(दरवाजे पर दस्तक की आवाज)
ललित शर्मा:- अरी ओर भगवान! जरा देखना तो सही कौन नासपीटा इतनी सुबह सुबह दरवाजा खटकटा रहा है।
(इतनी देर में फिर से दरवाजे पर ठक ठक की आवाज सुनाई देने लगी)
ललित:- (खीझ कर) तुम मत सुनना! मुझे ही उठना पडेगा। हाँ भाई बोलो तो सही कौन हो। भई हमसे कोई गलती हो गई क्या जो इतनी सुबह सुबह दरवाजा ही तोडने पर तुले हो।
आगन्तुक:- अरे भाई पहले दरवाजा तो खोलिए! क्या बाहर से ही टालने का इरादा है।
ललित शर्मा:- ठहरिए आता हूँ!
"अरे वाह्! मिश्रा जी.....आईये आईये...धन्यभाग हमारे जो आप पधारे! आईये बैठिए...
मिश्रा जी आसन ग्रहण कर लेते हैं तो ललित जी अपनी धर्मपत्नि को आवाज लगाते हैं। "अरी ओ भागवान! जरा इधर तो आना..."
श्रीमति आती हैं तो ललित जी बडे हर्षित मन से उनका मिश्रा जी से परिचय कराते हैं।" देख आज हमारे ब्लागर मित्र मिश्रा जी आए हैं...जा जरा जल्दी बढिया से चाय-नाश्ते का प्रबन्ध कर.." सुनते ही श्रीमति जी रसोई की ओर प्रस्थान कर लेती हैं और इधर ललित जी अपने ब्लागर मित्र मिश्रा जी से वार्तालाप में व्यस्त हो जाते हैं।
"अच्छा मिश्रा जी! ये तो बताईये कि अचानक कैसे आना हो गया...न कोई सूचना, न फोन"
मिश्रा जी:- भई बात ये है कि हम आज आपसे अपना हिसाब किताब क्लियर करने आए हैं।
सुनते ही ललित जी हैरान, "हिसाब! अजी मिश्रा जी कैसा हिसाब ? हमने आपसे कौन सा लोन ले रखा है जो आप हमसे वसूल करने आए हैं।
अब पता नहीं इनके मन में क्या आया कि इन्होने धर्मपत्नि को आवाज देकर चाय नाश्ता भेजने से मना कर दिया। " जरा ठहर जाओ, चाय नाश्ता अभी मत भेजना..."
भई मिश्रा जी साफ साफ कहिए, हमारी समझ में कुछ नहीं आ रहा कि आप किस हिसाब किताब की बात कर रहे हैं"
मिश्रा जी अपनी जेब से एक नोटबुक निकालते हैं और उसके पन्ने उलटते हुए बोलते चले जाते हैं...."बात ये है कि पिछले कईं दिनों से मैं आपको फोन करके कहने भी वाला था, लेकिन फिर ये सोचकर रूक गया कि कुछ दिनों बाद मेरा रायपुर जाना होगा ही, सो उसी समय आमने सामने बैठ कर ही क्लियर कर लेंगें"
भई क्या क्लियर कर लेंगें ? कुछ पता तो चले....आप तो पहेलियाँ बुझाए चले जा रहे हैं"
"भई बताता हूँ, जरा रूकिए तो सही.....अच्छा ये बताईये कि ब्लागिंग में रहते हम लोगों को आपस में जुडे हुए एक साल से अधिक तो हो ही चुका है न ?"
"जी हाँ, बिल्कुल! आप तो हमारे नजदीकी मित्रों में से हैं"
"वो सब तो ठीक है! मित्रता अपनी जगह है और हिसाब किताब अपनी जगह"
"अरे! फिर वही बात! भाई कौन सा हिसाब किताब ?"
मिश्रा जी अपने हाथ में पकडी नोटबुक ललित शर्मा के आगे कर देते हैं। ये देखिए पिछले एक साल में हमने आपकी जिस जिस पोस्ट पर जब जब टिप्पणी की है, उन सबका हिसाब इसमें लिखा हुआ है। ये देखिए कुल 420 टिप्पणियाँ हमारे द्वारा की गई हैं, ओर ये इधर देखिए साल भर में हमारी पोस्टों पर आपने कुल कितनी टिप्पणियाँ की हैं, महज 136. अभी ले देकर आपकी तरफ हमारी 284 टिप्पणियाँ बकाया रहती हैं। लेकिन आप हैं कि लौटाने का नाम ही नहीं ले रहे। अभी कुछ दिनों से हमारी किसी भी पोस्ट पर आपकी कोई टिप्पणी नहीं आ रही...जब कि हमारी टिप्पणी रोजाना आपको पहुँच रही है। भाई ऎसा कैसे चलेगा?
