कितना अद्भुत है ये हिन्दी ब्लागजगत! जैसे ईश्वर नें सृ्ष्टि रचना के समय भान्ती भान्ती के जीवों को उत्पन किया, सब के सब सूरत, स्वभाव और व्यवहार में एक दूसरे से बिल्कुल अलग। ठीक वैसे ही इस ब्लाग संसार में भी हजारों लोग दिन रात अलग अलग मसलों पर लिखे जा रहे हैं----लेकिन क्या मजाल कि वे किसी एक भी बात पर कभी एकमत हो सकें। सब एक दूसरे से निराले और अजीब। ये वो जगह हैं जहाँ आपको हरेक वैराईटी का जीव मिलेगा। यहाँ आपको आँख के अन्धे से अक्ल के अन्धे तक हर तरह के इन्सान के दर्शन होंगें। मैं तो कहता हूँ कि सही मायनों में यहीं असली हिन्दुस्तान बस रहा है। ऊपर वाले नें अपनी फैक्ट्री में मनुष्य जाति के जितने भी माडल तैयार किए होंगें, उन सब के नमूने आपको यहाँ देखने को मिल जाएंगें। जहाँ के पुरूष औरतों की तरह लडें, जहाँ के बूढे बुजुर्ग बात बात में बच्चों की तरह ठुसकने लगें, जहाँ एक से बढकर एक भाँड, जमूरे, नौटंकीबाज आपका मनोरंजन करने को तैयार बैठे हों, जहाँ मूर्ख विद्वानों को मात दें और जहाँ लम्पट देवताओं की तरह सिँहासनारूढ होकर भी ईर्ष्या और द्वेष में पारंगत हों, तो बताईये भला आप इनमें दिलचस्पी लेंगें या घर में बीवी बच्चों के साथ बैठकर गप्पे हांकेंगें ।
गधे और घोडे कैसे एक साथ जुत रहे हैं। शेर और बकरी कैसे एक साथ एक ही घाट पर पानी पीते हैं। यदि यह सब देखना है तो बजाए घर में बाल बच्चों के साथ सिर खपाने या टेलीवीजन पर अलाने-फलाने का स्वयंवर या सास-बहु का रोना धोना देखकर अपना ब्लड प्रैशर बढाने के यहाँ हिन्दी चिट्ठानगरी में पधारिए और हो सके तो अपने अडोसी-पडोसी, नाते रिश्तेदार, दोस्त-दुश्मन सब को हिन्दी चिट्ठाकारी का माहत्मय समझाकर उन्हे इस अनोखी दुनिया से जुडने के लिए प्रोत्साहित कीजिए क्यों कि निश्चित ही आने वाला कल हिन्दी ब्लागिंग के नाम रहने वाला है। ऎसा न हो कि कल वक्त आगे निकल जाए और आप पिछडों की श्रेणी में खडे उसे दूर जाते देखते रहें।
32 टिप्पणियां:
nice
सही कहा पंडित जी...
सच में
कितना अद्भुत है ये हिन्दी ब्लागजगत!
बी एस पाबला
ऎसा न हो कि कल वक्त आगे निकल जाए -यही सोच सोच करके टेंशन हो रही है. :)
सही कहा आपने....
हें हें हें ..इत्ते प्यारे प्यारे विशेषण से युक्त पोस्ट पढ कर मन खुशी से झूम उठा है ......और दिल कह रहा है वाह क्या खूब पहचाना है ..उस कातिल नज़र को सलाम ,,,ऐसी की तैसी दुनिया की ..ऐसे कैसे निकल जाएगी आगे ...हम टांग न खींच लेंगे उसकी । स्माईली ........
bahut khoob vats sahaab !
जय हो महाराज
लगे रहो महाराज:)
पंडित जी , लगता है लुधियाने मै आज बहुत गर्मी पड रही है, अजी ज्यादा गुस्सा सेहत के लिये अच्छा नही...मत् दो ध्यान इन लोगो की तरफ़ मस्त रहो, टी वी देखो गे तो वहां भी लडाई झगडे वाले ही प्रोगराम, समाचार आते है, समाचार पत्रो मै भी यही आता है... मस्त रहे, वेसे लेख बहुत खुब लगा.
