पंक्तिबद्ध हो चलना.........
हाथी का धर्म
समूह में विचरना..........
वानर का धर्म
डाली डाली उछलना..........
मानव का धर्म
सर्वधर्म सद्भाव और विश्व बन्धुत्व........
अरे! नहीं नहीं, रूकिये जरा
ये सब तो पिछले जमाने की बातें हैं
आज मानव का धर्म
स्वधर्म में आस्था
और परधर्म पर शंका...........
मेरा धर्म महान!!!
18 टिप्पणियां:
आज मानव का धर्म
स्वधर्म में आस्था
और परधर्म पर शंका....
Dikkat yehi hai. baki to sab thik hai.
वत्स साहब, ये आज यहाँ कह रहे है कि धर्म परिवर्तन पाप है, और यह भूल रहे है कि हिन्दुस्तान के ज्यादातर मुसलमान धर्म परिवर्तित है, जिसका सीधा मतलब हुआ कि वे सब पापी है !
मुझे याद है कि जब मैं छोटा था तो उस समय से करीब बीस साल पहले अपने एक विरादर ने जो कि लाहौर पढने गए थे उस जमाने में , वहीं एक मुस्लिम लडकी से शादी की और धर्म परिवर्तन कर पाकिस्तानी बन गए! अपना नाम खालिद रख लिया और वहा जिस गाँव में बसे उसका नाम भी "गोदियाल खालिद गाँव" रखा ! तो उस बात पर २० साल बाद गाँव/ कुटुंब में में बहस चल रही थी, तो मेरे दादाजी ने निष्कर्ष के तौर पर यह टिपण्णी की थी कि "जो सा,,,,,,,,,, ( अंगरेजी वाला ब्रदर इन लौ ) अपने परिवार, कुल, धर्म, देश का नहीं हुआ, वह दूसरे धर्म देश का क्या होगा ? वह तो महज एक मौकापरस्त स्वार्थी इंसान है, जब-जब उसे नमकहरामी का मौक़ा मिलेगा करेगा !
धर्म के जानकार लोगों से माफी सहित ....
धर्म के बारे में लिखने ..एवं ..टिप्पणी करने बाले.. तोता-रटंत.. के बारे में यह पोस्ट ....मेरा कॉमन कमेन्ट है....
http://laddoospeaks.blogspot.com/2010/03/blog-post_27.html
@गौदियाल जी,
बिल्कुल दुरूस्त फरमाया आपने कि जो अपने धर्म, अपने राष्ट्र का न हुआ तो उससे क्या उम्मीद की जा सकती है कि वो किसी अन्य धर्म/राष्ट्र के प्रति ईमानदार हो पाएगा...धर्म तो इन्सान को उसकी जडो, उसके संस्कारों से जोड कर रखने का नाम है।
वैसे आज पता कि आपके लिंक तो सीधे पाकिस्तान से जुडे हुए है :-)
waqaee???
बात में दम है |
आज मानव का धर्म
स्वधर्म में आस्था
और परधर्म पर शंका.
AAPNESAHI KAHA...
इन्सान सिर्फ चिन्तन से ही वास्तविक ज्ञान की प्राप्ति कर सकता है!!!!
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राष्ट्र जागरण धर्म हमारा > लम्हों ने खता की और सदियों ने सजा पाई http://myblogistan.wordpress.com/
"ये सब तो पिछले जमाने की बातें हैं
आज मानव का धर्म
स्वधर्म में आस्था
और परधर्म पर शंका..........."
बिल्किल सही आंकलन किया है आपने!
हीन भावना से हम इतनी बुरी तरह से ग्रस्त होते जा रहे है कि ठीक-गलत की जानकारी होते हुए भी बस खुद को श्रेष्ठ दिखाने(सिर्फ दिखाने) वाले कृत्य करते रहते है!खुद को ठीक साबित नहीं कर पा रहे है तो सामने वाले को गलत साबित कर दो,हो गया काम!ये सोच बढती जा रही है!
कुंवर जी,
Sriman ji Jabab hazir ho gaya hai.
padhe mera blog. www.taarkeshwargiri.blogspot.com
आज मानव का धर्म
स्वधर्म में आस्था
और परधर्म पर शंका...........
आज तो इसके अलावा बहुत कुछ है मानव का धर्म ...
दूसरों को लूटना ...
झूठ बोलना ...
पाप करना ...
धर्म बदलना ...
वो भी धर्म के नाम पर .... महान है मानव ... एक ही बात में कितना कुछ करता है ....
वाकई पंडित जी, सही फरमाया..आजकल अधिकतर यही हाल है.
सभी सू्क्तियाँ सुन्दर हैं!
सुंदर चिंतन.
रामराम.
-ताऊ मदारी एंड कंपनी
वत्स जी सही फ़रमाया आप ने, बहुत सुंदर.
धन्यवाद
पिछले जमाने की बातों में दम है. अभी भी मान ले तो किच-किच दूर हो जाये.
बिल्कुल सही बात कही आपने । पर समझता कौन है ?
आज इंसान का धर्म.
दूसरे को सुखी देखकर जलना,
अपना ही राग अलापते रहना,
अपनों की ही टांग खींचना,
इंसानियत छोड़ और सब कुछ करना...
जय हिंद...
Baat dharam parivartan ki nahi satay dharam me wapsi ki ho rahi hai
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