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सोमवार, 18 मई 2009

प्रतिभा संसाधनों की मौहताज नहीं होती

हिन्दुस्तान के दिल यानी दिल्ली में सडक के किनारे चाय बेचता हुआ यह व्यक्ति आपको किसी भी दूसरे चाय वाले की तरह ही नजर आएगा। परन्तु ये कोई जरूरी तो नहीं कि जो दिखता है, वह असल में वैसा ही हो। इस चाय वाले का नाम है लक्ष्मण राव। लेकिन आप हैरान रह जाएंगें, जब आपको पता चलेगा कि ये कोई मामूली चाय वाला नहीं बल्कि एक साहित्यकार है, जिनकी अब तक कुल 18 पुस्तकें छप चुकी हैं। किसी ने सच ही कहा है कि प्रतिभा संसाधनों की मोहताज नहीं होती।

दिल्ली में आईटीओ के नजदीक चाय की दुकान चलाने वाले 53 वर्षीय लक्ष्मण राव का 'भारतीय साहित्य कला प्रकाशन' नाम से स्वयं का प्रकाशन संस्थान भी है। लक्ष्मण राव बताते हैं कि मैं पिछले 28 या 29 सालों से लघु कहानियां, नाटक और उपन्यास लिख रहा हूं। उन्होंने बताया कि मैने अपनी पहली किताब सन 1979 में लिखी थी, जिसका शीर्षक था  "नई दुनिया की नई कहानी" जिसमें मैंने अपने जीवन के सारे संघर्षो और चुनौतियों का चित्रण किया है।

महाराष्ट्र के अमरावती जिले में एक गरीब किसान परिवार में जन्मे लक्ष्मण राव को हिंदी साहित्य से विशेष लगाव रहा है। उन्होंने 1973 में मुंबई विश्वविद्यालय से हिंदी माध्यम में 10वीं की शिक्षा पूरी की। इन्हे बचपन से गुलशन नंदा के उपन्यासों से विशेष लगाव रहा है।

लक्ष्मण ने कहा कि वह जीवन के शुरुआती दौर में लेखक बनना नहीं चाहते थे, पर एक घटना ने उन्हे ऐसा करने के लिए प्रेरित किया। एक छोटा बच्चा, जो नदी में नहाने गया था, डूब कर मर गया और इस घटना ने उन्हे इतना उद्वेलित किया कि अपनी भावनाओं को एक शक्ल देने के लिए उन्होंने किताबों का सहारा लिया। हालांकि घर के कमजोर आर्थिक हालात की वजह से उन्हे अपनी पढ़ाई दसवीं कक्षा के बाद छोड़नी पड़ी। आजीविका के लिए उन्होंने कुछ समय के लिए स्थानीय मिल और निर्माण स्थलों पर भी काम किया। पर फिर वह 1975 में दिल्ली आ गए। दिल्ली में दरियागंज इलाके में किताब बाजार को देखकर उनका शौक एक बार फिर जाग उठा। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से पत्राचार के माध्यम से स्नातक की डिग्री ली। अपनी जमा पूंजी से उन्होंने एक चाय की दुकान खोली और तब से वह किताबें लिखने में जुट गए। हालांकि उन्हे किसी प्रकाशक से कोई सहायता नहीं मिली। तब उन्होंने सोचा कि वह अपनी किताबों को खुद ही लिखेंगे, प्रकाशित करेगे और खुद ही बेचेंगे। लक्ष्मण राव गर्व से कहते है, मेरी कुछ किताबों को आप सार्वजनिक पुस्तकालयों और स्कूली पुस्तकालयों में भी देख सकते है।

7 टिप्‍पणियां:

hempandey ने कहा…

लक्ष्मणराव जी को हमारी शुभकामनाएं.

naresh singh ने कहा…

यह जानकारी हमने पहले भी आज तक पर देखी थी । आज आपके इस ब्लोग के माध्य्म से प्राप्त कर रहे है । लक्ष्मण राव जी के इस हौसले को मेरा सलाम ।

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" ने कहा…

जी हां, नरेश जी....इसके बारे में मार्च महीने में "आजतक" पर दिखाया गया था.

दिगम्बर नासवा ने कहा…

लक्ष्मण राव जो का होंसला बताता है...............इंसान अगर चाहे तो अपना लक्ष्य प्राप्त कर के ही रहता है.............कोई भी रुकावट, कोई भी बाधा उसे रोक नहीं सकती..............बस इच्छा शक्ति की जरूरत है............मेरा सलाम है ऐसे जुझारू वीरों को जो समस्त बाधाओं के चलते............अपने लक्ष्य को प्राप्त करते हैं...............

आपका भी शुक्रिया.........ऐसी जानकारी सब तक पहुँचने का..............

P.N. Subramanian ने कहा…

मेरा भारत महान.

Science Bloggers Association ने कहा…

maine bhi ye riport TV par dekhi thi. Yaad dilane ke liye aabhaar.
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

Alpana Verma ने कहा…

Disambar ji ki likhi yah baat 'इंसान अगर चाहे तो अपना लक्ष्य प्राप्त कर के ही रहता है.कोई भी रुकावट, कोई भी बाधा उसे रोक नहीं सकती..............बस इच्छा शक्ति की जरूरत है.' se main bhi poori tarah sahmat hun.
laxman rao ji ko meri bhi shubhkamnayen.
Chay bechna bhi ek kam hai..yah hamare desh mein hi hai ki Labour ki value nahin hai..kaam ki 'classes 'bana di hain.har wo kaam jo mehnat se imaandari se kisi ko nuksaan diye bina kiya jaye wah respectable hai..aap ne post ka title bilkul sahi diya hai.. प्रतिभा संसाधनों की मौहताज नहीं होती '-100% asahmat!

www.hamarivani.com
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