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बुधवार, 2 फ़रवरी 2011

कुतर्कियों के सिर पर चढा प्रोटीन का भूत (एक वैज्ञानिक अन्धविश्वास)

इन्सान पर हावी होने वाले भूत-प्रेतों को उतारने के लिए तो ओझाओं-गुनियों, तान्त्रिक, पीर-फकीरों, बाबाओं वगैरह को बुलाना पडता है. लेकिन आज के इस वैज्ञानिक युग में कईं भूत ऎसे भी हैं जिनका किसी के पास कोई इलाज नजर नहीं आ रहा. इन्ही में एक भूत है---प्रोटीन का, जिसने सारे डाक्टरों, आहार वैज्ञानिकों और इन्सान को तन्दरूस्त रखने के नए नए तरीके इजाद करने वाले लोगों को इस तरह जकड लिया है कि इससे छुटकारा पाना निहायत ही मुश्किल है. अब आदमी बीमार हो तो वो डाक्टर से इलाज करा ले, पर वो बेचारा डाक्टर ही किसी भूत से जकडा जाए तो फिर उसका इलाज भला कौन करे? अब ऎसे ही एक प्रेत ग्रसित डाक्टर हैं--जनाब अनवर जमाल साहब. अब ये बात दूसरी है कि वो सिर्फ नाम के डाक्टर हों. कहीं साल छ: महीनें किसी डाक्टर के यहाँ कम्पाऊंडरी करते करते डाक्टर बन गए हों. खैर अल्लाह बेहतर जानता है :)
बहरहाल हम मूल विषय पर आते हैं. प्रोटीन-----जिसकी होड नें आज अनेक समस्याएं पैदा कर दी है. प्रोटीन पाने के लिए सरकारें तक कमर कसे बैठी हैं. देश भर में जगह-जगह कसाईघर खुलवा रखे हैं, जहाँ से माँस डिब्बों में बन्द कर बेचा जाता है. टेलीवीजन, समाचार पत्र जैसे संचार माध्यमों नें भी शोर मचा रखा है कि अंडे खाओ ताकि शरीर में जान पडे. प्राण चाहते हो तो प्रोटीन खाओ. बेचारे पशु-पक्षियों की शामत आन पडी है. अनेक सदबुद्धि वालों नें उनकी पैरवी की, पर कुतर्क यह दिया जाता है कि वैज्ञानिक खोजों के आधार पर ऎसा करना उचित है. हमारे जैसा आदमी यह कहे कि हमारे बाप-दादाओं नें तो कभी इन सब चीजों को छुआ तक नहीं...तो क्या उन लोगों नें स्वस्थ जीवन व्यतीत नहीं किया. वे दूध, दही, फल-फ्रूट खाते थे और उन्हे रोग भी कम होते थे. पर दुर्बुद्धि लोग अपने विचार बदलने को तैयार ही नहीं है......बदलें भी कैसे, उन पर प्रोटीन का भूत जो सवार है.

