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शुक्रवार, 11 जून 2010

हे पंगेच्छु ब्लागर !!!

हे पंगेच्छु ब्लागर!
तुम्हारे अंतस का ब्लागर कीट
नित्य नए पंगें का सृ्जन करता है
और करता है रूप बदल
नित्य नईं बकवास.....

नैट पर आते ही
अपने कलुषित मन
रूपी गधे पर सवार हो
प्रस्थित हो जाते हो तुम
किसी नए पंगें की खोज में....

और पंगों के नित्य नवीन
प्रयोग करके भी तुम
क्या हासिल कर पाते हो ?
महज चन्द टिप्पणियाँ!
और कुछ समानधर्मी
ब्लागरों की वाह! वाह!

किन्तु सच बताना.....
क्या तुम इन तुच्छ प्राप्तियों को
अपनी प्रयोगधर्मिता
एवं अनथक श्रम का
सही मूल्यांकन मानते हो ?

*बस यूँ ही,कविता/फविता जैसा कुछ :)

27 टिप्‍पणियां:

Jandunia ने कहा…

सुंदर पोस्ट

शिवम् मिश्रा ने कहा…

बढ़िया लिखा आपने, पंडित जी !

Prabhakar Pandey ने कहा…

एकदम सार्थक एवं सटीक। सादर।।

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून ने कहा…

पहले हम सिर्फ़ छपास पढ़ते थे. नए शब्द के लिए धन्यवाद.

kshama ने कहा…

"Pangechhu" shabd padhte hee bhaag lene kaa man kiya!
Pange se bahut dar lagta hai...! Bhagwaan bachaye!

kunwarji's ने कहा…

पण्डित जी राम राम,

आपके इस विशेष ज्ञान पर हमारी सामान्य टिप्पणी अनुचित सी जान पड़ती है,,,,बस यही कहना चाहेंगे कि ये जो कविता/फविता सा जो कुछ भी है.......बहुतो उनकी औकात तो याद करवा ही देगा....

कुंवर जी,

Unknown ने कहा…

"किन्तु सच बताना.....
क्या तुम इन तुच्छ प्राप्तियों को
अपनी प्रयोगधर्मिता
एवं अनथक श्रम का
सही मूल्यांकन मानते हो?"

गूढ़ प्रश्न है जिसका उत्तर शायद ही कोई देगा।

Shekhar Kumawat ने कहा…

एकदम सार्थक एवं सटीक। सादर।।

आचार्य उदय ने कहा…

आईये पढें ... अमृत वाणी।

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

हम तो यही कहेंगे
पगें न लिए हैं
न लेगें
जो देगें पंगे
उन्हे भरपूर मिलेंगें
आईये पढें ... अमृत वाणी।

जय हो महाराज की

naresh singh ने कहा…

पंगेच्छु ब्लागर... यह तो नया शब्द मिल गया इसका भी विश्लेषण करना पडेगा |

Arvind Mishra ने कहा…

वे तो वही बताएगें पंडित जी !ब्लॉग गंगा में पंगेच्छु शब्द दान के लिए आभार!

vandana gupta ने कहा…

बात तो सही कही है।

बेनामी ने कहा…

हमें तो आपके नए नए रूप देखकर नत्मस्तक होने को मन कर रहा है! कितने सलीके से आप बहुत से ब्लागर्स की मन की बात कह गए! हमें तो खूब आननद आया आपकी ये फविता पढकर!
प्रंणाम्!

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

आप भी कहां फंस गये इस चक्कर में...
आप अच्छा लिखते हैं लिखते रहिये...
पंगा लेने देने के लिये बहुत सारे लोग हैं..

अविनाश वाचस्पति ने कहा…

पंगेच्‍छु रूपी बिच्‍छुओं से पंगा ले ही लिया आपने भी। ब्‍लॉग जगत की खैर करे इंटरनेट। जय हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

सत्य वचन महाराज!
--
धन्य हो पण्डित जी!

Unknown ने कहा…

बाह रोचक

सूर्यकान्त गुप्ता ने कहा…

पन्गेच्छु नव स्रिजित सन्स्क्रित शब्द के साथ की कविता अब वैसे पन्गे का दौर खत्म हो गया है लगता है महाराज्। पर कविता पढ के मजा आ गया।

HAKEEM SAUD ANWAR KHAN ने कहा…
इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
Udan Tashtari ने कहा…

बड़ा जबरदस्त प्रश्न कर बैठे आप तो उनसे. :)

संजय @ मो सम कौन... ने कहा…

सही कहा महाराज,
जैसे रंग बदलने वाली फ़ितरत के मालिक की तुलना गिरगिट से की जाती है, आने वाले समय में विवादप्रिय लोग ’ब्लॉगर’ नाम से जाने जायेंगे।
बढ़िया नामकरण कर दिया जी, ’पंगेच्छु ब्लॉगर।’

Saleem Khan ने कहा…

बात तो सही कही है।

Mumukshh Ki Rachanain ने कहा…

लाजवाब रचना.................
बेमिसाल सच,
पर दिल है कि मानता नहीं..........

सुन्दर प्रस्तुति पर हार्दिक आभार

चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर

राजीव तनेजा ने कहा…

बहुत ही बढ़िया व्यंग्यात्मक रचना...लाजवाब
नए शब्द सृजन के लिए बहुत-बहुत बधाई

निर्मला कपिला ने कहा…

पंडित जी ये पन्गेच्छू शनि है या रहू मंगल है या केतु ये भी बताया होता। बडिया रचना आभार

Alpana Verma ने कहा…

वाह! वाह!वाह!
सुन्दर प्रस्तुति/कविता/फविता..

www.hamarivani.com
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