इस लेख को पढने वाले सभी पाठकों विशेष रूप से मुसलमान भाईयों को एक बात मैं पहले ही स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि इसे पढते समय कृ्प्या इस दृ्ष्टिकोण से न सोचें कि यह एक हिन्दू द्वारा लिखा गया है।यह मैं इसलिए कह रहा हूँ कि कहीं आप लोग ये न सोचें कि मैं किसी धर्म विशेष की तरफदारी कर रहा हूँ। आप सब से निवेदन है कि कृ्प्या एक बार खुले दिमाग से विचार करके देखें कि आखिर हमारें में ऎसी कौन सी कमियाँ हैं,जिससे कि इस देश,दुनिया और समाज के साथ ही साथ अब इस ब्लागजगत में भी हिन्दू और मुसलमान के नाम पर आपस में दूरियाँ बढती चली जा रही हैं, क्यूं हम दूसरे के धर्म का सम्मान न करके सिर्फ अपनी ही अपनी हाँकने में लगे हुए हैं।
एक सच्चे धार्मिक व्यक्ति का यह नैतिक कर्तव्य बनता है कि वो महापुरूषों,संतो-महात्माओं के वचनों का पालन करे,उनके दिखाए मार्ग का अनुसारण करे,अब वो महापुरूष चाहे किसी भी धर्म,जाति,सम्प्रदाय से संबंध क्यों न रखते हों। वैसे भी सत्पुरूष धर्मों और जातियों के बंधन से परे होते हैं---- उनकी शिक्षाएं,उनके विचारों को किसी धर्म,देश या काल के बन्धन में नहीं बाँधा जा सकता,उनके विचार सब के लिए उतने ही उपयोगी हैं,जितने कि उस धर्म विशेष के मानने वाले के लिए-----हजरत मोहम्मद जितना आपके हैं,उतने ही मेरे भी हैं। अब यदि मैं "जय मोहम्मद,जय मोहम्मद" कहूँ तो क्या कोई मुझे रोक सकता हैं---हर्गिज नहीं। ये मेरी इच्छा है कि मैं अपने ईश्वर को किस रूप में ध्याता हूँ। ऎसा करने से मुझे न तो कोई कुरआन रोक सकती है,न गीता और न ही इस देश का कानून।
एक बात ओर (जैसा कि मैने पहले भी कहा है) कि किसी भी व्यक्ति के लिए महापुरूषों,सन्तों की आज्ञा,उनके वचन शिरोधार्य होने चहिए--------आप हजरत साहब और कुरआन के फरमाबर्दार हैं,होना भी चाहिए;लेकिन कुरआन में शायद ये कहीं नही लिखा होगा कि आप लोग अपने धर्म का प्रचार करने के लिए दूसरे धर्म के धर्मग्रन्थों का आश्रय लें,उनसे तुलना करें। होना तो ये चाहिए कि हम अपने धर्मग्रंथों की शिक्षाओं पर अमल करते हुए पहले स्वयं उन्हे अपने व्यवहार में सम्मिलित करें,फिर बाकी समाज को भी उससे अवगत कराया जाए ताकि समाज भी उनसे लाभान्वित हो सके। ये नहीं कि अपने धर्म को बडा दिखाने के उदेश्य से हम लोग अन्य दूसरे धर्मों से उसकी तुलना करने बैठ जाएं। अब हजरत साहब नें अपनी जिन्दगी में सैंकंडों,हजारों बार ये कहा है कि "मैं एक मामूली आदमी हूँ" तो क्या उनका हुक्म मानने के नाम पर आप लोग उन्हें मामूली आदमी ही मानने लगेंगें। चलिए हजरत तो ईश्वर के दूत थे, आपके सामने कोई उच्च पद प्राप्त या फिर कोई ऊंची शख्सियत का व्यक्ति आए और शालीनता दिखाते हुए कहे कि भई मैं तो एक नाचीज,अदना सा आदमी हूँ तो क्या आप लोग उनके व्यक्तित्व अनुसार व्यवहार न करते हुए उन्हे नाचीज और अदना इन्सान मान लेंगें?। अगर नहीं तो फिर हमें इस देश के दूसरे पैगम्बरों(श्रीराम,कृ्ष्ण,बुद्ध,नानक इत्यादि) को भी उसी दृ्ष्टि से देखना चाहिए,जिस दृ्ष्टि से हम हजरत मोहम्मद साहब को देखते हैं।