बीसवीं सदी के शुरू में आहार का मसला बकायदा एक विज्ञान के तौर पर सामने आया. भोजन में उर्जा के स्रोतों जैसे कार्बोहाईड्रेट, चर्बी और प्रोटीन की खोज हुई. प्रोटीन को माँसपेशियों और बच्चों के विकास के लिए जरूरी समझा गया. चर्बी और कार्बोहाईड्रेट को उर्जा का प्रमुख स्रोत माना गया. मैक कालम और डेविस नाम के वैज्ञानिकों नें विटामिन "ए" खोजा, फिर दूसरे विटामिन खोजे गये. आज विटामिन ए, बी, सी, डी, ई इत्यादि न जाने कितने प्रकार के विटामिन्स का विस्तृत ज्ञान मैडिकल साईन्स को है.
प्रचलित भ्रान्तियाँ:-
प्रोटीन को लेकर भ्रान्तियाँ कब शुरू हुई, यह कहना तो कठिन है, पर वे बहुप्रचलित हैं. यह एक आम धारणा है कि प्रोटीन अधिक मात्रा में लेना चाहिए. नतीजतन डिब्बों में बन्द बहुत से प्रोटीनमय पदार्थों की बिक्री बहुत होने लगी. इन चीजों को दूध या पानी में घोलकर पिया जाने लगा. माओं नें बच्चों को जबरिया पिलाना शुरू कर दिया. मायें भी बडे लाड से कहती हैं कि हारलिक पिओगे तो जल्दी से बडे हो जाओगे.
सूरदास का पद याद करें तो कृष्ण भी यही कहते थे-----"मैया कबहूँ बडेगी चोटी! कित्ती बार मोहि दूध पियावत, है अजहू छोटी की छोटी!!" लगभग यही बात प्रोटीन वाले भोजन को घोल-घोलकर पिलाने के लिए कही जा रही है. टीवी पर विज्ञापनों के जरिए मानो 'प्रोटीन ही जीवन है" का सन्देश हमारे गले उतरवाने की कौशिशें जारी हैं.
दरअसल प्रोटीन की मात्रा भोजन में सन्तुलित होनी चाहिए. उर्जा देने वाले तत्व के रुप में प्रोटीन की विशेष जरूरत नहीं होती. उर्जा के अच्छे स्रोत तो वसा और कार्बोहाईड्रेट हैं. आहार वैज्ञानिक इस पर एकराय हैं कि प्रति एक किलो वजन पर एक ग्राम प्रोटीन एक आम इन्सान के लिए काफी है. बच्चों को अधिक से अधिक 2 ग्राम प्रति किलो प्रोटीन पर्याप्त होगी. साधारण भोजन में तो प्रोटीन की इतनी मात्रा अपने आप ही मिल जाती है. आमतौर पर एक औसत व्यक्ति 250 ग्राम अनाज और 50-100 ग्राम दाल या दाल से बनी चीजें जरूर खाता है. 250ग्राम अन्न से लगभग 30 ग्राम प्रोटीन, दाल में 20 ग्राम से अधिक प्रोटीन और दूध,दही, पनीर आदि में 10-20 ग्राम प्रोटीन मिल जाती है. इस तरह आदमी 60-70 ग्राम प्रोटीन रोजाना उदरस्थ कर लेता है. तब बताईये फिर प्रोटीन की कमी कहाँ?
प्रोटीन के स्रोत:-
यह बात काफी प्रचारित हुई है कि माँसाहार और अंडे उच्च कोटि के प्रोटीन के स्रोत है. यह विचार सबसे पहले कहाँ से आया, इसका कोई प्रमाण नहीं मिलता. डाक्टरों से पूछिए कि प्रोटीन का ऎसा वर्गीकरण किसने किया और इसका कहाँ उल्लेख है, तो मैं आपको गारंटी देता हूँ कि उनसे जवाब देते नहीं बनेगा. दरअसल ये सब एक दूसरे से सुनी-सुनाई बातें हैं और इन सुनी सुनाई बातों को ही किताबों में