"अरे मिश्रा जी! क्या बताएं आपको, आजकल बस कुछ समय ही नहीं मिल पा रहा.......वर्ना आपकी पोस्ट पर हम न टिप्पयाएं, ऎसा भला कभी हो सकता है."
"अरे वाह्! ये भी खूब कही...हमारी पोस्ट पढने के लिए आपके पास समय नहीं होता....ओर बाकी दिन भर जो 365 ब्लागों की कमेन्ट सूची में आपकी ये बनवारी लाल सरीखी मूच्छों वाली फोटू चस्पा मिलती है, वो शायद कोई जादू मन्तर से लग जाती होगी"
"ओह हो! अजी छोडिए भी इन बातो को... कुछ ओर सुनाईये"
"अरे ऎसे कैसे छोड दें....क्या हमारा समय फालतू का है जो हम आपको टिप्पणियाँ देने में खर्च करते हैं? क्या सरकार की ओर से बिजली हमें मुफ्त में मिलती है या इन्टरनैट सेवा कम्पनी हमारे बाबा जी की है, जिसके पैसे नहीं लगते! अगर इस जमाने में हम यूँ ही फोकट में दिन भर इन्टरनैट पर घूम घूम कर ब्लागों पर टिप्पयाते रहे न तो जल्द ही किसी गुरूद्वारे की शरण लेनी पड जाएगी। अरे भाई हम इतना समय और पैसा जो नष्ट करते हैं सिर्फ इसीलिए न कि हमें बदले में उसका कुछ प्रतिफल मिले, चाहे टिप्पणी के बदले टिप्पणी ही सही। लेकिन आप हैं कि उसमें भी धोखाधडी किए जा रहे हैं. ये तो सरासर हिन्दी ब्लागिंग के मूल सिद्धान्तों को नकारना हुआ। अगर आप अब भी इन्कार करते हैं तो हमारे पास सिर्फ दो ही रास्ते बचते हैं, या तो हम आपके खिलाफ अपने ब्लाग पर दो चार गरियाती हुई पोस्टें लिख मारें या फिर अपनी "चन्गू-मन्गू ब्लागर एसोसियशन" में अपनी शिकायत दर्ज करवाएं। अब आप ही बताईये कि हम क्या करें"
"अरे छोडिए मिश्रा जी, अच्छा चलिए आज आपकी शिकायत दूर कर देते हैं। रात भर जागकर आज आपकी सभी टिप्पणियाँ लौटा देता हूँ। अब तो खुश!"......चलिए चाय पीते हैं.....ओ भागवान!
"जी! आई!" कहते ही भाभी जी चाय नाश्ता ले आई.......मानो चाय की प्लेट थामे इन्तजार में दरवाजे के बाहर ही खडी हों...
दोनों परम मित्रों नें चाय नाश्ता किया....कुछ देर इधर उधर की बातें की और फिर मिश्रा जी दुआ सलाम करके वापिसी के लिए निकल लिए...ओर इधर ललित शर्मा जी इनका हिसाब किताब चुकता करने लैपटोप खोलकर रात भर बैठे रहे....जब सारा ऋण चुकता हो गया तो अगले दिन ही उधर से मिश्रा जी का फोन भी आ गया...आभार व्यक्त करने हेतु!
"हैल्लो! हाँ भाई ललित जी, आपकी टिप्पणियाँ वसूल पाई....इसके लिए आपका आभार. हाँ आगे से टिप्पणी साथ के साथ ही चुकता कर दिया करें. ज्यादा लम्बे चौडे हिसाब-किताब में गडबड होने का डर रहता है। अच्छा रखता हूँ, राम-राम्! भाभी जी को हमारी ओर से चरण स्पर्श कीजिएगा"
ललित जी नें फोन बन्द किया ही था कि साथ खडी उनकी श्रीमति जी पूछ बैठी--"अजी किसका फोन था?"
