कहते हैं कि अच्छी नींद वह होती है, जिसमें सपने नहीं आते. मैं तो अच्छी ही नींद सोता हूँ. कभी सपने आते भी हैं तो याद नहीं रहते, सवेरे कुछ ध्यान रहता है कि अच्छा सा सपना देखा था, पर क्या, यह याद नहीं आता. बस अच्छाई की जो छाप रहती है, उसी को लिए दिन-भर काट देता हूँ.
बचपन के सपने भी कुछ ऎसे ही होते हैं; जब जागे तो सपने की मिठास बनी रहे, और कुछ याद रहे या न रहे---यही तो चाहिए! अपनी कहूँ तो आप को एक रहस्य की बात बता दूँ-----मुझ में वह मिठास तो बनी ही हुई है; उसी के कारण मैने यह सोच लिया है कि असल में मेरा सब से बढिया सपना वह है जो मैं अब देखूँगा. आज देखूँगा कि कल देखूँगा कि परसों, यह तो कोई सवाल नहीं है; देखूँगा, बस यह विश्वास चाहिए और इसी के सहारे मैं जीवन में बराबर नयी स्फूर्ती और उमंग लेकर आगे बढा चलता हूँ. यह भी सवाल नहीं है कि वह सपना सो कर देखूँगा कि जागते-जागते देखूँगा. क्योंकि असल में सच्ची शक्ति उन्ही सपनों में होती है जो जागते जागते देखे जाते हैं. नींद में देखे गए सपने तो छाया से आ कर चले जाते हैं; जो सपने हम जागते-जागते देखते हैं, वे हमारे जीवन पर छा जाते हैं, उसे आगे चलाते हैं, उसे दिशा और गति देते हैं. जागती आँखों के सपने हमें ऎसे काम करने की शक्ति दे देते हैं जो हम से बिना उस शक्ति के कभी न हो सकते. ये जागते स्वपन असल में आदर्श होते हैं जिन पर हम चलते हैं; ऎसे स्वपन एक आदमी भी देखता है और समाज भी.
बरसों पहले की बात है, हमारे पडोस के मकान में एक सरदार फैमली रहा करती थी, जिनका एक बेहद ही प्यारा सा बच्चा था. बच्चों से अक्सर लोग पूछा करते हैं, " तुम बडे होकर क्या बनोगे?" वैसे ही इस से भी पूछते थे. और वह हमेशा एक ही जवाब देता था, जिस पर सब हंसते थे---"मैं पापा जी वाँगूं वड्डा बणना ए "( मैं डैडी की तरह बडा बनूँगा). पर सोचकर देखें तो हँसने की बात इस में कुछ नहीं है. बात यह है कि यही उस का सपना था. और सपना इसलिए था कि उसे बात-बात पर टोका जाता था कि 'बडे होकर यह करना' 'बडे होकर वह कर लेना', 'बडे होकर यह समझोगे' वगैरह वगैरह. उसने समझ लिया कि बडे हो जाना ही सब समस्यायों का हल है--बडे होते ही सब अडचनें दूर हो जाएंगी, सब ताकत मिल जाएगी, सब चीजें सुलभ हो जाएंगी! जो बनने में कुछ भी बनना सम्भव हो जाये, वही तो बनना चाहिए. बच्चे से कभी पूँछें कि तुम यह लोगे कि वह, तो वह सीधा जवाब थोडे ही देता है ? कहता है, "दोनो-----सब!"
सनातनी ब्राह्मण परिवार में जन्म लेने के कारण ग्रन्थों से तो हमारा वास्ता शुरू से ही रहा है. पढने के लिए जब गुरूकुल भेज दिए गए, ग्रन्थों से पीछा तो तब भी न छूटा. इन्ही शास्त्रों, ग्रन्थों के बीच रहते हमने भी बचपन में कभी एक सपना देखा था. सपना ये था कि बडे होकर हम भी रामचरितमानस जैसा ही कोई ग्रन्थ लिखेंगें. थोडा बडा होने पर जब शरीर के साथ साथ बुद्धि भी विकसित हो बाल से युवा में परिवर्तित हुई तो जाकर समझ आई कि हम कितना मूर्खतापूर्ण स्वपन देख बैठे हैं. अब बचपन में बोया हुआ वो बीज अंकुरित हो भीतर कहीं गहरे अपनी जडे भी जमाने लगा था, सो उसे उखाड फैंकने का भी साहस न जुटा सके. महज इतना किया कि उसकी विशालता की सम्भावनाओं को समाप्त कर उसे बौनजाई रूप दे दिया. ग्रन्थलेखन का वो स्वपन अब महज एक किताब लेखन तक सिमट चुका था.
