जैसे ही खबर मिली कि हिन्दी चिट्ठाजगत में "सर्वश्रेष्ठ ब्लागर" चुनने के लिए चुनाव प्रक्रिया अपनाई जा रही है तो सुनते ही अपने ब्लागर मित्र श्री बनवारी लाल जी तुरन्त धमक पडे. पूछने लगे कि " पंडित जी! जरा एक मशविरा तो दीजिए"
"जी कहिए, आज किस बात पर मशविरा माँगा जा रहा है"
"पंडित जी! बात तो आप तक पहुँच ही चुकी होगी कि अपने यहाँ चिट्ठजगत में सर्वश्रेष्ठ ब्लागर का चुनाव होने जा रहा है. उसके लिए उन सभी इच्छुक प्रत्याशियों से नाँमाकन पत्र भरने को कहा गया है, जो कि खुद को सर्वश्रेष्ठ मानते हैं"
"जी हाँ, कुछ ऎसा सुना तो है"
" तो बात ये है कि हमने इस चुनाव में भाग लेने का मन बनाया है. आपसे इसी मसलें पर मशविरा चाहिए था कि हमें चुनाव लड लेना चाहिए कि नहीं"
मैने उन्हे निहारा. जानना चाहता था कि वह इस समय किस श्रेणी का मजाक कर रहे थे. मैं मन ही मन में उनके द्वारा हिन्दी ब्लागिंग में दिए गए योगदान का आंकलन करने लगा. सब लोग अच्छे से जानते हैं कि बनवारी लाल जी का साहित्य की किसी भी विधा से लगभग वैसा ही सम्बंध रहा है, जैसा कि ईँट और कुत्ते में. अपनी दो बरस की ब्लागिंग में उन्होने ले देकर यही कोई पाँच सात तो पोस्ट लिखी हैं. उनमें भी या तो घटिया सी कोई तुकबन्दी रही या फिर बच्चों के चुटकुले ............बस ले देकर हिन्दी के विकास में उनका यही योगदान रहा है .
अब ऎसे निरीह ब्लागर के मुँह से टपके ये शब्द मुझे कोरा मजाक न लगते तो भला क्या लगते. अत: मैने तो सपाट राय दे डाली " अमां यार छोडो भी! यह चुनाव वनाव वाला झंझट आप जैसे भले आदमियों के लिए नहीं है.ओर अगर चुनाव लड भी लिया तो आपको वोट देगा कौन?"
सुनते ही बनवारी लाल जी उदास हो गए. मुँह लटक गया. शायद मैने उनके बढते कदमों में टंगडी जो मार दी थी. मुँह बिसूरकर बोले" पंडित जी! आपसे हमें यह उम्मीद नहीं थी. आपने तो हमारा दिल ही तोड दिया"
अब उनको भला कौन समझाता कि मुझे भी उनसे ऎसे प्रश्न की कोई उम्मीद नहीं थी. फिर भी मुझे अपनी गलती का अहसास हुआ. गलती के अहसास का दायित्व इस जमाने में प्राय: समझदार आदमी का ही होता है. मुझे लगा कि उडनातुर पतंगें को रोकना टोकना नहीं चाहिए. फिर भले ही वो जलती लौ पर भस्म होने ही क्यों न जा रहा हो. अब उडना तो उस बेचारे का स्वभाव ठहरा और जलना उसकी नियती. फिर ईश्वर के बनाए इस विधान में हम भला क्यों टाँग अडाएं. सो, मैने भूल सुधार करनी चाही " देख लीजिए! अगर जीतने का कोई चान्स वान्स हो तो!"
