जन्मसंख्या की दृ्ष्टि से दुनिया का सबसे बडा लोकतन्त्र देश-----भारत। जहाँ संसार के हर धर्म को मानने वाला शख्स मिलेगा। जहाँ आधुनिकता की चरम सीमा तक पहुँच चुके धन कुबेरों की कमी नहीं तो दूसरी ओर अनादिकाल से चले आ रहे आदिवासी भी साथ साथ ही पल रहे हैं। सुनने में आता है कि देश की आजादी के बाद के शुरूआती समय में ये कहा जाता था कि जातिभेद और धर्मभेद के कारण और अविकसित राष्ट्रीयता के चलते ये देश आने वाले 5-10 सालों में ही या तो अपनी आजादी गँवा बैठेगा या फिर टुकडों में बँटकर पूरी तरह से छिन्न भिन्न हो चुका होगा। लेकिन तब से लेकर आज तक पाकिस्तान और चीन जैसे पडोसियों के प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से चलाए जा रहे युद्धों को झेलते हुए भी ये देश हर कसौटी पर खरा उतरता रहा। आज भी यहाँ लोकतन्त्र प्रणाली कायम है, भले ही वह औपचारिक, लुंज-पुंज एवं त्रुटियों का भंडार ही क्यों न बन चुकी हो।
लेकिन इन बडी बडी उपलब्धियों के बावजूद, देश की विशालता एवं विविधता के बाद भी आज एक आम भारतीय पूरी तरह से हताश और निराश है। आजादी के समय के सारे प्रश्न आज भी ज्यों के त्यों खडे हैं, उलटा समाज का नैतिक ह्रास होता हुआ ही दिख रहा है। ऎसा लग रहा है कि मानो हम लोग किसी उल्टी दिशा की ओर बढते चले जा रहे हैं। जिधर देखो उधर संकंट ही संकट क्यों दिखाई पड रहा है। मोर्चा नागरिक अधिकारों का हो कि जनसंख्या वृ्द्धि का,गरीबी-बेरोजगारी घटाने का हो कि भ्रष्टाचार का, शिक्षा की समस्या लीजिए या नशाखोरी की,मँहगाई का सवाल हो कि अराजकता का, महिलाओं की दशा लीजिए या एक आम आदमी की सुरक्षा के हालातों पर दृ्ष्टि डालिए------इस देश में चारों तरफ संकंट ही संकंट क्यों दिखाई दे रहा है?
आज इन सवालों को समझना और इनके जवाब खोजना बहुत जरूरी हो गया है। इस देश के कर्णधारों के पास तो इन सवालों का कोई जवाब नहीं, सोचा कि शायद आप लोगों में से किसी के पास इन सवालों का कोई जवाब हो............
14 टिप्पणियां:
भाई हम अपनी जडो से कट गये है, हमे बस अमेरिका ओर युरोप की ही बाते अच्छी लगती है, जो यहां कीछी बाते भुल से गये है बस यही कारण है हमारे संकट ओर दुख का
जवाब खोजना तो वाकई में बहुत ज़रूरी है.... दरअसल आज के युवा को सिस्टम ने भरमा दिया है....
इन 60-62 वर्षों में दुनिया के अनेक राष्ट्र लोकतन्त्र का परित्याग कर चुके हैं।
असहमत!
हमारे देखते-देखते रूस समेत समस्त पूर्वी यूरोप ने कम्युनिस्ट तानाशाही की ईंट से ईंट बजाकर वहां लोकतंत्र लाये. हमारे पड़ोस में नेपाल, भूटान, अफगानिस्तान आदि जैसे उदाहरण भी हैं जहां क्रमशः राजतंत्र और तालिबानी जिहाद की जगह पर लोकतंत्र आया है. ले देकर चीन, बर्मा, उत्तर कोरिया जैसे कुछ साम्यवादी तानाशाहियाँ और सऊदी अरब, अमीरात आदि जैसे कुछ इस्लामी तानाशाहियों को छोड़कर सम्पूर्ण विश्व ही लोकतंत्र की और बढ़ रहा है.
लोकतंत्र कायम रहे .......|
वाकई चिंतनीय पोस्ट है.
रामराम.
@अनुराग शर्मा जी, आपकी असहमति जायज है.... स्वीकार करता हूँ कि त्रुटि हुई है। दरअसल लगता है कि शायद लिखते समय दिल और दिमाग एक साथ नहीं थे...दिमाग में राजशाही घूम रही थी और हाथ लोकतन्त्र टाईप कर रहे थे...
बढ़िया चिन्तन!
यहां क्या वाकई लोकतन्त्र हैं. नहीं, यहां भीड़तन्त्र है, वोटतन्त्र है. कबीलाई संस्कृति आधुनिक मुखौटा चढ़ाये हुए लूट में अपना हिस्सा बांट कर रही है.
आपके ब्लॉग के नाम के अनुसार अच्छी बकवास है................कौन सुनेगा इसे, ये तो अब सहज स्वीकार्य है.............
जय हिन्द, जय बुन्देलखण्ड
आपने तो बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर दिया है, काश हम इतना सक्षम होते कि इन सवालो के जवाब दे पाते ।
कौन है आज जो इस चिन्तन पर गौर करेगा। अगर हम अभ भी ना चेते तो शायद आने वाली पीढियाँ हमे माफ न कर पायें बहुत गम्भीर विश्य है। बहुत कुछ सोचने पर मज्बूर करती है आपकी ये पोस्ट धन्यवाद्
जितनी भी समस्याएं हैं - भ्रष्टाचार, पर्यावरण, गरीबी, अपराध, बेरोजगारी, वैश्यावृति, आतंकवाद, ............... इन सबका सबसे बड़ा कारण है जनसँख्या वृद्धि ! और धार्मिक ग्रन्थ कहते हैं जन्म और मृत्यु ऊपर वाले के हाथ में है !
तो बस वत्स भैया ...होई है सोई जो राम रचि राखा
इस बारे में तो हम लोग बात ही नहीं करना चाहते जी
वत्स जी ... देश के नेताओं के पास इन सवालों का जवाब नही है .. ये तो ठीक है पर देश की जनता के पास भी इस्क जवाब नही है .. जनता ने तो नुमाइन्दो को इसलिए चुना है की शायद वो जवाब ढूँढ सकें .... पर सब अपनी अपनी रोटी सेकने में लगे हुवे हैं .. इस बँटे हुवे समाज में इसका जवाब पाना बहुत ही मुश्किल है .. कोई आशा नज़र नही आती ... किसी कृष्ण को फिर अवतार लें होगा शायद दुबारा गीता ग्यान कराने ........
आपकी चिंता स्वाभाविक है ।
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