बहुत दिन हो गए थे, वह अपने पिता से नहीं बोला था। रहते तो दोनों एक ही घर में थे, लेकिन दोनों में कोई भी बातचीत नहीं होती थी।
इस बारे में परिवार के दूसरे सदस्यों को भी पता था। एक दिन उस के दादा जी ने पूछ ही लिया, ‘‘बेटा, तू अपने पिता से क्यों नहीं बोलता? आदमी के तो मां–बाप ही सब कुछ होते हैं।बेचारा तेरे लिए ही तो कमा रहा है,अखिर उसने क्या कुछ अपने साथ ले जाना है।’’
दादा जी की बात सुनकर वह बोला, ‘‘बाऊ जी! आपकी सब बातें ठीक हैं। मुझे कौन सा कोई गिला–शिकवा है। मैं तो उन्हें केवल एहसास करवाना चाहता हूँ। वे भी दफ्तर से आकर सीधे अपने कमरे में चले जाते हैं, तुम्हारे साथ एक भी बात नहीं करते।
अब आप ही बताएं कि क्या ये उचित है?
10 टिप्पणियां:
बच्चे जो देखते हैं उसी का अनुसरण करते हैं.
वैसे बच्चे ने कुछ ग़लत तो नहीं कहा.
अपनी गलती का अहसास तो पिता को हो ही गया होगा.
बहुत बढिया सीख।
जा के पैर ना फटे बिवाई
सो क्या जाने पीर पराई
अच्छी बोध कथा है ।
... प्रेरणादायक लघु कथा है, प्रसंशनीय है।
अच्छी सीख
बहुत सुंदर, एक अच्छी सीख
धन्यवाद
बहुत सही सीख दिया हैं आपने "हमे दुसरे के साथ वह व्यवहार नही करना चाहिए जो ख़ुद लिए न पसंद हो"-AJAY SINGH(Only Student)
acchhi bodh katha hai...kehte hai na jab tak khud ke sath naa ho aadmi nahi samajta hai.....
bade chote men kamal ki sikhkatha
I INSPIRED .. :)
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