हमारी ओर से तनिक सी सकारात्मकता दिखाई देते ही बनवारी लाल जी का मुखारविन्द खिल उठा. बोले" जी क्यों नहीं, जब आप जैसे मित्र साथ हैं तो फिर जीतेंगें कैसे नहीं"
मैने मन ही मन माथा ठोंक लिया. गलतफहमी की भी कोई तो एक सीमा होनी ही चाहिए,लेकिन लगता है शायद ये तो सीमाओं को भी लाँघ चुके हैं. कहते हैं कि मूर्ख सिर्फ पागलखानों में ही नहीं पाए जाते और न ही वो गले में तख्ती लटकाए घूमते हैं कि "हम पागल हैं," उनकी तो हरकतें ही सब कुछ बयां कर डालती हैं. एक बार तो जी में आया कि इन्हे साफ साफ मना कर दिया जाए कि भाई ऎसे किसी भुलावे में मत रहिएगा, लेकिन शायद मेरे मित्र धर्म नें मुझे इस प्रकार की चुभती सी प्रतिक्रिया करने से रोक दिया. "चलिए हम तो आपको वोट दे ही देंगें लेकिन सिर्फ हमारी अकेले की वोट से तो जीत हार तय नहीं होने वाली,,,ओर लोगों की भी वोट मिले तब न"
" मिलेगी क्यों नहीं, आखिर हम में कमी क्या है? सभी ब्लागरों के साथ तो अपने मधुर सम्बंध है. सबने वोट देने का वायदा भी कर दिया है" जनाब का आत्मविश्वास पूरे उत्थान पर था.
हिन्दी ब्लागिंग के प्रचलित नियम कायदों के अनुसार तो इनमें कैसी भी कोई कमी नहीं थी, बल्कि एक आध गुण फालतू ही बेशक होगा. लेकिन बिना किसी सार्थक योगदान के "सर्वश्रेष्ठ ब्लागर" होने का भ्रम पाल बैठना भी तो किसी मूर्खता से कम नहीं कहा जा सकता. अब नासमझ आदमी को तो समझा भी लो लेकिन पागल या दीवाने को भला कौन समझाए. ब्लागिंग धर्म मुझे कोई कडक उत्तर देने से रोक रहा था लेकिन बनवारी लाल थे कि टस से मस ही नहीं हो रहे थे.
"पंडित जी, आप तो जानते ही हैं कि समूचे ब्लागजगत में हमारे से स्वच्छ छवि वाला ब्लागर मिलना भी मुश्किल है. आज तक न तो हमारा किसी विवाद में कोई हाथ रहा, न ही हमने कभी किसी का नाम लेकर कोई पोस्ट लिखी...ओर तो ओर किसी ओर ने भी कभी हमारा नाम लेकर कोई पोस्ट नहीं लिखी...... आज तक कैसे भी करके हम अपनी छवि को दागदार होने से बचाए रखे हुए हैं..अब आप ही बताईये कि हमारे जैसे इतनी पाक साफ छवि वाले ब्लागर को कोई भला वोट क्यूं नहीं देगा ?"
अब इस बेचारे भले आदमी को कौन समझाए कि इसकी कोई छवि ही कहाँ हैं, जो दागदार या बेदाग होगी. लेकिन मालूम नहीं कि वो मित्रधर्म निभाने की विवशता रही या कि ब्लागिंग धर्म से च्युत होने का डर, कि हमने उनसे ओर कुछ कहना उचित ही नहीं समझा. सो, हमने उनकी योग्यता को स्वीकार करते हुए(बेशक ऊपरी मन से ही सही) अपना वोट उन्हे ही देने के वादे के साथ हाथ जोडकर उन्हे रूखसत किया.....
अब सोच रहे हैं कि कुछ दिनों के लिए नैट कनैक्शन कटवा दिया जाए या फिर कहीं घूमफिर आया जाए...तब तक ये "सर्वश्रेष्ठ ब्लागर" वाली चुनावी आपदा भी टल चुकी होगी वर्ना अभी तो चुनाव का आगाज ही हुआ है ओर ये बनवारी लाल ट्पक पडे, कल को पता नहीं कौन कौन अलाने फलाने ब्लागर मुँह उठाए वोट का दान माँगने चले आएंगें. अब जिसका समर्थन न किया वही नाम ले लेकर गरियाया करेगा.......सो, काहे को फोकट में दुश्मनी मोल लेनी.