मैं आप लोगों से सिर्फ इतना जानना चाहूंगा कि क्या आप इस्लाम के इस फरमान को नहीं मानते कि "दुनिया के सभी मजहब सच्चे है"। हर मुल्क और हर कौम में अल्लाह नें अपने पैगम्बर भेजे हैं। तो फिर ऎसी हालत में हजरत रामचन्द्र जी या हजरत कृ्ष्ण जी कहने में आप लोगों को क्या ऎतराज है। मुहम्मद साहब की जय बोलते हैं तो फिर रामचन्द्र जी की जय बोलने में किसी को क्या बुराई है? भई इससे तो आपसी मोहब्बत ही बढेगी और मोहब्बत जैसे धर्म के आगे तो दुनिया के सभी धर्म फीके हैं।
जब इस्लाम मानता है कि हर कौम और मजहब के पैगम्बर अल्लाह के ही भेजे गए पैगम्बर हैं और हिन्दू भी मानता है कि जगत की समस्त विभूतियाँ ईश्वर का अंश हैं तो इस प्रकार आपके मजहब के मुताबिक राम,कृ्ष्ण,बुद्ध,महावीर वगैरह भी अल्लाह के पैगम्बर हैं और हिन्दी धर्म के मुताबिक ईसा,मुहम्मद वगैरह "ईश्वर के अंश" हैं,बल्कि हिन्दू धर्म नें तो अपना ढाँचा ही ऎसा बना लिया है कि जो जो हिन्दूस्तान में आकर बसता जाए,वो अपनी विशेषताएं रखते हुए भी हिन्दू मजहब कहलाता जाए। हिन्दू धर्म के इस ढाँचे का फायदा उठाकर क्यों न देश के धार्मिक झगडों,विवादों,तनावों को दफनाकर आपसी प्रेम और सौहार्द का वातावरण निर्मित किया जाए.......तो फिर इस नेक काम की आज से ही शुरूआत करते हुए हम भी बोलते हैं कि "भगवान हजरत मोहम्मद की जय" और आप भी बोलिए कि "पैगम्बर रामचन्द्र जी की जय"
46 टिप्पणियां:
"दुनिया के सभी मजहब सच्चे है"
शायद यही मूलमंत्र है जो हमे मज़हबी कटुता के चक्रव्यूह से बाहर निकाल सके.
बहुत सुन्दर और सारगर्भित आलेख्
एकं सद् विप्राः बहुधा वदन्ति !
जय श्रीराम,ईद मुबारक हो.सुन्दर आलेख्...
यस्य नास्ति स्वयंप्रज्ञा शास्त्र: तस्य करोति किम |
लोचनाभ्यां विहीनस्य दर्पण: किं करिष्यति ||
(जिसके पास अपनी बुद्धि नहीं है उसका शास्त्र क्या कर सकता है? आंखों से विहीन (अंधे) व्यक्ति का दर्पण क्या कर सकता है?)
अच्छा हो कि हिन्दू और मुस्लिम पहले 'मनुष्य' हों और बाद में कुछ और...
राम को भगवान ही रहने दें और मुहम्म्द को हजरत/पैगम्बर ही। इस घाल मेल सेकुलरी ने देश का बहुत अहित किया है। भगवान और पैगम्बर की अदला बदली कंफ्यूजन पैदा करती है।
हिन्दू और मुस्लिम अपने अपने पंथों को मानते हुए तथा विवाद के बिन्दुओं को नकारते हुए देश और समाज के लिए बहुत कुछ कर सकते हैं।
पं.डी.के.शर्मा"वत्स" जी बहुत सुंदर लिखा है, ओर जो सच्चे मन से उसे मानता है उस के लिये सब बराबर है,नाम अलग अलग चाहे हो, ओर जो दिखावा करता है, वो ही झगडे भी करता है. आज आप का लेख बहुत ही अच्छा लगा.
धन्यवाद
इतनी सुन्दर और सारपूर्ण पोस्ट लिखने के लिए आपका धन्यवाद.
बढ़िया-अलग तरह की पोस्ट.
