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सोमवार, 15 नवंबर 2010

देश भक्ति बनाम ईश भक्ति

देश भक्ति बनाम ईश भक्ति

1. कोई मनुष्य सर्वरूप परमात्मा से अपनी अभेदता तब तक कदापि अनुभव नहीं कर सकता, जब तक कि समग्र राष्ट्र के साथ अभेदता उसके शरीर के रोम-रोम में जोश न मारती हो !

2. किसी व्यक्तिगत और स्थानीय धर्म को राष्ट्रीय धर्म से ऊँचा स्थान न देना चाहिए. इन धर्मों को ठीक अनुपात से रखना ही सुख प्रदान करता है!

3. राष्ट्र के लिए प्रयत्न करना ही विश्व की शक्तियों अर्थात देवताओं की आराधना करना है !

4. किसी देश में उस समय तक एकता और प्रेम नहीं हो सकता, जब तक कि उस देश के निवासी एक-दूसरे के दोषों पर जोर देते रहें !

5. कोई दुर्बल-चित्त मनुष्य, जो मुफ्तखोर आलसियों को पैसे की भीख देकर भले ही अपने आप को सराह ले कि उसने परलोक में अपनी आत्मा के उद्धार के लिए कुछ कर लिया है. यह बात सही हो या गलत, पर इसमें जरा भी सन्देह नहीं कि उसने उस समय इस लोक में अपने राष्ट्र के पतन के लिए अवश्य कुछ कर डाला है !

6. कुछ लोग ऎसे हैं, जिनके लिए देश-भक्ति का अर्थ केवल भूतकाल के गये-बीते गौरव की निरन्तर डीँगें हाँकना भर है. ये दिवालिये साहूकार हैं, जो बहुत पुराने बहीखातों पर, जो कि अब व्यर्थ हैं, गहरी देखभाल करने में जुटे हैं !

7. किसी देश की उन्नति छोटे विचार के बडे आदमियों से नहीं, बडे विचार के छोटे आदमियों पर निर्भर हुआ करती है !

8. किसी भी मत अथवा धर्म को, जो आजकल के विज्ञान सम्बन्धी अन्वेषण के निरोग और शिष्ट परिणामों के साथ मेल नहीं खाता, किंचित अधिकार नहीं है कि वह अपने मूर्ख अनुयायियों पर जबरदस्ती करे या उन्हे अपना शिकार बनाये !

9. सत्य किसी व्यक्ति विशेष की सम्पति नहीं; सत्य किसी ईसा, मोहम्मद या कृष्ण की जागीर नहीं हैं; हमें इनके नाम से सत्य का प्रचार नहीं करना है. यह सत्य किसी भी मनुष्य विशेष की सम्पत्ति नहीं है, बल्कि यह प्रत्येक व्यक्ति की सम्पत्ति है !

10. चाहे कोई भी धर्म ग्रन्थ हो, यदि वह आपकी निर्बलता को दूर नहीं करता, यदि वह आपको मनुष्यता नहीं सिखा पाया, यदि वह आपके मन और आत्मा पर पडे बोझों को परे नहीं हटाता, तो यही बेहतर है कि उसे उठाकर कचरे के ढेर पर फैंक आओ !

11.  चाहे आप किसी एकान्त गुफा में कोई पाप करें, आप बिना किसी विलम्ब के यह देखकर चकित होंगें कि आपके पैरों तले की जमीन आपके विरूद्ध साक्षी देती है, आप बिना विलम्ब के देखेंगें कि उन्ही दीवारों और उन्ही वृ्क्षों के जुबान है और वे बोलते हैं ! आप प्रकृ्ति को धोखा नहीं दे सकते! यह एक सत्य है और यही दैवी विधान है !

12 टिप्‍पणियां:

Amit Sharma ने कहा…

सर्वथा तात्विक घोष है पण्डितजी, ये नाद सरल मानवीय गुणो से परीपूर्ण प्रवत्ति के मनुष्यों लिये मधुरतम है...................और आसुरी प्रवृत्ति वालों के लिए काल समान......................... कोई भी धर्म राष्ट्र धर्म से बड़ा नहीं है , और सत्य किसी की जागीर नहीं है.

बेनामी ने कहा…

पंडित जी, बेहद ज्ञानवर्धक पोस्ट/ राष्ट्रभक्ति से बढकर कोई धर्म कोई सम्प्रदाय नहीं हो सकता/
प्रणाम/

बेनामी ने कहा…

पंडित जी, बेहद ज्ञानवर्धक पोस्ट/ राष्ट्रभक्ति से बढकर कोई धर्म कोई सम्प्रदाय नहीं हो सकता/
प्रणाम/

रत्नेश त्रिपाठी ने कहा…

अत्योतम विचार! प्रेरक पोस्ट श्रीमान!

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

बहुत ही सुंदर और सारवान तथ्य को व्यक्त करती पोस्ट के लिये बहुत आभार आपका.

रामराम

naresh singh ने कहा…

हमारे देश के सभी धर्म ग्रन्थ देश प्रेम की शिक्षा देते है |ये तो कुछ धर्म गुरुओ ने गलत व्याख्या कर के विष के बीज बोये है |

प्रवीण ने कहा…

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अत्यन्त सुन्दर !

यह उद्घोष जरूरी भी था, साधुवाद आपको...

सबसे बढ़कर देश... हरपल, हरदम और हमेशा !

धर्म और देश में से यदि चुनाव करना हो तो हर बार देश को ही चुनना होगा... तभी हम नागरिक कहलाने लायक होंगे।


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निर्मला कपिला ने कहा…

सुन्दर और सार्थक चिन्तन। सच ही राष्ट्रभक्ति से बढकर कोई धर्म कोई सम्प्रदाय नहीं हो सकता। इस पोस्ट के लिये धन्यवाद और बधाई।

Unknown ने कहा…

अति सुन्दर एवं सार्थक पोस्ट शर्मा साहेब! प्रेरक उद्घोष!

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

आपकी पोस्‍ट देखकर हतप्रभ हूँ। बिना इसे देखे लगभग इसी विषय पर मैंने भी लिखा है।

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गायब होने का सूत्र।
क्‍या आप सच्‍चे देशभक्‍त हैं?

एक बेहद साधारण पाठक ने कहा…

सबसे बढ़कर देश... हरपल, हरदम और हमेशा !

[मित्र प्रवीण की टिपण्णी से कोपी किया है ]

बेहद सुन्दर पोस्ट है वत्स जी , हम भी आपके जैसा संतुलित लिखना सीखेंगे

दिगम्बर नासवा ने कहा…

आपकी सभी बातों से सहमत हुईं .. देश राष्ट्र सर्वोच्च होना चाहिए ...

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