"वो कल जो आए थे अपने मिश्रा जी, उन्ही का था.....अरे हाँ याद आया" इतना कहते ही ललित जी नीचे को झुकने लगे.....अब पता नहीं उनकी कोई चीज गिर गई थी, जिसे कि वो उठाने के लिए झुके थे या फिर मिश्रा जी द्वारा फोन पर कहा गया अन्तिम वाक्य उन्हे याद आ गया था........राम जाने! :-)
50 टिप्पणियां:
अब तो टिप्पणी लेने में भी सतर्क रहना पड़ेगा। अगर किसी दिन उड़नतश्तरी या nice फेम सुमन जी हिसाब मांगने आ गए तो बची हुई पूरी जिंदगी हिसाब चुकता करने में निकल जाएगी और हिसाब फिर भी बाकी रह जाएगा। वैसे आइडिया अच्छा है। सतर्क करने के लिए धन्यवाद।
चलिए आपने भी हिसाब चुकता कर दिया ललित जी के साथ, वैसे वो मिश्रा जी का आखिरी वाक्य ललित जी ही क्या आप भी follow करते जनाव :)
हा..हा..हा.. मज़ेदार पोस्ट है..."
हम तो भाई टिप्पणियों के हिसाब करने के बजाय नौ-दो-ग्यारह हो जाना ही पसन्द करेंगे क्योंकि हमारे हिस्से में तो सभी लोगों को देना ही देना निकलेगा।
अब आयेगा ऊन्ट पहाड के नीचे
बडे खुश हो रहे थे कि मेरे हर पोस्ट को इतनी टीप मिलती है
सब पोस्ट धरी रह जायेन्गी
जब हिसाब होगा टिप्पणी का
सबको मुनीम रखना पडेगा
आगे से ये भी नही चलेगा कि अमुक ने अपको टीप दी और आप दमुक को पहुचा दो
दमुक आपको देगा नही और अमुक आपका पीछा छोडेगा नही
सबसे ज्यदा फ़ायदे मे सुमन जी और समीर जी रहने वाले है इनके इन्वेस्ट्मेन्ट हर ब्लोग प्पर है
पर आगे बेलेन्स ओफ़ पोस्ट कॆ साथ बेलेन्स आफ़ टीफ का हिसाब भी रखना पडेगा. अविनाश भाई शायद बच भी जाये पर आगे इस कारण से भी टीप पर मोडरेटर लगाना पडेगा. इतने ब्लोग है पत नही कब कौन टीप जाये.
साबधानी हटी और दुर्घटना घटी
वैसे वत्स जे ध्यान रहे हमारी ये टीप आप पर उधार है
अब आयेगा ऊन्ट पहाड के नीचे
बडे खुश हो रहे थे कि मेरे हर पोस्ट को इतनी टीप मिलती है
सब पोस्ट धरी रह जायेन्गी
जब हिसाब होगा टिप्पणी का
सबको मुनीम रखना पडेगा
आगे से ये भी नही चलेगा कि अमुक ने अपको टीप दी और आप दमुक को पहुचा दो
दमुक आपको देगा नही और अमुक आपका पीछा छोडेगा नही
सबसे ज्यदा फ़ायदे मे सुमन जी और समीर जी रहने वाले है इनके इन्वेस्ट्मेन्ट हर ब्लोग प्पर है
पर आगे बेलेन्स ओफ़ पोस्ट कॆ साथ बेलेन्स आफ़ टीफ का हिसाब भी रखना पडेगा. अविनाश भाई शायद बच भी जाये पर आगे इस कारण से भी टीप पर मोडरेटर लगाना पडेगा. इतने ब्लोग है पत नही कब कौन टीप जाये.
साबधानी हटी और दुर्घटना घटी
वैसे वत्स जे ध्यान रहे हमारी ये टीप आप पर उधार है
मेरा हिसाब यहा चुकता कर सकते है
http://hariprasadsharma.blogspot.com/
http://koideewanakahatahai.blogspot.com/
यहा भी
http://sharatkenaareecharitra.blogspot.com/
bahut achchhe... ab mera hisab kaise barabar hoga??
पहले तो मैंने समझा कि मैं कहाँ से फँस गया -राहत हुयी ,ऊ दूसरे वाले मिश्र जी हैं !
