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मंगलवार, 24 मार्च 2009

आधुनिक शिक्षा प्रणाली और संस्कार

चाहे कोई भी युग हो,प्रत्येक युग का भविष्य उसकी आगामी पीढ़ी पर ही निर्भर करता है। जिस युग की नई पीढ़ी जितनी अधिक शालीन, सुसंस्कृत, सुघड़ और शिक्षित होती है, उस युग के विकास की संभावनाएं भी उतनी ही अधिक रहती है। राष्ट्र, समाज और परिवार के साथ भी यही सिद्धांत घटित होता है। आज सर्वाधिक महत्वपूर्ण या करणीय कार्य है भावी पीढी को संस्कारित करना।
  अक्सर सुनने में आता है कि बाल्य मन एक सफेद कागज की भांती होता है। उस पर व्यक्ति जैसे चाहे, वैसे चित्र उकेर सकता है,या फिर जैसा भी चाहें,लिख सकते हैं। उसकी सोच को जिस दिशा में मोड़ना हो, सरलता से मोड़ा जा सकता है। एक दृष्टि से यह मंतव्य सही हो सकता है पर यह सर्वांगीण दृष्टिकोण नहीं है। क्योंकि हर बच्चा अपने साथ अनुवांशिकता लेकर आता है, जो कि गुणसूत्र (क्रोमोसोम) और संस्कार सूत्र (जीन्स) के रूप में विधमान रहते हैं।
सामाजिक वातावरण भी उसके व्यक्तित्व का एक घटक है। इसका अर्थ यह हुआ कि संस्कार-निर्माण के बीज हर बच्चा अपने साथ लाता है। सामाजिक या पारिवारिक वातावरण में उसे ऐसे निमित्त मिलते हैं, जिनके आधार पर उसके संस्कार विकसित होते हैं। प्राय: देखा जाता है कि माता-पिता अपनी संतान के लिए भौतिक सुख-सुविधाओं के साधन जुटा देते हैं, शिक्षा एवं चिकित्सा की व्यवस्था कर देते हैं,किन्तु उनके लिए सर्वांगीण विकास के अवसर नहीं खोज पाते। कुछ अभिभावक तो ऐसे होते हैं, जो उनकी शिक्षा और आत्मनिर्भरता के बारें में भी उदासीन रहते हैं।
उचित मार्गदर्शन के अभाव में अथवा अधिक लाड़-प्यार में या तो बच्चे कुछ करते नहीं या इस प्रकार के काम करते हैं, जो उन्हें भटकाने में निमित्त बनते हैं। ऐसी परिस्थिति में हर समझदार माता पिता का यह दायित्व है कि वे अपने बच्चों की परवरिश में संस्कार-निर्माण की बात को न भूलें।
 आधुनिक युग में मां-बाप भी बच्चों को स्कूलों के भरोसे छोडकर अपने कर्तव्य की इतिश्री मान लेते हैं अगर देखा जाए तो इस तरह से हम लोग कहीं न कहीं उनके साथ अन्याय ही कर रहे हैं। क्यों कि वर्तमान शिक्षा पद्धति का ये सबसे बडा दोष है कि इसमें सिर्फ बौद्धिक विकास को ही महत्व दिया गया है,संस्कृ्ति एवं संस्कारपक्ष को तो पूरी तरह से त्याग दिया गया है
ऎसे में हम लोग किस प्रकार ये अपेक्षा कर सकते हैं कि बच्चों का समग्र विकास हो पाएगा। कान्वेंट्स और पब्लिक स्कूल आधुनिक कहलाने वाले अभिभावकों के लिए आकर्षण का केन्द्र बन चुके है। वे मानते हैं कि इन स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे आधुनिक रूप से विकसित होते हैं, समाज में जीने के तौर-तरीके बहुत अच्छे ढंग से सीखते हैं। कुछ अंशों में यह बात सही हो सकती है। परन्तु सिर्फ सामाजिक तौर तरीके ही जीवन नहीं है।

जीवन की समग्रता के लिए संस्कृति, परम्परा,राष्ट्रप्रेम, अनुशासन, विनय, सच्चाई, सेवाभावना आदि अनेक मूल्यों को जीना सिखाने की जरूरत है।आप अगर कान्वैंट या पब्लिक स्कूल के विधार्थी से मुंशी प्रेमचन्द,जयशंकर प्रसाद इत्यादि के बारे में पूछ के देखें तो बगलें झांकने लगेगा,लेकिन माईकल जैक्सन के बारे में वो शर्तिया जानता होगा। वन्देमातरम की उसे भले एक लाईन न आती हो,लेकिन ट्विंकल ट्विंकल लिटिल स्टार पूरा सुना देगा जिस शिक्षाक्रम में संस्कृति के मूल पर ही कुठाराघात हो, उससे संस्कार-निर्माण की अपेक्षा करना तो एक प्रकार से मूर्खता ही कही जा सकती है।
आज आवश्यकता इस बात की है कि बच्चों को निरंतर ऐसा वातावरण मिले और उनके शिक्षाक्रम में कुछ ऐसी चीजें जुडें, ज़ो उन्हे बौध्दिक विकास के साथ-साथ भावनात्मक विकास के शिखर तक पहुंचा सके।