लिख-लिखकर दुनिया में ये भ्रमजाल फैलाया जा रहा है कि पशुओं के माँस और अंडों में उच्च कोटि के प्रोटीन होते हैं और वनस्पतियों में दोयम दर्जे के. प्रसिद्ध वैज्ञानिक Dr.Semsan Wright के अनुसार ऎसा विभाजन निहायत ही अवैज्ञानिक और अव्यवहारिक हैं. उनका कहना था कि पशुओं की माँसपेशियाँ तो घास खाने से बनती हैं. जिस प्रोटीन को हम उच्च स्तर का कहते हैं---वह घास से बनती है.
अचरज की बात यह है कि सभी जगह मेडिकल के छात्रों को डा. सैमसन राईट की किताब पढाई जाती है, पर इस वैज्ञानिक की इस बात को पूरी तरह से नजरअन्दाज कर दिया जाता है. जनाब अनवर जमाल साहब जैसे स्वनामधन्य डाक्टरों को तो यह भी नहीं पता होगा कि किताब में इस बात का उल्लेख भी है.
प्रोटीन आवश्यकता से अधिक ले लिए जायें तो क्या हो ? 
आधुनिक वैज्ञानिक खोजों से पता चला है कि प्रोटीन के मेटाबोलिज्म के बाद इनकी तोडफोड से कईं विषैले पदार्थ पैदा होते हैं-----यूरिया, यूरिक एसिड क्रीटीन, क्रोटीनीन आदि. ये सीधे इन्सान के गुर्दों पर असर करते हैं. अधिक मात्रा में इनकी उत्पति होने से इनका गुर्दों से निकलना कठिन हो जाता है और गुर्दे समय से पहले जवाब भी दे सकते हैं. देश में गुर्दे की बीमारी की बढोतरी का एक कारण यह भी समझा जा रहा है. लंदन के मेडिकल जनरल "Lancet" के अनुसार गठिया की बीमारी का कारण भी भोजन में प्रोटीन की अधिकता ही है.
दालें और दूध:-
प्रोटीन सबको मिले, इसके लिए जरूरी है कि इसकी कीमत कम हो. पर क्या अंडे या माँस सस्ते पडते हैं. एक अंडा 4-5 रूपये का आता है जिसका वजन लगभग 50-60 ग्राम होता है. उसमें प्रोटीन की मात्रा लगभग 6 ग्राम होती है. इस तरह 100 ग्राम अंडे में लगभग 12-13 ग्राम प्रोटीन. कीमत 8-9 रूपये के लगभग. इसके विपरीत 100 ग्राम सोयाबीन में 83 ग्राम प्रोटीन होता है, जिसकी कीमत पडती है महज अढाई रूपये. यानि अंकों की तुलना में लगभग 8 गुणा.
प्रोटीन के अच्छे स्रोत दालें, अन्न और दूध हैं. सोयाबीन में प्रोटीन की मात्रा 43 ग्राम प्रतिशत है. दालों में भी यह पर्याप्त मात्रा में होता है. माँस, अंडे में प्रोटीन की मात्रा क्रमश: 18 और 13 ग्राम होती है. फिर भी माँसाहार से प्रोटीन पाने का भूत इन लोगों के सिर से नहीं उतर रहा. प्रकृति और पर्यावरण का संतुलन बिगडने की एक प्रमुख वजह आज यह भी है.
इसलिए आज इस युग की ये सब से बडी जरूरत है कि अपने दुराग्रहों का परित्याग कर खुले मस्तिष्क से इस विषय पर विचार किया जाए और खोखली वैज्ञानिकता के नाम पर फैलाये जा रहे इन भ्रमों को दूर कर निज, समाज और प्रकृति के प्रति अपने उतरदायित्व को समझते हुए शाकाहार को अपनाया जाए. 
आप इस आलेख को "निरामिष" ब्लाग पर भी पढ सकते हैं.
ज्योतिष की सार्थकता

