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सोमवार, 15 दिसंबर 2008

आखिर किसकी जिम्मेदारी ?

आखिर जिस का डर था, वही हुआ. काले कोट वाला टिकट–निरीक्षक यमदूत की तरह सामने खड़ा था,ओर टिकिट दिखाने का इशारा करने लगा। मैने टिकट निकाला तो देखते ही बोला, ‘‘यह तो साधारण दर्ज़े का टिकट है। स्लीपर क्लास में क्यों बैठे हो?’’
‘‘साधारण दर्ज़े के तो दो ही डिब्बे हैं। दोनों ठसाठस भरे हैं, जहां पैर रखने की भी जगह नहीं है। स्लीपर क्लास में जगह थी,सो इसी में चढ गए। वैसे भी दिल्ली के आगे तो इसमें आरक्षण भी नहीं होता।’’मैंने स्पष्टीकरण दिया।
‘‘मै ये सब नहीं जानता, कोई बहाना नहीं चलेगा। स्लीपर क्लास का किराया व जुर्माना मिला कर तीन सौ बीस रूपए हुए, जल्दी निकालो।’’ टिकट–निरीक्षक उतावला होने लगा ।
‘‘सभी के पास साधारण दर्ज़े का टिकट है।’’
‘‘तुम अपनी बात करो।’’टिकिट निरीक्षक कुछ भी सुनने को तैयार न था। विवश होकर मैंने जेब में हाथ डाला लेकिन वहाँ से पर्याप्त रकम नहीं मिली,ओर मैं दूसरी जेब खंगालने लगा। पैसे मिलने में देर होती देख, वह सामने बैठे बुजुर्ग का टिकट देखने लगा।
‘‘तुम्हारा टिकट भी साधारण दर्ज़े का है। तुम भी निकालो तीन सौ बीस रूपए।’’
‘‘मेरे पास एक भी पैसा नहीं है, देने के लिए।’’ बुजुर्ग की आवाज दमदार थी।
‘‘जु्र्माना नहीं दोगे तो सजा भी हो सकती है,वो भी 3 महीने की’’टिकिट निरीक्षक ने पीछे खड़े सिपाही की ओर देखते हुए धमकी दी।
‘‘किस जुर्म में?’’
‘‘साधारण दर्ज़े के टिकट पर स्लीपर क्लास में सफर करने के लिए।’’
‘‘मुझे आप साधारण दर्जे में सीट दिला दो।’’
‘‘यह मेरी जिम्मेदारी नहीं।’’
‘‘रेलवे ने मुझे यह टिकट किस लिए जारी किया है?’’
‘‘यह टिकट केवल इस गाड़ी के साधारण दर्ज़े में सफर करने की इजाजत देता है। सीट मिलना जरूरी नहीं है।’’टिकिट निरीक्षक ने एक–एक शब्द पर जोर देते हुए कहा।
‘‘क्या मैं गाड़ी की छत पर बैठ कर सफर कर सकता हूँ?’’
‘‘छत पर बैठ कर सफर करना तो इससे भी बड़ा जुर्म हैं।’’
‘‘क्या मैं दरवाजे के सथ लटक कर सफर कर सकता हूँ?’’
‘‘नहीं, रेलवे ऐसा करने की इजाजत नहीं देती।’’
बुजुर्ग एकदम गुस्से मे अपनी सीट् से उठा और उसने टिकट–निरीक्षक का हाथ पकड़ते हुए कहा, ‘‘मुझे गाड़ी में वो स्थान बता दो जहाँ बैठ कर मैं इस टिकट पर सफर कर सकता हूँ।’’
निरीक्षक को कुछ नहीं सूझ रहा था। उसने किसी तरह बुजुर्ग से अपना हाथ छुड़ाया और वापस चला गया। तीन सौ बीस रूपए के नोट हाथ में पकड़े मैं बुजुर्ग को देखता रह गया।

6 टिप्‍पणियां:

अबयज़ ख़ान ने कहा…

महाशय अगर आपके पास स्लीपर क्लास का टिकट होता भी, तो भी वो लोग रुपये लेने का कोई न कोई बहाना ढूंढ ही लेते। बहुत बढ़िया रचना है। एक दम आम आदमी से जुड़ी हुई।

मेरी हौसला अफ़ज़ाही के लिए आपका बहुत शुक्रिया

P.N. Subramanian ने कहा…

घोर अनुशासन हीनता ! बोनस में अकड़ भी? निराश ना हों. अच्छा लगा. आभार.

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

भई, गलती आप की है - साधारण दर्जे के टिकिट पर ए सी में भी जाया जा सकता है - रख दो एक नीला नोट काले कोट वाले के हाथ में - साधारण दर्जे की साधारण बात है यह। किसी को बताना मत:)

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

सिर्फ एक बार आंख से आंख मिला अन्याय के सामने खड़े होने की जरूरत होती है।

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" ने कहा…

सभी पाठक जनों का मेरे चिट्ठे पर आने एवं अपना कीमती समय देने हेतु मै आपका ह्रदय से आभारी हूं.

राज भाटिय़ा ने कहा…

तभी तो मै कहता हुं अपने अधिकार के लिये लडो, क्योकि अन्याय के सामने न्याय ही जीत सकता है.
धन्यवाद

www.hamarivani.com
रफ़्तार