इन्साफ की दिशा में अन्याय हो रहा है
आरम्भ किस विद्या का अध्याय हो रहा है।।
सोना बता रहे हैं शब्दों को सब हमारे
मिट्टी मगर हमारा अभिप्राय हो रहा है।।
आदेश बन रहा है अपशब्द भी किसी का
औ राय रख के कोई बे-राय हो रहा है ।।
शोषण अवैध घोषित है, जिस जगह वहीं पर
शोषित जनों का अपना समुदाय हो रहा है।।
इन्साफ की दिशा में अन्याय हो रहा है
आरम्भ किस विद्या का अध्याय हो रहा है।।
ना मालूम कब,कहाँ ये गजल/कविता पढी थी या किसी से सुनी थी। लेकिन मस्तिष्क पटल पर उसकी कुछ पंक्तियाँ अब तक अंकित हैं। आज पता नहीं क्यों, किसी की पोस्ट को पढते हुए ये पंक्तियाँ अनायास ही दिमाग में गूंजने लगी तो मन किया कि इसे ब्लाग पर पोस्ट किया जाए। अगर किसी को इस कविता/गजल के रचनाकार के बारे में पता हो तो अवश्य बताएं...............
9 टिप्पणियां:
आदेश बन रहा है अपशब्द भी किसी का
औ राय रख के कोई बे-राय हो रहा है ।।
जिसकी भी है बहुत लाजवाब है और हां एक बात कि यह हमारी तो बिल्कुल नही है.:)
रामराम.
"सोना बता रहे हैं शब्दों को सब हमारे
मिट्टी मगर हमारा अभिप्राय हो रहा है।।"
बहुत सुन्दर!
है तो बहुत बढ़िया, लेकिन किस की है हमें नहीं पता.
जब तक रचनाकार का पता नहीं चलता तब तक आपको ही मान लेते है |
मुझे तो लगता है एक और विघटन का अध्याय आरम्भ किया जा रहा है !
बेहद कमाल की गजल लाएं हैं पंडीत जी. हमने तो पहले कभी नहीं पढी इसलिए लिखने वाले का नाम नहीं जानते.
कविता बहुत ही सुंदर ओर आज कल के हालात पर लिखी गई है, आप का धन्यवाद इसे हम तक लाने के लिये
गजल चाहे किसी की भी हो,
मगर है बहुत बढ़िया!
बहुत अच्छी लगी यह रचना.
[मालूम नहीं ये किस ने लिखी हैं]..
आप भी बहुत साहित्य पढ़ते हैं.
यह भी आप की तारीफ़ ही है,बहुत ज्ञान है आप को.
[जो पंक्तियाँ अभी आप ने मेरी पोस्ट में लिखी वे लेखक हिमांशु जोशी जी की लिखी हुई हैं..वे पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगी ..अब देखीये उन्हीं के सहारे एक पोस्ट बन सकती है... :)... हाँ ये पंक्तियाँ ..पोस्ट के दूसरे हिस्से का मुकम्मल जवाब देती हैं...जहाँ एक शेर लिखा है कि सच कहने का हौसला नहीं होता.]
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