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गुरुवार, 25 फ़रवरी 2010

पता नहीं मन की ये दुविधा कब पीछा छोडेगी

मालूम नहीं क्यों, कभी कभी तो ऎसा लगने लगता है कि ये ब्लागिंग,फ्लागिंग कुछ नहीं--सब फालतू की टन्टेबाजी है--ऎसा लगता है कि अपनी कोई खुशी, कोई दुख, कोई जानकारी, मन में आया जरा सा कोई विचार अपने तक ही सीमित न रख पाना और उसे झट से एक पोस्ट के जरिये ठेल देना बिल्कुल एक भोले बालकपन का सा काम है। जब कभी अपनी किसी पोस्ट को इस दृ्ष्टि से देखता हूँ तो मानो ब्लागिंग के सारे उत्साह पर ठंडा पानी पड जाता है।
फिर कभी दूसरी विचारधारा बल पकडती है तो उस समय लगता है कि जैसे अपने मन के विचारों,भावों को प्रकट कर पाना हरेक के बस की बात नहीं होती; और आसान भी नहीं होता। इसलिए जो भी कोई इन्सान अपने विचारों को इस प्रकार प्रकट कर सके, कि उससे चन्द दूसरे अन्य लोग भी अपने को जुडा समझें, तो उसे औरों से विलक्षण और कुछ समर्थ ही समझा जाना चाहिए। इस विचारधारा के वशीभूत होकर बस खुद में एक तीसमारखाँ सी अनुभूति होने लगती है ओर हम झट से कोई नई पोस्ट लिखने बैठ जाते हैं  :)  
लेकिन एक ऎसी समस्या है, जिसने कि पिछले कईं दिनों से हमारा जीना हराम कर रखा है। वो यूँ कि कभी कभी ऎसा होता है कि जिस पोस्ट को हमने बडे चाव से लिखा। जब पोस्ट की तो खुद के साथ साथ चार लोगों को भी पसंद आई लेकिन कुछ दिन बाद जब दोबारा से अपनी उस पोस्ट को पढता हूँ तो ऎसा प्रतीत होने लगता है कि मानो इसे लिखकर मैने केवल समय का अपव्यय ही किया है। मन में ऎसे  विचार आने लगते हैं कि "क्या यार्! ये सब भी कोई लिखने की चीज है। लिखना ही था तो कुछ तो ढंग का लिखना चाहिए था"।
मेरे मन की यह दुविधा पता नहीं मेरा इस ब्लागिंग में पीछा कब छोडेगी। ऎसा लगने लगा है कि जैसे मेरे अन्दर कोई दो धुर विरोधी व्यक्तित्व विद्यमान हैं। जो चीज एक को पसन्द है, वो दूसरे को फूटी आँख नहीं सुहाती। इसी कशमकश के चलते आज तक हमारे इस ब्लाग का सक्रियता क्रमाँक 250-300 की संख्या पर ही अटका हुआ है----वर्ना तो समीर लाल जी और ताऊ जी, दोनों को न जाने कब का पछाड चुके होते(सिर्फ चिट्ठा सक्रियता क्रमांक के मामले में) हा हा हा...। बिल्कुल सीरियसली कह रहे हैं---मजाक मत समझिएगा :-)
हाँ तो हम कह रहे थे कि हमारे मन की ये दुविधा ही है, जो कि हमें चिट्ठाकारी के विजयरथ पर आरूढ नहीं होने दे रही । हमारी हालत तो रात के चौकीदार सी हो चुकी है---जो रात भर निरन्तर चलने के बाद भी कही नहीं पहुँच पाता, उसकी यात्रा सिर्फ उस मोहल्ले तक ही सीमित रहती है।
राम जाने!! पता नहीं ये दुविधा कब हमारा पीछा छोडेगी, या पता नहीं छोडेगी भी कि नहीं----डरते हैं, कहीं कोई साईकैट्रिक वाला मामला न हो जाए :-)

24 टिप्‍पणियां:

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

वत्स जी, उम्मीद है इस पोस्ट को ठेलने के बाद आपका मन हल्का हो गया होगा :)

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

कहीं कोई साईकैट्रिक वाला मामला न हो जाए।

हो भी सकता है किसी अच्छे डॉक्टर से चेक करवाएं।
मैने करवाया था तो उसने 33केवी के झटके दिये हैं चार अब आराम कर रहा हुँ।:)
कहें तो डॉक्टर झटका को भेज दुं!
जय हिंद

दिगम्बर नासवा ने कहा…

मुझे लगता है ऐसा हमेशा होता है .. क्योंकि उम्र के साथ साथ अनुभव बढ़ता जाता है और दृष्टिकोण बदलता रहता है ... इसलिए जब दुबारा उसी पोस्ट को देखते हैं तो लगता है इसको और भी ज़्यादा अच्छे या अलग तरीके से लिखा जा सकता था ... शायद ये सब से साथ होता है .... पर जो भी हो ... ये पोस्ट अच्छी रही .... आपको होली की बहुत बहुत शुभ-कामनाएँ पंडित जी ....