28 टिप्‍पणियां:

deepti sharma ने कहा…

aapne sahi kaha hame prakrti ke prati apna utarayitv samjhte hue shakahar ko apnana chahiye
.....

सुज्ञ ने कहा…

पंडित जी,
हां अनवर जमाल साहब मेडिकल डॉक्टर नहीं, प्रोफ़ेसर, मास्टरी वाले डॉक्टर है, पता नहीं किस बात पर शोध-पत्र बनाया होगा।

दिप्ति जी नें सही कहा, प्रकृति के प्रति उत्तरदायित्व निभाना ही होगा। और बाजारू पैदा किये गये प्रोटीन के भूत को भगाना ही होगा।

प्रोटिन के नाम पर मांसाहारियों के कपटी प्रचार मायाजाल को अनावृत किया है। भ्रमित करने वालों से बचाव का संदर्भ-पत्र रहेगा यह लेख्।

vandana gupta ने कहा…

आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (3/2/2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.uchcharan.com

वीरेंद्र सिंह ने कहा…

पंडित जी..... आपने सार्थक ढंग से अपनी बात रखी है .
बहुत ख़ूब!

मैं भी कुछ कहना चाहता हूँ .......विश्व विख्यात पहलवान सुशील कुमार को हम सभी जानते हैं.
ये पूर्णतया शाकाहारी है. इन्होंने भारत की झोली में राष्ट्रकुल खेलों व् एशियन खेलों में भारत के
लिए स्वर्ण पदक जीता है. वैसे शाकाहारी पहलवानों की लिस्ट काफी लम्बी है .

दूसरी और बहुत से लोग, ख़ासकर 'राधा स्वामी' (व्यास) संगठन के लोग जिनमें बहुत से पंजाबी हैं
वो शाकाहारी होते हैं और शारीरिक रूप( शरीर की ल० और चौ० और ताक़त में ) से भी किसी से कम नहीं होते.
इनके अलावा भी करोड़ों लोग शाकाहारी रहते हुए स्वस्थ और शतायु( सौ वर्ष तक) जीवन व्यतीत करते हैं.
उदहारण के लिए... मेरे नाना जी, जीवन भर शाकाहारी रहे. पूरे ९८ वर्ष जीवित रहें और
एक पीड़ारहित म्रत्यु को प्राप्त हुए. अंतिम समय तक लोग उनकी बुद्धि का लोहा मानते रहें.
उनकी लम्बाई भी पूरे ६ फीट से ज्यादा थी. यानी कभी उन्हें
प्रोटीन की कमी का अहसास नहीं हुआ. ऐसे न जाने कितने ही उदहारण आपको मिल जाएँगे.

मतलब साफ़ है कि शाकाहार अपनाकर भी आप एक सुखद और स्वस्थ जीवन व्यतीत कर सकते हैं.

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून ने कहा…

मांसाहारियों के पास अपने फ़ंडे हैं अब क्या किया जाए. उनकी मर्जी.

दीपक "तिवारी साहब" ने कहा…

पंडित जी आपने बहुत ही विचारणीय विषय उठाया है। और सही कहा है कुतर्क के आगे कुछ नही किया जा सकता. मांसाहार ना केवल पाप है बल्कि कई बीमारियों की जड भी।

दीपक "तिवारी साहब" ने कहा…

दुनिया आज कल शाकाहारी होती जारही है और ये उल्टे बिमारियों को न्यौता दे रहे हैं. मेहरवानी करके ऐसे उल्टे सीधे प्रचार से बाज आईये. प्रोटीन का सबसे बढिया श्रोत शाकाहार है दालें और सोयाबीन. बहुत धन्यवाद पंडितजी.

दीपक "तिवारी साहब" ने कहा…
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दीपक "तिवारी साहब" ने कहा…
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makrand ने कहा…
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makrand ने कहा…

बहुत सुंदर लेख लिखा आपने। मैं तो कभी कभार पहले अंडा खींच लिया करता था पर जबसे शाकाहार और प्रोटीन के श्रोत का असली सोर्स सोयाबीन मालूम पडा तबसे पूर्ण शाकाहारी हो गया हूं।

makrand ने कहा…

प्रोटीन के नाम पर पशु हत्या की निंदा करता हूं।

Unknown ने कहा…

ई लोग पता नाही कहां से अगडम बगडम बात उठा के ले आता है? भाई जो प्रोटीनवा सोयाबीन मा है ऊ ससुर पाडा पाडी काट कर खाने मे कहां है? ई कोनू बात हुई? छि: छि: ई मांसाहार बहुते गलत बा।

Unknown ने कहा…
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Unknown ने कहा…
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Unknown ने कहा…

