आजकल देखने में आ रहा है कि बिल्कुल किसी महामारी की तरह से, ब्लागिंग सुधारोन्माद नाम का रोग भी बडी तेजी से फैलता जा रहा है. सच पूछिए, तो यह एक बहुत ही भयानक किस्म का रोग है, जो कि सिर्फ हिन्दी भाषी ब्लागिंग क्षेत्र में ही पाया जाता है। इस रोग से ग्रसित व्यक्ति बस हर वक्त कुछ न कुछ ऊल-जलूल सी हरकतें करता ही रहता है। इस नामुराद बीमारी के चँगुल में फँस कर बेचारा रोगी न तो घर का रहता है और न घाट का। अच्छा भला व्यक्ति बस महज कुछ दिनों में ही अर्ध-पागल की सी हालत में पहुँच जाता है। उठता-बैठता, सोता-जागता, नहाता-धोता, खाता-पीता, यहां तक कि न मालूम कैसी कैसी जगह में भी बस "गुन गुन" करता रहता है। दूसरों के चिट्ठों पर टिप्पणियों की भरमार देखकर तो रोगी को एकदम से भयंकर दौरा शुरू हो जाता है, जो लाख चिकित्सा करने पर भी शान्त नहीं होता। ब्लागिंग की दशा पर रोगी चीखता चिल्लाता है। पसन्द-नापसन्द, टिप्पणियों की कम-ज्यादा संख्या, निरर्थक लेखन,गुटबाजी इत्यादि कुछ ऎसे विषय हैं, जिन्हे देखकर तो उसे एकदम बुरी तरह से फुरफुरी सी आने लगती है। बस उसके बाद तो वो तुरन्त "ब्लाग सुधारक" की भूमिका में आ जाता है और झट से अपनी नेतागिरी की भडास मुफ्त में मिले ब्लाग पर छापकर और फिर उस पर लोगों की वाह! वाह्! देख आनन्दित हो खुशी से झूमने लगता है। इस रोग का अगर शीघ्र ही उचित इलाज न किया जाए तो फिर बहुत जल्द रोगी अर्ध-पागल से पूर्ण पागल की स्थिति में पहुँच जाता है।
अक्सर वे ही ब्लागर इस रोग के शिकार होते हैं जिनकी लेखनशक्ति का उचित विकास नहीं हो पाता. वर्तमान अनुसंधानों द्वारा यह प्रमाणित भी हो चुका है कि यह रोग आलतू फालतू प्रकृ्ति के ब्लागरों में ही पाया जाता है.
उपचार विधि:-ऎसे रोगी को सुबह शाम दो चार टिप्पणियाँ वाह्! वाह्! के शहद के साथ मिलाकर चटानी चाहिए। उसे नियमित रूप से "चर्चा-धारा" पिलाने से भी रोग का प्रकोप शान्त रहता है। इसके अतिरिक्त कभी कभी किसी "ब्लागर पुरूस्कार" की पुडिया देने से भी लाभ होता देखा गया है। इसके साथ में कभी कभी हफ्ते दो हफ्ते में "ब्लाग सर्वश्रेष्ठता" का काढा भी पिलाते रहें तो समझिए जल्दी लाभ मिलने लगेगा।
यदि ऊपरोक्त वर्णित उपचार के पश्चात भी रोगी की दशा में कोई सुधार नहीं होता तो जानिये कि रोग अब अन्तिम स्टेज तक पहुँच चुका है, बिना विशेष इलाज के ठीक होने वाला नहीं। तब एकमात्र हल ये है कि बिना कोई समय नष्ट किए, रोगी को किन्चित मात्रा में "जूतम-धारा" पिलाई जाए, तो बस , तुरन्त आराम हो जाएगा :-)
20 टिप्पणियां:
हा !हा !हा!
वाह! वाह!क्या खूब लिखा है!
उपचार विधि जबरदस्त हैं!
तब एकमात्र हल ये है कि बिना कोई समय नष्ट किए, रोगी को किन्चित मात्रा में "जूतम-धारा" पिलाई जाए, तो बस , तुरन्त आराम हो जाएगा :-)
--क्या जबरदस्त व्यंग्य है...हंसी रोके नहीं रुक रही..वाह!
उन्माद तो उन्माद ही है!
हा हा!!
जूतम धारा की लास्ट स्टेज तक न ही पहुँचे तो ठीक!
पंडित जी आपके व्यंग बाण बहुत ही पैने होते हैं और सोचता हूँ कि आपके तीर निशाने पर ही लगते होंगे पर घायल पंछी लोगो कि नज़रों से ओझल ही रहता है. बेहतरीन व्यंग. अच्छा लगा.
वाह्! पंडित जी मान गए आपको/क्या कमाल की जोरदार पोस्ट लिखी है/ बेहद तीखा व्यंग्य/ मजा आ गया जी/
हा हा हा..हँसी थमने का नाम नहीं ले रही
प्रणाम!
पंडित जी इस कडे को बनाना केसे है, यह भी बता देते, वेसे अभी तक हम इस भयंकर बिमारी से बचे हुये है, हमे जितना मिल जाये उसी मै भगवान का शुक्र करते है
बहुत खूब ................आप कौन सी स्टेज पर है अभी !?
कमाल के नुस्खे सुझाये हैं आपने ! सबसे महत्वपूर्ण है दवाओं की नियमित अविरल डोज :)
हा,,,हा,,हा,,हा
बहुत खूब वत्स जी
आनंद आ गया
बहुत चौकस व्यंग लिखते हैं आप
अकेले बैठा ठहाका लगा रहा हूँ
जाने कितनों की एक्स रे रिपोर्ट आपने सबको दिखा दी :)
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व्यंग विधा में आपका जवाब नहीं
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हा हा हा हा ब्लॉगोपेथी की रामबाण औषधियाँ। हा हा हा हा हा हा हा हा।
niceबिना कोई समय नष्ट किए, रोगी को किन्चित मात्रा में "जूतम-धारा" पिलाई जाए, तो बस , तुरन्त आराम हो जाएगा :nice
वाह क्या बात है ?
यह बाँच कर तो जैसे मेरा जीवन सार्थक ही हो गया !
जूतमधारा ही अब कारगर लगती है! और लगातार तब तक जब तक होश हवाश दुरुस्त न हो जाय!
mast
हा हा हा………………गज़ब गज़ब गज़ब्…………………करारा व्यंग्य्।
कहीं ये छूत की बीमारी तो नही .... तेज़ी से फैल रही है ...
अच्छा किया चेता दिया समय पर आपने ...
जूतम धारा के साथ साथ अगर लठपाक की खुराक मिले तो ज्यादा जल्दी ठीक होते पाया गया है |
तरीके तो लाजवाब हैं। वैसे आपने अपने ऊपर तो आजमाए ही होंगे।
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पॉल बाबा का रहस्य।
आपकी प्रोफाइल कमेंट खा रही है?.
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