Unknown ने कहा…

आप तो पण्डित हैं! क्या आपको बताना होगा कि यदि आप गीता के उपदेश "कर्म कर और फल की चिन्ता मत कर" को ध्यान में रखेंगे तो किसी भी प्रकार की दुविधा होने का प्रश्न ही नहीं रहेगा।

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

नहीं तो मेरा फार्मूला अपनायें. चौबीस आईडी बनाकर अपनी पोस्ट पर चौबीस पसन्द और अड़तालीस टिप्पणियां भेजें जैसे कि अक्सर मैं करता हूं ;)

Alpana Verma ने कहा…

इसी पोस्ट को देखीए ..आप को लगेगा [थोड़ी देर में ]कि ये क्या लिख दिया..लेकिन यही बातें जो आप ने यहाँ लिखीं हैं...वो ना जाने कितने ब्लॉगगरों के दिल की बात है..इसलिए कई बार आप ऐसा कुछ लिख जाते हैं जो आप को लगता है कि बहुत मामूली सी बातें हैं मगर कोई जाना -अंजना ही उस एक बात से सबक लेता है या एक वाक्य ही उस पोस्ट का, उसकी सोच को बदल देता है ..इसलिए ज़्यादा सोचीए नहीं..बस जब दिल करे लिखिए ..ना करे ना लिखीए...
और रही बात...रेंक के बढ़ने कि घटने की तो उस के लिए एक इलाज़ है..वो यह..कि आप कुछ दिन के लिए अग्रीग्रेटरो पर जाना छोड़ दिजीये.
बहुत सुकून मिलेगा..ना कोई rank तालिका देखें -पसन्द नापसन्द -टिप्पणी संख्या -लोगों कि टिप्पणियाँ..सबसे ज़्यादा हिट..ये सब देख कर दिल compare karta hihai.. है ना?
--ना इन्हें देखें ना सोचें..यहाँ हिन्दी में बहुत से अच्छे लिखने vale हैं मगर टिप्पणी या हिट्स के नाम unke blog par पर २ या ३ दिखेंगे.
mera ek example-मैं अपने भारत दर्शन ब्लॉग पर बहुत मेहनत कर के चित्र तलाश कर के -कई जगह से जाँच कर के सामग्री ढूँढ कर -लिख कर एक पोस्ट बनाती हूँ..वहाँ मुश्किल से २-३ टिप्पणी मिलती हैं
कभी कभी लगता है कि इतनी मेहनत और समय खरच क्यों करूँ??
लेकिन मैं उस ब्लॉग के लिए रेंक या टिप्पणी नहीं देखती बस एक जो संतुष्टि मिलती है कि मैं ने खुद कुछ सीखा..वही काफ़ी होती है.
इसलिए मन की दुविधा छोड़िए ..जब तक समय और सेहत साथ दे..लिखते रहीए..'कुछ इधर की कुछ उधर की...'

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) ने कहा…

तो ऎसा प्रतीत होने लगता है कि मानो इसे लिखकर मैने केवल समय का अपव्यय ही किया है।

बिलकुल सही कहा आपने... मुझे भी ऐसा ही लगता है....

बेनामी ने कहा…

pandit ji lagta hai aap par bhi holi ka saroor chad gaya hai. poori masti ke mood mein likha aapne.
hamare saath bhi aisa hi hota hai.lekin hum toh mushkil se 6 mahine mein ek baar hi apne blog par likh pate hain. :)

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

होली बुलेटिन

दुविधा सुविधा में बदल सकती है!
आप 16 सोमवार का व्रत करें!
ध्यान रहे इसी सोमवार से
यह कार्य शुरू होना चाहिए!

होली-धुलैंडी में निराहार रहना होगा!
भूख लगे तो हमरे ब्लॉग से मिठाई
खा लेना!

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" ने कहा…

शास्त्री जी मिठाई कहाँ से खाएं....आपको कहा था लेकिन आपको मेल से भेजी ही नहीं :-)

राज भाटिय़ा ने कहा…

पं.डी.के.शर्मा"वत्स जी सब मर्दो के संग होता है, आप पोस्ट की बात कर रहे है, अजी जब भी कोई नयी कार लेता है या शादी करता है तो पछताता है कि थोडा ओर रुक जाता तो इस से अच्छा माडल मिल जाता/ थोडा ओर रुक जाता तो इस से सुंदर बीबी मिल जाती.... तो पडिंत जी जो लिख दिया, जो मिल गया उसी मै सवर करो जी..... वर्ना गये काम से यानि बिना पोस्ट के, बिना कर के, ओर बिना....... के रह जाते है,लेकिन यह तीनो तो आप के पास है:)

Arvind Mishra ने कहा…

मेरी बात तो अल्पना जी ने कह दी --

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

अब तो मन हल्का हो गया होगा?

होली की हार्दिक शुभकामनाएँ।।
--------
कुछ खाने-खिलाने की भी तो बात हो जाए।
किसे मिला है 'संवाद' समूह का 'हास्य-व्यंग्य सम्मान?

naresh singh ने कहा…

मै अल्पना जी की बात से सहमत हूँ | मै कभी सक्रियता क्रमांक नहीं देखता हूँ ना कभी टिप्पणीयों की परवाह करता हूँ किसी को पसंद आये या ना आये लिखते जाओ | दुबारा मत पढ़ो | अपना यही उसूल है |

शरद कोकास ने कहा…

अच्छे से होली मनाये सब ठीक हो जायेगा ।शुभकामनायें ।

दिगम्बर नासवा ने कहा…

आपको होली की बहुत बहुत शुभ-कामनाएँ ..

shama ने कहा…

Aisee duvidha to har bogger ko hoti hogi...kamobesh!

Arshad Ali ने कहा…

kabhi kabhi aise bichar mujhe bhi aane lagte hayn..jabki mai blog ka aadi bilkul nahi hun bas yun hin likhne me bishwas rakhta hun..

mujhe to yahi lagta hay ki mujhe blog wale agle pachas saal me bhi nahi siwkarenge.

बेनामी ने कहा…

Great post, been looking for something like that :D

बेनामी ने कहा…

I want to know just what Willa will do with that??

Sincere regards,
Bret

बेनामी ने कहा…

I need to know exactly what Clarence has to say about this?

बेनामी ने कहा…

Great post, I have been looking for something like that?!?

-Thank you,
Emmett

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