पण्डित जी उल्टा लिख रहे हो, भगवान रामचंद्रजी को लिखो, पैगम्बर मुहम्मद सल्ल. को लिखो, मुहम्मद सल्ल.को आप भगवान नहीं कह सकते, वह अल्लाह के अंतिम संदेष्टा हैं,फिर भी आप उन्हें भगवान कहने की जिद करेंगे तो हम यही समझेंगे कि आप तसलीमा नसरीन के पास जाना चाहते हैं, सोच लो उसका अकेली का दिल नहीं लग रहा होगा मैं भी कोशीश करूंगा कि आपको उसके पास भेजदूं
दूसरी बातः पण्डित जी आपको शास्त्र ज्ञान भी नहीं है, मैंने चाणक्य बारे में आपको बताया था कि उसने 8 सोतों को जगाने से मना किया है, आज होता तो कहता कैरानवी को भी ना जगाओ, आपने मान लिया फिर डिलिट कर दिया था, जबकि चाणक्य ने 7 सोतों को जगाने से मना किया था,
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कि मुहम्मद सल्ल. कल्कि व अंतिम अवतार और बैद्ध मैत्रे, अंतिम ऋषि (इसाई) यहूदीयों के भी आखरी संदेष्टा हैं या यह Big game against islam? है
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इस्लामिक पुस्तकों के अतिरिक्त छ अल्लाह के चैलेंज
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स्मरणीय एवं विचारणीय पोस्ट !
उत्कृष्ट लेखन हेतु आपको बधाई
जय श्रीराम,ईद मुबारक हो.सुन्दर आलेख,,,,,,,,,,,,,,
बेहद सार्गर्भित पोस्ट लिखी आपने. बहुत शुभकामनाएं.
रामराम.
सुन्दर आलेख !
हम आपकी भावनाओं की कद्र करते हैं !
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गिरिजेश राव जी से अक्षरश: सहमत...
"अच्छा हो कि हिन्दू और मुस्लिम पहले 'मनुष्य' हों और बाद में कुछ और..."
"इस घाल मेल सेकुलरी ने देश का बहुत अहित किया है। भगवान और पैगम्बर की अदला बदली कंफ्यूजन पैदा करती है।"
यह घालमेल, छद्म सर्व धर्म समभाव और अपने धर्म को ऊंचा साबित करने की होड़ हमें आगे नहीं बढ़ा सकता है, हम बढ़ेंगे तो केवल तर्क, तथ्य, नियम, कानून, विज्ञान और कॉमन सेन्स को बढ़ावा देने से...
हाँ, मैं सेक्युलर हूँ।
"अब इस ब्लागजगत में भी हिन्दू और मुसलमान के नाम पर आपस में दूरियाँ बढती चली जा रही हैं"
पंडित जी, सही बात यह नहीं है कि "दूरियाँ बढ़ती चली जा रही हैं" बल्कि सही बात तो यह है कि "योजनाबद्ध तरीके से दूरिया बढ़ाने की साजिश की जा रही है"। अब यही देखिए न कि आप के इस लेख का उद्देश्य आपस के बीच की खाई को पाटना है पर यहाँ भी आ गए खाई को और गहरी करने वाले। आपसे अनुरोध है कि दूरी बढ़ाने वाली टिप्पणियों को तत्काल मिटा दें। बेहतर यही है कि न तो हम ऐसे लोगों के ब्लोग (बदनाम गली) में जाएँ और टिप्पणी करें और न ही इन लोगों को अपने ब्लोग में टिप्पणी करके दूरी बढ़ाने और कुप्रचार करने का अवसर दें।
अवधियाजी से सहमत। एक बेहतरीन अलग तरह का आलेख।
bahut sundar aur saargarbhit saM desh hai bahut bahut badhaaI ID mubaarak
आप तो ठेलते रहें पण्डिज्जी। पोस्टों का ध्येय ठेलन ही है। बाकी, भगवान हजरत मोहम्मद के लिये इस्लाम में स्पेस नहीं है!
जय हो इदी देवी की .......जिसके कारण आज ईद है.