14 टिप्‍पणियां:

समयचक्र ने कहा…

बहुत उम्दा लेख धन्यवाद.

आलोक सिंह ने कहा…

सही कहा आपने "हर समझदार माता पिता का यह दायित्व है कि वे अपने बच्चों की परवरिश में संस्कार-निर्माण की बात को न भूलें।"

दिगम्बर नासवा ने कहा…

बहुत संजीदा लिखा हो आपने......आज के दौर में इंसान कोंवेंट की शिक्षा के दोड़ में लगा हो क्यूंकि इस की आवश्यकता महसूस होती हे आज के आधुनिक समय में, परंतु हमें इन बातों का ख्याल, अपने घर, समाज और किसी न किसी तरह स्कूल में भी रखना चाहिए की हम अपनी जड़ों से, अपनी संस्कृति से जुड़े रहें......हनारी जो पहचान हो, हिन्दू के नाते, भार्तिये के नाते वो बनी रहे और हमें इस बात गर्व होना चाहिए.

बहुत की सामयिक लेख, आवश्यक हैं इस तरह की लेखों के माध्यम से समाज को सजग रखने की.

naresh singh ने कहा…

भाई प. जी क्यों विचारे कोन्वेन्ट वालों के पेट पर लात मार रहे हो। .........आप का चिन्तित होना बेसबब नही है । वास्तव मे आज हमारी संस्कृति को बचाने कि जरूरत है ।

P.N. Subramanian ने कहा…

बहुत ही सुन्दर लिखा है आपने. वास्तविकता तो यही है कि बच्चों को जो संस्कार मिलना चाहिए वह उपलब्ध नहीं है.

रंजना ने कहा…

शब्दशः सहमत हूँ आपसे....पुरतः सही कहा आपने....
आज बच्चों में सुसंस्कार भरने के प्रति उदासीन रहकर कुछ अभिभावक भावी पीढी को अंधकूप में धकेल रहे हैं.

राज भाटिय़ा ने कहा…

वत्स जी आप ने तो आज बहुत ही सुंदर बात कह दी, ओर बिलकुल सही बात, बाकी यह कान्वैंट या पब्लिक स्कूल तो बस अग्रेजो के गुलाम बनाने का एक साधन है, ओर जहां के पढे हुये बच्चे बेहद जाहिल, बतमीज ओर भारतीया सस्कारो को गलत कहने वाले ओर अग्रेजो के चम्चए होते है.
आप के इस अच्छे लेख के लिय्वे आप का धन्यवाद

राजीव करूणानिधि ने कहा…

संस्कृति की राह दिखाने के लिये धन्यवाद...

admin ने कहा…

अच्‍छे संस्‍कार ही मनुष्‍य की सही राह की ओर ले जाते है, शिक्षा में इनका प्रवेश आवश्‍यक है।

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तस्‍लीम
साइंस ब्‍लॉगर्स असोसिएशन

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

शिक्षा ही तो नहीं दी कांग्रेस ने.

jamos jhalla ने कहा…

Past and present Both will be present in future .Isi liye bhavishya roopi apne bacchon ko apne bhoot aur vartmaan se avgat karaanaa JARRURI hai . Achaa subject hai .likhte rahiye koi na koi raah nikal hi aayegi

Vikshipt Pathak ने कहा…

अवश्य पढें और मीडिया का दूसरा पहलू भी देखें... http://vikshiptpathak.blogspot.com/

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आधुनिक शिक्षा प्रणाली में आमूल-चूल परिवर्तन की आवश्यकता है।
अच्छा लिखने के लिए बधाई।

Smart Indian ने कहा…

"आज आवश्यकता इस बात की है कि बच्चों को निरंतर ऐसा वातावरण मिले और उनके शिक्षाक्रम में कुछ ऐसी चीजें जुडें, ज़ो उन्हे बौध्दिक विकास के साथ-साथ भावनात्मक विकास के शिखर तक पहुंचा सके।"
हमें याद रखना है की नयी पीढी के प्रति हम अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह कितनी अच्छी तरह कर पा रहे हैं.

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