अऊर पंडित जी ई निरामिष ब्लागवा का लिंकवा दे के बहुते अच्छा काम किये अहीम आप। ई सब गलत सलत परचार करने वालों का बहुते सही उत्तर दिये हैं आप।

Unknown ने कहा…

ऐसा सब ज्ञान का और शाकाहार का बारे मा लिखते रहिये। हम आपको बहुते धन्यवाद करता हूं।

राज भाटिय़ा ने कहा…

पंडित जी बहुत सुंदर संदेश दिया आप ने, अजी हम भी शाका हारी हे, राम राम

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

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प्रोटीन पाने के लिए सरकारें तक कसर कसे बैठी हैं.
@ पंडित जी, यथा शीघ्र सही करें... 'कसर' को 'कमर' करें.

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प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

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प्रोटीन के स्त्रोत
@ स्त्रोत को 'स्रोत' करें

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प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

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गठिया की बीमारी का कारण भी भोजन में प्रोटीन की अधिकता ही है.
@ सत्य. इसका अनुभव पिछले दो महीनों से मुझे भी हुआ है. प्रोटीन खाने को मना कर दिया गया है मेरे करीबी को.

.

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

और अंत में ...

आपने अपने तर्कों से मांसाहार के भूत पर भभूत मल दिया. आनंद आया.
मुझे बौद्धिक चर्चा से काफी प्रोटीन मिलता है. इस बल पर मैं कई दिन उपवास भी कर सकता हूँ.

.

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

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चलते चलते एक बात और ...

विरेन्द्र जी, 'पहलवान सुशील कुमार' को फिर तो विज्ञापन नहीं मिलेंगे.
वे तो केवल दाल-रोटी ही खाने वाले हैं. शायद घी का विज्ञापन मिल जाये. मिल्क-फ़ूड देसी घी.
लेकिन उस विज्ञापन को भी दारासिंह ने बदनाम कर दिया है. शायद सुशील कुमार न करे.
'दृढ निश्चयी' कभी किसी के विश्वास को नहीं तोड़ता.

खेल में स्वर्ण पदक दिलाना है तो दिलाना है. बस.

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Khare A ने कहा…

HMM, BAT To jordar kahi he aapne,
aajkal proteen ki baat isliye ki jati he , taki log-bag Proactive na ho jaye, unhe bataya jata he ki bhaiye pehle proteen khao, fir proactive ho, bahiye sab chalbaaji, logo ko bg rekhna ka tarika, ki sale tum tandrusti pe dhyan do, fir na hamse mukabla karoge.. jahan tak aam aadmi ki protien to bhaiye dalo me milti he, wo in logo ne pehle hi chhin rakhi he, pehle to katore me roti ka tukda dubote the to kafi sari dal aati thi, ab sale ki dhundte raho, jaise ki koi gotakhor kisi sucide ki hui body ko dubki maarkar dhundta rehta he aur aakhir me kamyaab ho jata he, yahi haal ab katore me dall ka he!

bahut sundar aalekh

दिगम्बर नासवा ने कहा…

सार्थक लेख .... हमने तो घर बार से यही जाना है की दालें प्रोटीन का अच्छा स्त्रोत हैं ...
और मीडिया प्रचार वालों ने अब अण्डों और मॉस का परचा करना शुरू कर दिया है जो दुर्भाग्यपूर्ण है ....

naresh singh ने कहा…

पंडितजी मै तो जन्म जात शाकाहारी हूँ | कभी दो आने की टैबलेट भी ली हो याद नहीं आता है |मासाहार तो आसुरी प्रवृत्ति के लोगो का काम है |

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

हर लाइन सही है..

निर्मला कपिला ने कहा…

इस छोटे से बच्चे मरकन्द की बात से शायद किसी को समझ आ जाये। बहुत अच्छा सार्थक आलेख है। बधाई आपको।

www.hamarivani.com
रफ़्तार