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सोमवार, 15 दिसंबर 2008

गलती का एहसास

बहुत दिन हो गए थे, वह अपने पिता से नहीं बोला था। रहते तो दोनों एक ही घर में थे, लेकिन दोनों में कोई भी बातचीत नहीं होती थी।

इस बारे में परिवार के दूसरे सदस्यों को भी पता था। एक दिन उस के दादा जी ने पूछ ही लिया, ‘‘बेटा, तू अपने पिता से क्यों नहीं बोलता? आदमी के तो मां–बाप ही सब कुछ होते हैं।बेचारा तेरे लिए ही तो कमा रहा है,अखिर उसने क्या कुछ अपने साथ ले जाना है।’’

दादा जी की बात सुनकर वह बोला, ‘‘बाऊ जी! आपकी सब बातें ठीक हैं। मुझे कौन सा कोई गिला–शिकवा है। मैं तो उन्हें केवल एहसास करवाना चाहता हूँ। वे भी दफ्तर से आकर सीधे अपने कमरे में चले जाते हैं, तुम्हारे साथ एक भी बात नहीं करते।

अब आप ही बताएं कि क्या ये उचित है?

10 टिप्‍पणियां:

Alpana Verma ने कहा…

बच्चे जो देखते हैं उसी का अनुसरण करते हैं.
वैसे बच्चे ने कुछ ग़लत तो नहीं कहा.
अपनी गलती का अहसास तो पिता को हो ही गया होगा.

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

बहुत बढिया सीख।

विष्णु बैरागी ने कहा…

जा के पैर ना फटे बिवाई
सो क्‍या जाने पीर पराई

अच्‍छी बोध कथा है ।

कडुवासच ने कहा…

... प्रेरणादायक लघु कथा है, प्रसंशनीय है।

रंजू भाटिया ने कहा…

अच्छी सीख

राज भाटिय़ा ने कहा…

बहुत सुंदर, एक अच्छी सीख
धन्यवाद

AJAY SINGH(Only Student)Bangalore ने कहा…

बहुत सही सीख दिया हैं आपने "हमे दुसरे के साथ वह व्यवहार नही करना चाहिए जो ख़ुद लिए न पसंद हो"-AJAY SINGH(Only Student)

Unknown ने कहा…

acchhi bodh katha hai...kehte hai na jab tak khud ke sath naa ho aadmi nahi samajta hai.....

Batangad ने कहा…

bade chote men kamal ki sikhkatha

बेनामी ने कहा…

I INSPIRED .. :)

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