हे पंगेच्छु ब्लागर!
तुम्हारे अंतस का ब्लागर कीट
नित्य नए पंगें का सृ्जन करता है
और करता है रूप बदल
नित्य नईं बकवास.....
नैट पर आते ही
अपने कलुषित मन
रूपी गधे पर सवार हो
प्रस्थित हो जाते हो तुम
किसी नए पंगें की खोज में....
और पंगों के नित्य नवीन
प्रयोग करके भी तुम
क्या हासिल कर पाते हो ?
महज चन्द टिप्पणियाँ!
और कुछ समानधर्मी
ब्लागरों की वाह! वाह!
किन्तु सच बताना.....
क्या तुम इन तुच्छ प्राप्तियों को
अपनी प्रयोगधर्मिता
एवं अनथक श्रम का
सही मूल्यांकन मानते हो ?
*बस यूँ ही,कविता/फविता जैसा कुछ :)
27 टिप्पणियां:
सुंदर पोस्ट
बढ़िया लिखा आपने, पंडित जी !
एकदम सार्थक एवं सटीक। सादर।।
पहले हम सिर्फ़ छपास पढ़ते थे. नए शब्द के लिए धन्यवाद.
"Pangechhu" shabd padhte hee bhaag lene kaa man kiya!
Pange se bahut dar lagta hai...! Bhagwaan bachaye!
पण्डित जी राम राम,
आपके इस विशेष ज्ञान पर हमारी सामान्य टिप्पणी अनुचित सी जान पड़ती है,,,,बस यही कहना चाहेंगे कि ये जो कविता/फविता सा जो कुछ भी है.......बहुतो उनकी औकात तो याद करवा ही देगा....
कुंवर जी,
"किन्तु सच बताना.....
क्या तुम इन तुच्छ प्राप्तियों को
अपनी प्रयोगधर्मिता
एवं अनथक श्रम का
सही मूल्यांकन मानते हो?"
गूढ़ प्रश्न है जिसका उत्तर शायद ही कोई देगा।
एकदम सार्थक एवं सटीक। सादर।।
आईये पढें ... अमृत वाणी।
हम तो यही कहेंगे
पगें न लिए हैं
न लेगें
जो देगें पंगे
उन्हे भरपूर मिलेंगें
आईये पढें ... अमृत वाणी।
जय हो महाराज की
पंगेच्छु ब्लागर... यह तो नया शब्द मिल गया इसका भी विश्लेषण करना पडेगा |
वे तो वही बताएगें पंडित जी !ब्लॉग गंगा में पंगेच्छु शब्द दान के लिए आभार!
बात तो सही कही है।
हमें तो आपके नए नए रूप देखकर नत्मस्तक होने को मन कर रहा है! कितने सलीके से आप बहुत से ब्लागर्स की मन की बात कह गए! हमें तो खूब आननद आया आपकी ये फविता पढकर!
प्रंणाम्!
आप भी कहां फंस गये इस चक्कर में...
आप अच्छा लिखते हैं लिखते रहिये...
पंगा लेने देने के लिये बहुत सारे लोग हैं..
पंगेच्छु रूपी बिच्छुओं से पंगा ले ही लिया आपने भी। ब्लॉग जगत की खैर करे इंटरनेट। जय हिन्दी ब्लॉगिंग।
सत्य वचन महाराज!
--
धन्य हो पण्डित जी!
बाह रोचक
पन्गेच्छु नव स्रिजित सन्स्क्रित शब्द के साथ की कविता अब वैसे पन्गे का दौर खत्म हो गया है लगता है महाराज्। पर कविता पढ के मजा आ गया।
बड़ा जबरदस्त प्रश्न कर बैठे आप तो उनसे. :)
सही कहा महाराज,
जैसे रंग बदलने वाली फ़ितरत के मालिक की तुलना गिरगिट से की जाती है, आने वाले समय में विवादप्रिय लोग ’ब्लॉगर’ नाम से जाने जायेंगे।
बढ़िया नामकरण कर दिया जी, ’पंगेच्छु ब्लॉगर।’
बात तो सही कही है।
लाजवाब रचना.................
बेमिसाल सच,
पर दिल है कि मानता नहीं..........
सुन्दर प्रस्तुति पर हार्दिक आभार
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
बहुत ही बढ़िया व्यंग्यात्मक रचना...लाजवाब
नए शब्द सृजन के लिए बहुत-बहुत बधाई
पंडित जी ये पन्गेच्छू शनि है या रहू मंगल है या केतु ये भी बताया होता। बडिया रचना आभार
वाह! वाह!वाह!
सुन्दर प्रस्तुति/कविता/फविता..
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