चलिए इस लेन देन में मैं भी शामिल हो जाता हूँ। रोचक पोस्ट।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
मज़ा आ गया पढ़ कर....
main to achchhi post padhkar tippani daan me vishwas rakhta hoon so ye liziye daan kar di.. :)
''Tippani daan, maha daan'' :)
हा हा हा
बहोत बढिया पोस्ट लिखी पंडत जी
सारी कसर लिकाड़ ली,कोई बात कोनी।
मिश्रा जी की तो टिप्पणी तै तो पैंडा छुट गया।
इब थारा भी हिसाब किताब बता दियो,
कितणा बाकी रह गया?
भइ उतणी जमा कराके रसीद ले ल्यांगे।
राम राम
हमारी किसी भी पोस्ट पर आपकी कोई टिप्पणी नहीं आ रही...जब कि हमारी टिप्पणी रोजाना आपको पहुँच रही है। भाई ऎसा कैसे चलेगा?
मज़ा आ गया पढ़ कर..
पंडित जी धन्यवाद मै अभी अपने ब्लांग से फ़ोन ना ओर अपना पता हटा देता हुं :) ओर आप हमारी राम-राम्! भाभी जी को हमारी ओर से चरण स्पर्श कीजिएगा"
... rochak !!!
सच है जी ..सतर्क हो गए हम अभी तो ब्लॉग्गिंग की शुरुवात है तो हिसाब क्लेअर कर के चल रहे है
बाकि भूल चूक लेनी देनी
हाय दईईईईईईईईईईईईईईईई.याआआआआआअ......
ई काआआआआआआआ....?
हा हा हा हा हा बहुत अच्छे जी , अभी चैक करते हैं बैलेंस फ़िर बताते हैं
वाह जी वत्स साहब, फ़ट्टे चक दित्ते।
शिव बटालवी का कलाम याद आ गया, "मैंनू ऐहो हिसाब लै बैठा"
बाकी विद्वान महोदय ने धमकी बड़ी सही दी कि या तो एसोसियेशन में कंपलेंट कर देंगे या दो चार गरियाने वाली पोस्ट लिख देंगे। साथ में यह और कहलवा देते कि टिप्पणी ठकुरसुहाती वाली ही चाहियें। किसी ने मतांतर किया तो बस कोपभाजन बनाना पड़ेगा, सारे कुम्हड़बतियां ही तो हैं। हा हा हा
पंडित जी, आप तो हमारी टिप्पणी मॉडरेशन के बुलडोज़र तले नहीं दबा दोगे?
सच में, बहुत दिनों के बाद खुलकर हंस पा रहा हूं।
आभार।
भाई साहब, बुरा ना मानो तो एक बात बताओ ............... यह कौन से वाले मिश्रा जी है या थे ??
मैं तो लिख लेता हूँ कि किसे किस दिन टिप्पणी किया है.
एक एक टिप्पणी का हिसाब लूँगा
मजेदार
पंडिज्जी,
राम! राम!
भूल चूक लेणी देणी,
म्हीनो बीतता ईँ हिसाब भेज दीनों, तो अठे मिलाण करवा के बकाया को चुकारो कर देणो। जे पूरो म्हीनों खड़ जासी तो फेर बकाया डूबत खाते।
राम! राम!
हा हा हा ....बहुत बढ़िया व्यंग ...हिसाब किताब रखना शुरू कर ही देते हैं..
मज़ेदार है जी
खुलेआम मस्त आलेख...मगर मेरा हिसाब कौन चुकायेगा?? हा हा!!
अरे पंडित जी !
आनंद आ गया ..बिलकुल सही लिखा है आपने ! आने वाले समय में लोग वाकई हिसाब किताब मांगने घर आ जायेंगे !
पूरा लेख पढ़े बिना छोड़ नहीं पाया आपकी लेखन शैली में बांधे रखने की शक्ति है महाराज !
शुभकामनायें
चलिए जी ये उपाय भी अच्छा सुझाया आपने.. आज ही एक नयी डायरी और एक नया कला और एक नीला पेन खरीद लता हूँ.. अपनी टिप्पणियों का हिसाब करने के लिए.....
बहुत बढ़िया..
ऑनलाइन बैंकिंग का उपयोग किया जाए
कम्प्युटर के जमाने में डाइरी !!