धन्यवाद
सही कहा आपने....
वत्स साहब, जब हिंदुस्तान में रह रहे हैं तो यहां रहने में क्या दिक्कत है।
हम तो जी खुद अपनी पीठ ठोंकते हैं, और प्रोत्साहित होते हैं।
आभार।
वत्स जी, हिन्दी ब्लोगजगत तो शिव जी की बारात है जहाँ समस्त देवतागणों के साथ साथ शिव जी के गण याने कि भूत प्रेत गण भी उपस्थित हैं। आप देवताओं के साथ रहिये और शिव जी के गणों को अनदेखा कर दीजिये। शिव जी के बारात में भगवाण विष्णु ने भी तो यही कहा थाः
बिष्नु कहा अस बिहसि तब बोलि सकल दिसिराज।
बिलग बिलग होइ चलहु सब निज निज सहित समाज॥
@गुरुदेव समीर लाल समीर जी,
वक्त के मामले में मक्खन से बड़ा फंडा किसी का नहीं है...पहले वक्त ने मक्खन को बर्बाद किया...अब मक्खन बदला लेने के लिए हर वक्त खाली बैठा वक्त बर्बाद करता रहता है...
जय हिंद...
साँच को आँच नही!
शिव जी की बरात का आनंद तो मामा मारीचों और सुर्पणखाओं के साथ ही है वर्ना कैसा शिव विवाह?
रामराम
अब जब सभी मान रहे है तो मेरी क्या औकात जो मै इस बात को झुठलाऊं!पर मै सोच में पड़ गया हूँ!असमंजस है गहरी!मुझे गर्व होना चाहिए या थोडा चिंतित!ख़ुशी दिखाऊं या रोष!
आखिर मै क्या करूं...?ब्लॉग्गिंग करूँ या.......!
कुंवर जी,
अपन भी इसी कश्ती में सवार हैं पंडित जी.
अपना एक बहुत पुराना दुश्मन है, सोच रहा हूं कि उसे ब्लागिरी के जंगल में दंगल करने को धकेल दूं.कम से कम इसी बहाने अपना बदला तो ले लिया जाएगा :-))
.....जहाँ के पुरूष औरतों की तरह लडें, .....
I strongly object your honour !
Divya.
सही चिन्तन और विश्लेषण किया है।
बाकी तो सब ठीक है..पर ये पुरुष औरतों की तरह लडें...ये बात कुछ हज़म नहीं हुई....हाजमोला खाने के बाद भी....ऐसे स्थानों पर औरतों को कम ही लड़ते देखा गया है...
सच में
कितना अद्भुत है ये हिन्दी ब्लागजगत!
सच कहा आपने सब साले नौटंकी है जिस दिन ब्लोग्वानी बंद हो जायेगा आधो को अटेक पड़ जायेगा दिन भर यही अपनी भड़ास निकलते रहते है
सच में
कितना अद्भुत है ये हिन्दी ब्लागजगत!
सच है.
जी बिलकुल सही कहा.
पंडित जी,
बहुत ही सरल शब्दों में बिल्कुल सही बात कही है आपने.
स्वयंवर,सास-बहु का रोना धोना की तुलना में हिन्दी चिट्ठाकारी का माहत्मय समझाकर प्रोत्साहित करने का प्रोत्साहन, और वक्त के साथ आगे जाने का सुझाव सर्वोत्तम है.
साधुवाद.
सत्य वचन। और हाँ, टैग तो बडे गजब गजब के लगाए हैं।
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गुफा में रहते हैं आज भी इंसान।
ए0एम0यू0 तक पहुंची ब्लॉगिंग की धमक।
...बात में दम है !!!
sach kaha aapne...
प्. जी ये बाते आप नहीं बोल रहे है ,ब्लोगिंग का नशा सर चढ कर बोल रहा है |गर्मी कुछ ज्यादा ही है इस बार |
लो कर लो बात ... हम इ सोचे रहीं कि हम ही एक अकलमंद हैं ... आप तो पाहिले से झंडा गाढ़ के बैठे हुए हैं ... जय हो गुरूजी !
और हाँ टिपियाने के लिए शुक्रिया ...
bahut khub observation hai!:)
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