वह एक बहुत ही खुशनुमा सुबह थी। पूरब की लाली और मन्द हवा में झूमते वृक्ष उसे अच्छे लगे। उसने काले सफेद बादलों को देखा और इठलाते हुए आगे बढ़ गया । तभी उसे लगा कि बादलों के साथ–साथ वह भी उड़ रहा है। धूल का उड़ना उसे अच्छा लगा। उसे कलरव करते पक्षी और रंग–बिरंगे फूलों के इर्द–गिर्द इतराती तितलियां अधिक मोहक लगीं। आज उसने उस मरियल से कुत्ते को भी नहीं मारा।
फिर उसने खुद को उस खेल के मैदान में पाया। वह खुशी से तालियां बजाने लगा। तभी अचानक एक गेंद आकर उसके पांव पर लगी। वह धन्य हो गया। आज पहली बार उसने क्रिकेट की गेंद को छुआ था।
सुन्दर झील को देखते हुए वह उस रेलवे फाटक के पास पहुंचा। आज उसकी प्रसन्नता का कोई ओर–छोर नहीं था उस छोटी–सी रेलगाड़ी को इतने करीब से गुजरते देखकर। उसमें सवार यात्रियों की वह कल्पना करने लगा। तभी उसे लगा कि उसने धुएं को पकड़ लिया है। धुंए ने उससे कहा, ‘‘ऐ, मुझे मत पकड़ों। तुम्हारे कोमल हाथ गन्दे हो जाएगे।’’
उसने अपने काले और खुरदरे हाथों को देखा। तभी किसी की पुकार सुन उसकी तन्द्रा टूटी। दूर ईट की भट्ठी से उसका बाप उसे बुला रहा था।
5 टिप्पणियां:
Uncle ji Aapne Upekshith Bachpan Ki Bechaargi,Vivashtaa aur Bebasi ka Behad hi saral sabdon main Chitran kiyaa hai.Ishwar kare Samaaj ke is dard ka ahsaas desh ke karndhaaron ko Bhi Ho .
सुहाने स्वप्न को जब कटु यथार्थ तोड़ता है तो कितनी पीड़ा होती है लेकिन किसी का सुहाना स्वपन जब कभी सुहाना यथार्थ बन जाए तो क्या हो। वाह आपकी लघुकथा अच्छी लगी।
बहुत सुंदर लगी आप की यह कविता, छोटि छोटी मासुम आंखो का सपना बहुत प्यारा लगा, ओर हम सब को भी इस सपने ने बांधे रखा उसकी तन्द्रा टूटी तो हम भी जाग गये.
धन्यवाद
शर्मा जी नमस्कार,
स्वप्न और यथार्थ की सच्चाई बता दी आपने. एक कड़वा सच.
पन्डित ज आपने बोहत ही अच्छे तरीके से सच्चाई को पेश् किया है.धन्यवाद् कबूल करें
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