भई, पण्डित जी,
हम आपका इशारा समझ गये,
ये लो टिप्पणी
आपका व्यंग बहुत अच्छा है ....तीन-चार दिन पहले ऐसा ही कुछ हमने भी करने की कोशिश की थी .....इधर भी नज़र डाले ..और ..सयोंग की बात है हामारे व्यंग में भी ..पात्र का नाम मिश्रा जी ही है
http://athaah.blogspot.com/2010/05/blog-post.html
ये तो सरासर हिन्दी ब्लागिंग के मूल सिद्धान्तों को नकारना हुआ
ध्यान दिलाने के लिए शुक्रिया पंडित जी! कल से हम भी डायरी खोल कर बैठे थे। हिसाब चुकता करने का प्रोग्राम बना रहे हैं। जल्द ही ब्लॉगरों को उनके शहर पहुँच कर फोन खड़ख्ड़ाए जाएँगे।
भाभी जी को हमारी ओर से चरण स्पर्श कीजिएगा
बी एस पाबला
शानदार व्यंग्य-लेखन के लिए बधाई!
अब अपन को भी हिसाब रखना पड़ेगा।
खून के बदले खून
हाथ के बदले हाथ
और..
टिप्पणी के बदले टिप्पणी।
...नहीं तो ब्लागिंग के मूल सिद्धांतों के खिलाफ हो जाएगा।
मेरे खाते में यह एक टिप्पणी ब्याज रूप जमा कर लें।
मूल भी धीरे-धीरे चुकता कर दूंगा जी।
प्रणाम
बहुत ही शानदार और जानदार प्रस्तुति!हमने तो हिसाब ही नहीं लगाया था जी आज तक!वैसे कई बार तो पता भी नहीं चलता कि कहा-कहा टिप्पणी टिपका दी जाती है!कुछ तो राम के नाम की(मजबूरी में ही सही) मान लेंगे,पर.....
हिसाब भी जरूरी है!जगाने के लिए धन्यवाद वाली बात है जी.....
कुंवर जी,
बहुते मस्त पोस्ट, हम तो लेके वापस देना जानते ही नही है. ये वापस देना किसे कहते हैं?:)
रामराम.
क्या गजब व्यंग लिखा हैं, वाकई चाय-कॉफ़ी वाला किस्सा भी मस्त हैं
चरण स्पर्श करने के लिए ही झुके होंगे शर्मा जी कुछ चीज़ उठाने के बहाने
प्राप्ति ....कमेंट्स की!
पीठ खुजाने में दिक्कत है?
आओ! एसा कर लेते है...
मैं खुजलादूं आपकी...
बदले में , मेरी ;
तुम खुजला देना.
एक हाथ से मैंने दी तो,
दूजे से तुम लौटा देना.
कर से, कर [tax] ही की भाँति
अधिक दिया तो वापस [refund] लेना.
-मंसूर अली हाशमी
http://aatm-manthan.com
ललित भाई,
मिश्रा जी का पूरा नाम तत्काल खोला जाए...भ्रम की स्थिति न रहे और हम भी मिश्रा जी के हिसाब किताब का पूरा ध्यान रखें, इसलिए मिश्रा जी के पूरे नाम का सब ब्लॉगरजन को पता लगना सार्वजनिक हित में है...अन्यथा हमें आपसे आरटीआई डालकर ये सवाल पूछना पड़ेगा...
जय हिंद...
रोचक पोस्ट। अब तो हमें भी इस का हिसाब किताब रखना पड़ेगा...:))
पं जी , हम भी आ रहे है आपके पास टिप्पणियों का हिसाब लेकर कम से कम चाय नाश्ता तो मिलेगा ही |
हा हा हा………॥ज़रा हिसाब देख लूँ।
disclaimer ....
यह प्रस्तुति काल्पनिक है....किसी भी जिंदा या मृत व्यक्ति से इस घटना का मिलना मात्र एक संयोग हो सकता है....
वत्स जी....नायाब प्रस्तुति है आपकी...
धन्यवाद....
टिप्पणी बही खाता. हा हा हा!
वाह पंडित जी .... भई हमारा हिसाब भी कुछ बाकी हो तो बता दें .... इस बहाने से ब्लॉग पर आना मत रोकना ....
हा हा ... आज तो मज़ा आ गया पढ़ कर ... हिसाब किताब बहुत चलता है ब्लॉगजागत में ... आपने कइयों की दुखती रागपर हाथ रख दिया .....
misra ji app hamse badoni ke bhai hai par ham to ye khege ki hamari taraf se subha sham mata ji ke caran sprsh karna
अच्छा रहा यह भी।
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