और देखिए-----यह सपना हमारे साथ ऎसा चिपटा कि उसके बाद जब भी कभी सोच रखी तो सिर्फ किताब लिखने की, या स्वयं की ज्योतिष एवं आध्यात्म विषयक पत्रिका निकालने की. हालाँकि ज्योतिष पर सिद्धान्त, फलित एवं उपाय विषयक तीन पुस्तकें लगभग दो बरस पहले ही लिखी जा चुकी हैं, जिनमें हमारे अपने जीवन का ही नहीं बल्कि अपने पुरखों के भी ज्योतिषीय अनुभवों का सम्पूर्ण सत्व समाहित है. लेकिन फिर भी उन्हे कभी प्रकाशित करने का विचार ही नहीं बन पाया. बस लिखी और लिखकर रख छोडी. कारण, आत्म-प्रचार से दूर रहने की प्रवृति ही इस काम के सदैव आडे आती रही. लेकिन, निरन्तर अपने प्रिय शिष्यों के द्वारा किए जा रहे आग्रहवश, अपनी अनिच्छा को दरकिनार करना पडा. सो, आज वे तीनों पुस्तकें प्रकाशनाधीन है, जो कि ईश्वर नें चाहा तो बहुत जल्द ही आप लोगों के सामने होंगी.
अब आप लोग कहीं ये मत सोचिएगा कि हमारा ये सब लिखने का उदेश्य अपनी आने वाली पुस्तकों के बारे में सूचना देना या कि आत्म-प्रचार करना है. मुख्य विषय तो है-----इन्सान द्वारा इन जागती आँखों से देखे जाने वाले सपनों का. ये इन सपनों का ही तो कमाल है, कि देखते देखते पंडित से एक ब्लागर और ब्लागर से लेखक बनने की राह पर चल पडे हैं. मैने कहा न, सपनों में बडी ताकत होती है ? और यहाँ ब्लाग पर लिखने में भी यही सोचता हूँ कि जो लिखा, वह जब लिखा तब तो अच्छा ही समझ कर लिखा, पर सब से अच्छी तो वह पोस्ट होगी, जो आगे अभी लिखूँगा! ठीक वैसे ही जैसे मेरा सब से अच्छा सपना वह है जो मैं अभी आगे भविष्य में देखने वाला हूँ-----और बचपन से ही बस अभी-अभी देखने की उमंग में आज यहाँ तक चला आया हूँ !
20 टिप्पणियां:
सपनो को सच करने को प्रोत्साहित करती यह पोस्ट ही श्रेष्ठ लगती है, पर आपके सपने में सहयोग देगें और प्रतिक्षा करेंगे……ओर अच्छे की।
आप जागती आँखों से खूब सपने देखें और सब के सब साकार हों.
5.5/10
सुन्दर पोस्ट / पठनीय
बहुत ही बुरा होता है जब कोई सपने देखना बंद कर देता है. हमें सपने देखने की आदत डालनी चाहिए. सपनों के बिना जीना भी कोई जीना है ..बादशाओ
मैं यह पढ़ रहा हूँ या सपने में देख रहा हूँ ...कोई आत्म प्रचार वचार नहीं पंडित जी -आप एक सिद्धहस्त लेखक हैं !
जनाब शर्मा सहेब, ये सपने ही तो हैं जो इन्सान क हाथ थामकर उसे जीवन की टेडी मेढी पगडंडियों पर चलना सिखाते हैं! गर जीवन से इन सपनों को ही निकाल दिया जाए तो फिर शेष बचा क्या ?
ऊपरवाले से दुआ करते है कि आपका इन जागती आँखों से देखा हर सपना साकार हो!
जनाब शर्मा सहेब, ये सपने ही तो हैं जो इन्सान क हाथ थामकर उसे जीवन की टेडी मेढी पगडंडियों पर चलना सिखाते हैं! गर जीवन से इन सपनों को ही निकाल दिया जाए तो फिर शेष बचा क्या ?
ऊपरवाले से दुआ करते है कि आपका इन जागती आँखों से देखा हर सपना साकार हो!
