाग लेते हैं उनकी बुद्धि क्या घास चरने चली जाती है। कल को कोई चैनल ऎसा कार्यक्रम बनाए जिसमें कि प्रतियोगिओं को इन्सान का माँस खाना पडे,मल-मूत्र का सेवन करना पडे तो इसका मतलब कि लोग तो वो भी करने को तैयार हो जाएंगे।
हे प्रभु! पता नहीं इन्सान क्या से क्या बनता जा रहा है। किसी ने शायद सच कहा है कि पैसा इन्सान से कुछ भी करा सकता है।
12 टिप्पणियां:
वत्स जी मै तो समझी कि आपापने ब्लोग पर कोई प्रतियोगिता ले कर आ रहे है---खैर अच्छा हुआ नहीं तो चैनल वालों का धन्धा चौपट हो जाता आपने सही कहा है आज कल पैसा ही आदमी का दीन इमान होता जा रहा है बडिया पोस्ट आभार्
ये दुनिया गजब की, आदमी जब भ्रूण खा सकता है तो क्या नहीं कर सकता.
आप ने सही कहा है. इंसान आजकल भागे जा रहा है, भागे जा रहा है और मरे जा रहे हैं पैसों के पीछे. यह दौड़ कहाँ जाकर रुकेगी नहीं मालूम.
आज मुझे आप का ब्लॉग देखने का सुअवसर मिला।
वाकई आपने बहुत अच्छा लिखा है।
आशा है आपकी कलम इसी तरह चलती रहेगी और हमें अच्छी -अच्छी रचनाएं पढ़ने को मिलेंगे, बधाई स्वीकारें।
आप मेरे ब्लॉग पर आए,और एक उत्साह वर्धक प्रतिक्रिया किया... शुक्रिया.
आप के अमूल्य सुझावों का 'मेरी पत्रिका' में स्वागत है...
…Ravi Srivastava
From- Meri Patrika
www.meripatrika.co.cc
हाल ही में मुम्बई में एक चैनल ने सड़क पर जाती लड़कियों से कहा कि जो भी दो मिनट के लिये अपना टॉप उतार देगी, उसे तत्काल दस हजार रुपये दिये जायेंगे, और लड़कियाँ तैयार भी हो गई थीं, ज़ाहिर है कि उनमें से सभी उच्च वर्ग(?) की थीं… पतन की पराकाष्ठा अभी बाकी है… वह तब होगी जब हम सड़क चलते सेक्स देखेंगे या एक व्यक्ति की 40-50 प्रेमिकाएं होंगी सभी एड्स से ग्रसित होंगी… शायद वह "पीक पॉइंट" होगा…
पतन की प्रकष्ठा है ये सब । आदमी के अन्दर का आदमी पन खत्म हो चुका है । इसी लिये मै टीवी बहुत ही कम देखता हू ।
ये दुनिया गजब की है पैसे के लिए कुछ भी कर सकती है
इनाम के अलावा प्रसिद्धि ऐसा करने की प्रेरित करती है................. शायद इन लोगों के हाथ १० लाख में से १ या २ ही लाख हाथ आयें पर ............ मीडिया में आने का बुखार, प्रसिद्धि पाने का खुमार आज के युवा को आकर्षित करता है............. और मीडिया तो पश्चिम को फौलो करता है............. अच्छा लिखा है समाज की इस नयी बिमारी की बारे में
Baap bara na bhiya...
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
लालच ने इंसान को अँधा कर दिया है. टीवी पर आजकल ऐसी कई घटिया प्रतियोगिताएं आ रही हैं, जिनसे लोगों का मानसिक स्तर तो विकसित नहीं होता लेकिन मानसिक कुरीतियाँ जरूर विकसित हो जाती हैं. आपने अच्छा लेख लिखा. ...शुक्रिया
साक्षरता बढ़ रही है, इन बातों से क्या यह सिद्ध हो सकता है.अक्षर पहचानना आना, डिग्री हासिल कर नौकरी प्राप्त करना और नौकरी प्राप्त कर मालिक की जी-हजूरी बजाते विवेक और सद्ज्ञान छोड़ कैसे भी कर्म जब आज का तथाकथित पढ़ा- लिखा व्यक्ति कर सकता है तो फिर समझ ही जाना चाहिए की आने वाले दौर में पैसा आदमी से और भी न जाने क्या-क्या करवाएगा, आपके लेख में तो मात्र कुछ मिसाले हैं पर कुत्सितों के दिमागों में और क्या-क्या पनप रहा है, समय दिखायेगा जरूर.
चिंतापरक लेख पर बधाई.
पंडित जी आपने तो एक छोटा सा नमूना देखा है | भविष्य मैं और भी कई खतरनाक किस्म के प्रोग्राम आने वाले हैं | आपने बहुत अच्छा किया जो केबल का connection हटा लिया | केबल कनेक्शन हटाने पे बधाई स्वीकार करें |
दुःख की बात ये है की ये नगा नाच तथाकथित अंग्रेजी स्कूल के अल्ट्रा माडर्न लोग करते हैं , पर बदनाम पुरे समाज को किया जाता है |
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