यह बात अब धीरे-धीरे स्पष्ट होती जा रही है कि कुरान भी वेदों को ही प्रमाण मानती है। इसीलिये तो देश और दुनिया के तमाम बुद्धिजीवी यह कहते आये हैं कि हिन्दू धर्म दुनिया के तमाम पन्थों का सागर है। इसलिये इस्लाम को हिन्दू धर्म की एक शाखा मानने में ही भलाई है। हिन्दुधर्म में जैसे कबीरपन्थी, नानकपन्थी, चार्वाकपन्थी और अनेकानेक पन्थी हैं वैसे ही 'जेससपंथी' और 'मोहम्मदपन्थी' भी इसी के शाखा-प्रशाखा हैं। यही बात तो पुरुषोत्तम नागेश ओक पचासों वर्षों से कहते चले आ रहे हैं कि क्रिश्चिआनिटी वस्तुत: "कृष्ण नीति" है और काबा में शिवलिंग है। (वैदिक विश्व राष्ट्र का इतिहास)
ज्ञानजी की बात से सहमत.
आपने देखा होगा आपकी बात का किसी हिन्दु ने विरोध नहीं किया मगर मुसलमान ने जरूर किया. यही फर्क है. यह सदा से होता आया है. कोई कुछ नहीं कर सकता.
वत्स साहब ,
थोडा रूककर शायद आखिर में टिपण्णी दे रहा हूँ और सिर्फ यह कहना चाहता हूँ कि दो दिन पहले नवरात्र सुरु हुए , और आज ईद है ,पिछले एक महीने से चल रही है तब से अब तक आप चिठा जगत पर ज़रा ढूँढकर देखिये कि तकरीबन हर हिन्दू चिट्ठाकारो ने कितनी बार "ईद मुबारक" कहा ! और ज़रा दो दिन का लेखा जोखा भी देखिये कि कितने मुसलमान चिट्ठाकारो ने नवरात्रि की शुभ कामनाये अपने हिन्दू भाइयो को दी, आपको फर्क पता चल जाएगा और यहीं हम हिन्दू लोग मार खा गए ! (सब चलता है का attitude लेकर )
पंडित जी हाथी अपने रास्ते पर चलते हुए दुसरे छोटे मोटे जीवों को बचाता चलता है लेकिन गलियों के कुत्ते उसके चारों तरफ भौंकते हुए जबरदस्ती अपनी शामत बुलाते रहते हैं. कैरानवी धमका तो इस अंदाज में रहा है जैसे लादेन इसका सगा चाचा ही है या फिर अल्लाह ने इसे ही पैगम्बर की जगह भेज दिया है जो जब चाहे जिसको चाहे भस्म कर देगा. लगता है कैरानवी मिथुन की फिल्में कुछ ज्यादा ही देखता है. अबे पाकिस्तानी कुत्ते ब्लॉग पर क्या भौंकता है, हिम्मत है तो कैराना के ही किसी चौक पर खड़े होकर थोडा अपनी बकवास कर. वही जिन्दा दफ़न कर दिया जायेगा सूअर.
शर्मा जी, मैं पहली बार आपके ब्लोग पर आया हूं और वो भी आपके लेख का शीर्षक देखकर!
आपकी बात सही है की अल्लाह ने हर कौम के लिये पैगम्बर भेजे है.....लेकिन ये ज़िक्र कहीं नही है की सारे मज़हब सच्चे है...कुरआन में सिर्फ़ एक मज़हब को बताया गया है और वो है इस्लाम
कुल मिलाकर 1,25,000 पैगम्बर भेजे है और सब पर किताबें नाज़िल की है.... लेकिन कुरआन में नाम से 25 का जिक्र है और नाम से चार किताबों का ज़िक्र है।
ऐसा हो सकता है की राम,कृ्ष्ण,बुद्ध,महावीर ये लोग पैगम्बर हो....पक्का नहीं है...
मुह्म्मद साह्ब "ईश्वर के अशं" नहीं थे...वो तो बस अल्लाह के सन्देशवाहक थे
शर्मा जी, मैं पहली बार आपके ब्लोग पर आया हूं और वो भी आपके लेख का शीर्षक देखकर!
आपकी बात सही है की अल्लाह ने हर कौम के लिये पैगम्बर भेजे है.....लेकिन ये ज़िक्र कहीं नही है की सारे मज़हब सच्चे है...कुरआन में सिर्फ़ एक मज़हब को बताया गया है और वो है इस्लाम
कुल मिलाकर 1,25,000 पैगम्बर भेजे है और सब पर किताबें नाज़िल की है.... लेकिन कुरआन में नाम से 25 का जिक्र है और नाम से चार किताबों का ज़िक्र है।
ऐसा हो सकता है की राम,कृ्ष्ण,बुद्ध,महावीर ये लोग पैगम्बर हो....पक्का नहीं है...