जनाब शर्मा सहेब, ये सपने ही तो हैं जो इन्सान क हाथ थामकर उसे जीवन की टेडी मेढी पगडंडियों पर चलना सिखाते हैं! गर जीवन से इन सपनों को ही निकाल दिया जाए तो फिर शेष बचा क्या ?
ऊपरवाले से दुआ करते है कि आपका इन जागती आँखों से देखा हर सपना साकार हो!
वत्स साहब, हमें इन किताबों का इंतजार रहेगा। आत्म-प्रचार से दूर रहना एक गुण है। कस्तूरी गोपन ही होती है लेकिन उसकी सुगंध खुद ही उसकी मौजूदगी बयान कर देती है।
स्वप्न देखना बहुत जरूरी है, पूर्व राष्ट्रपति कलाम साहब तो युवाओं के सामने आव्हान करते थे कि ’dream big'. हां, देखने के साथ उन्हें पूरा करने के लिये प्रयत्न भी करना चाहिये और फ़िर खुली आंखों के सपने, और भी जरूरी हैं।
पुतकें जब प्रकाशित हों तो सूचित अवश्य करियेगा।
पंडित जी/ हमें तो आपकी पुस्तकों का बेसब्री से इन्तजार रहेगा/ आपकी ये पोस्ट पढकर तो लगा कि मानों हमारे सपनों को भी पंख लग गए हों/ सपनों को हकीकत में बदलने की चाहत में मन उत्साह से लबरेज हो गया/
प्रणाम/
जागती आंखों के सपने ही आदमी को शिखर तक पहुंचाते हैं...
बहुत अच्छा है सपने देखना और सपनो को साकार करने के लिए राह बनाना.
आप की किताबों की प्रतीक्षा रहेगी.
आप का लेखन सशक्त है.
पुरखों के अर्जित ज्ञान को भी आप ने किसी एक पुस्तक में समेटा है ...अवश्य ही इस विषय पर आप की लिखी पुस्तकें संग्रहणीय होंगी और उपयोगी भी .
शुभकामनाएँ
अब मैं क्या कहूँ इस पोस्ट के बारे में सभी ने तो अपने विचार व्यक्त कर दिये...........
सचमुच बहोत ही अच्छी लगी आपकी ये पोस्ट.......
सपने देखने चाहिये
मजा आ जाता है जब सपना साकार हो जाता है |
सर आपकी लेखनी तो कमाल है. बात को इतने बेहतरीन तरीके से सामने रखा कि पोस्ट को पूरा पढे बिना छोड ही नहीं पाया.
इन्सान अपने लिए ऊँचा लक्ष्य रखें, महत्वाकांक्षी बनें और खुद पर विश्वास रखें तो भला कौन सा ऎसा ख्वाब है, जो हकीकत न बन सके.
सपना जितना बडा होगा, उतना ही तुच्छ संकल्पों को हटाने में सफलता मिलेगी. जितना तुच्छ संकल्पों को काट दिया जाएगा, भगा दिया जाएगा उतना ही ऊँचा जीवन, ऊँची समझ और ऊँचें से ऊँचे लक्ष्य को पाने में सफल जो जाता है. इसलिए थिंक बिग, बी पाजिटिव
जागती आँखो के सपने साकार हो जाये तो ज़िन्दगी का रुख बदल देते हैं।
उपयोगी पोस्ट!
इसकी चर्चा यहाँ भी है-
http://charchamanch.blogspot.com/2010/11/335.html
जागती आँखों से सपने देखने और उन्हें पूरा करने को प्रोत्साहित करती पोस्ट ...!
वो ऑंखे ही क्या, जो जागते हुए सपना न देखें।
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मिलिए तंत्र मंत्र वाले गुरूजी से।
भेदभाव करते हैं वे ही जिनकी पूजा कम है।
प्रेरणामयी पोस्ट है आपके सब सपने पूर्ण हों। हाँ मेरी प्रतियाँ आज ही सुरक्षित रख लें। जैसे ही छप कर आयें मुझे वी वी पी से भेज दें। नही तो अगर मै आयी तो मुफ्त मे उठानी पडेंगी। शुभकामनायें।
जागती आँखों से सपने जरूर देखने चाहियें और मैं सहमत हूँ इस बात से की बस ऐसे सपने ही पूरे हो सकते हैं क्यौकी वो पूरे होशो-हवास में देखे जाते हैं .... अच्छी पोस्ट लिखी है आपने पंडित जी ....
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