मुह्म्मद साह्ब "ईश्वर के अशं" नहीं थे...वो तो बस अल्लाह के सन्देशवाहक थे
और अगर आपके कहे अनुसार ये मान लें की "राम,कृ्ष्ण" सब अल्लाह के पैगम्बर थे... तो आप अल्लाह के पैगम्बर की इबादत क्यौं कर रहे है????
सीधे अल्लाह की इबादत क्यौं नही करते क्यौंकि अल्लाह ने साफ़ कहा है "की अगर कोई मेरे साथ किसी को शरीक करता है तो वो कुर्फ़ करता है और काफ़िर कहलाता है।"
मेरे साथ किसी को शरीक ना करों, मैं पाक हूं, मै बेनियाज़ हूं.....
गिरिजेश राव जी का कथन बिल्कुल सत्य हैः
"राम को भगवान ही रहने दें और मुहम्म्द को हजरत/पैगम्बर ही। इस घाल मेल सेकुलरी ने देश का बहुत अहित किया है। भगवान और पैगम्बर की अदला बदली कंफ्यूजन पैदा करती है।"
वैसे भी भगवान जिस कौम को अपने योग्य समझते हैं वहाँ अवतार बन कर प्रकट होते हैं और जिसे अपने लिए अयोग्य समझते हैं वहाँ सिर्फ अपने दूत भेजते हैं स्वयं नहीं प्रकट होते।
एक बात और देखिये, काशिफ़ आरिफ़ अपनी टिप्पणी में लिखते हैं
मुह्म्मद साह्ब "ईश्वर के अशं" नहीं थे...वो तो बस अल्लाह के सन्देशवाहक थे
वहीं दूसरी ओर इन्हीं के भाई लोग उन्हीं मुहम्मद साहब को अवतार अर्थात् ईश्वर सिद्ध करने में लगे हुए हैं।
अब इन लोगों की किस बात को सही माना जाए?
श्रध्धा और भक्ति से भरा
ये माँ भवानी के प्रति सदीयों से
चला आ रहा अनुष्ठान ,
शक्ति उपासना का पर्व ,
नव रात्र
आपके जीवन में ,
हर्ष उल्लास व ऊर्जा लाये ...
इस शुभेच्छाओं के साथ ...
माँ दुर्गा इस नव रात्र में कृपा करें
कलुषित विचार धारा से ,
भाईचारे के बजाय ,
अपशब्द कहने से ,
वातावरण क्यों दूषित किया जा रहा है ?
भक्ति और साधना में मन लगे --
- लावण्या
सुन्दर आलेख!
हम आपकी भावनाओं की कद्र करते हैं!
मगर खुदा का करिश्मा यह भी देखिये कि मजहबों के बीच प्यार का यह गाँव अभी बसा भी नहीं कि जिहादी पहले ही आ गए धमकाने!
श्रीयुत एम् वर्मा जी ने सही लिखा है लेकिन श्री गिरजेश राव जी की टिप्पणी भी विचारणीय है साथ ही श्री जी के अवधिया जी की टिप्पणी पर भी आप विचार करेंगे ऐसी उम्मीद है
पुनश्च :एक बार फिल ब्लॉग पढ़ा और टिप्पणियाँ भी |वाकई ब्लॉग लिखना बहुत ही कठिन है ,बहुत सोच कर लिखना पढता है |दुष्यंत जी ने कहा है "" मत कहो आकाश में कुहरा घना है ,यह किसी की व्यक्तिगत आलोचना है |
मैं कभी भावना में बह कर कुछ जल्दबाजी में लिख जाता हूँ जैसे कि आज | आयन्दा से ध्यान रखूंगा
पंडित जी, किस-किस को समझायेंगे आप? लंगडे तैमूर से लेकर चुंधे चंगेज़ तक सभी बुतपरस्ती से हिदुस्तान को स्वच्छ करने का सपना लिए-लिए दफ़न हो गये मगर उनके भेजे को ज्ञान की रोशनी नसीब नहीं हुई. रश्दी आज भी लिख रहे हैं जबकि दुनिया भर में उनकी मौत का फतवा देने वाले को यमराज कभी के ले गए. सूरज रोज़ आता है मगर चमगादड़ के नसीब में एक दिन भी नहीं.
पंडित जी बहुत सुन्दर प्रयास है आपका, लेकिन अफशोश की उनकी दिमाग मैं ये उतारे तब ना | आप तो देख ही रहे हैं ना |
मैं अवधिया जी से सहमत हूँ |
काशिफ़ आरिफ़/Kashif Arif जी पहले तो ये की श्री राम का और श्री कृ्ष्ण के लिए तो प्रमाण मिलते हैं की उन्होंने कभी ईश्वर के लिए दुनिया हो मार्ग दिया पर मोहम्मद साहब का प्रमाण नहीं मिलता जैसे आप को श्री राम का और श्री कृ्ष्ण का नहीं मिलता........और आपकी जानकारी के लिए ये भी बता दूँ की आपकी कुरान से लेकर हर किताब या वेड में ईश्वर द्वारा कहा गया हैं की भक्त जिस रूप में मुझको चाहेगा मैं उस रूप में उसके पास जाऊंगा बस उसमें प्यार भक्ति का मिलन हो
पंडित जी,
क्या इंसानियत ही सबसे बड़ा और एक धर्म नही होना चाहिये? यह तेरे-मेरे का झगड़ा कभी खत्म नही होने वाला। दुनियाँ चाँद पर पहुँच जाये, टेस्टट्यूब से बच्चे पैदा हों या कुछ और भी क्यों ना हो पर बात जब अपनी गली की आती है तो हम भी कूड़ा दूसरे की गली में डालते हैं।
आलेख अच्छा है, एक नई सोच पैदा करने की बात की है पर यह कितने लोगों को पसंद आयेगी? सभी तो तेरी साड़ी मेरी साड़ी से सफेद्द कैसे? में उलझे हुये है या उलझाये गये हैं।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
आपका कवितायन पर आने का धन्यवाद और मूल्यवान टिप्पणी के लिये आभार, स्नेह बनाये रखें।
पंडित जी............ देरी से आपके ब्लॉग पर आया ........... शहर से बाहर हूँ ......आज आपके ब्लॉग पर आया तो पहले पहल आपका लेख पढ़ा ...... पहले उसकी बात .......... जैसे जैसे आपका लेख पढता गया .... लगा की आपने बिलकुल ठीक कहा है ..... इस अगर हम सब इस बात को समझ में तो इंसानों के दिल में जो नफरत का भाव है धर्म को लेकर वो ख़त्म हो सकेगा और इंसानियत की विजय, मनुष्यता की जीत होगी .............
अब जब इतनी सारी अलग अलग भाव की टिप्पणीं देखी तो मन में कहीं छोभ भी हुवा ........... लगा की इस बात के माध्यम से खींचा तानी क्यों शुरू हो गयी ........... लेख का मर्म क्यों नहीं समझा गया ............... क्या हम बस बहस में उलझना चाहते हैं ........ सोचने समझने की शक्ति क्या नहीं है इस समाज में .......... वैसे तो प्रबुद्ध वर्ग प्रतीक, कल्पना के माध्यम से बहुत कुछ समझ जाता है तो इस बात को क्यों नहीं समझा ............
आपको विजयदशमी की शुभ कामनाएं ..........
विजयदशमी की हार्दिक शुभकामनाएँ!
पहले इंसान बना, बाद मे धर्म बना है । इस लिये इंसान बडा है ना कि धर्म ।
आपकी भावनाओं की कद्र करता हूं। पर एक बात कहना चाहूंगा कि मोहम्मद साहब भगवान नहीं थे, वे पैगम्बर यानी कि देवदूत थे।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
शीर्षक उल्टा हो गया
Vats ji,
ham pahli baar aaye hain aapke blog par...bahut hi acchi rachna lagi aapki...vishv shanti ke liye behtareen prayas...
पंडित जी ......
आपको और परिवार वालों को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ
"Ye masjid hai ye bukhana,
Chahe ye mano, chahe wo mano,
Matlab to hai dil ko samjhana"....
Ye aalekh padh ke uprokt kavvalee yaad aa gayee...bade hee achhe tareeqese aapne vichar prakat kiye hain...badhayee ho !
Janam din kee shubhechha ke liye tahe dil se shukriya!
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