इसलिए भाई हम तो चले हरिद्वार गंगा माई की शरण में, कुछेक पाप धो आएं...चुनाव निपटते ही आ जाएंगें. तब तक आप लोग लडो, भिडो, एक दूजे के खिलाफ नारेबाजी करो, आरोप-प्रत्यारोप लगाओ. जो भी कोई जीत जाएगा, उसी को हम भी "सर्वश्रेष्ठ ब्लागर" मान लेंगें....आखिर लोकतन्त्र भी तो यही कहता है!
39 टिप्पणियां:
very good very good
बहुत ही उत्तम लेख पढने को मिला...
बनवारी लाल जी की जय हो. मेरा वौट भी इन्हीं को.
वाकी तो हमें पता नहीं बस इतना पता है कि चुनाब झगड़े की जड़ हैं न सोचो इसके वारे में तो अच्छा
वाकी तो हमें पता नहीं बस इतना पता है कि चुनाब झगड़े की जड़ हैं न सोचो इसके वारे में तो अच्छा
वाकी तो हमें पता नहीं बस इतना पता है कि चुनाब झगड़े की जड़ हैं न सोचो इसके वारे में तो अच्छा
वाकी तो हमें पता नहीं बस इतना पता है कि चुनाब झगड़े की जड़ हैं न सोचो इसके वारे में तो अच्छा
वाकी तो हमें पता नहीं बस इतना पता है कि चुनाब झगड़े की जड़ हैं न सोचो इसके वारे में तो अच्छा
जो देगा हमको नोट
अपना तो उसी को वोट
वो झूठा है वोट न उसको देना. वोट भी दो तो नोट न उससे लेना. हम करते है सेवा वो खाता है मेवा. नाम न उसका लेना. वो झूठा है वोट न उसको देना.
चुनाव सफल नहीं होगा क्योंकि अभी कुछ देर पहले ही मेरी अनुप शुक्ला से फोन पर बात हुई है उन्होंने कहा कि वे ब्लागिंग की दुनिया को अलविदा कह रहे हैं. जब शुक्ला मैदान में नहीं होंगे तो हारेंगे कैसे। मौजा ही मौजा नहीं होगा।
bhari se bhari mato ke sath mujhe vijyi banayen
जय हो
लगे रहो-चुनाव करवा के जाना।
वाह जी, वत्स साहब, फ़ट्टे चक दित्ते।
अरे पंडित जी चले कहाँ , मुख्य चुनाव अधिकारी तो आप ही है !!!
अरे पंडित जी गंगा स्नान के लिये जा रहे हो क्या?? अजी हमने भी थोडे से( यही कोई ४,५ हजार) पाप किये है इन्हे भी धो आना आप की मेहरबानी हो गी, थोडा भार हलका तो हो फ़िर नये पापो की भी सोचेगे... आप की यात्रा शुभ हो जी..... राम राम ओर हां दक्षिणा मै मेरी वोट आप के नाम
अरे पंडित जी! कमाल है, आपके ब्लागर मित्र श्री बनवारी लाल जी तो चुनाव जीत भी गए. पूरा बूथ ही कैप्चर हो गया और आपको खबर भी नहीं हुई?
हा हा!! हमारा पत्रा भी बांच दो पंडित जी. :)
हा हा!
सत्य वचन महाराज | ना काहू से दोस्ती ना काहू से बैर |
bahut badiyaa vyang aannd aa gaya
हा हा!! हमारा पत्रा भी बांच दो पंडित जी. :)
आदरणीय पंO जी
आपने मेरा नाम बनवारी लाल क्यों रख दिया जी। और नाम के साथ मेरे ब्लाग का लिंक भी नहीं दिया। मेरी कितनी वोटों का नुक्सान कर दिया जी आपने।
आप आज ही सबको बता दीजिये वो बनवारी लाल अन्तर सोहिल है। ;-)
प्रणाम स्वीकार करें
पहले ब्लागर तो बन जाऊंउसके बाद ये पोस्ट आपको लिखनी चाहिये थी और मेरा मूल नाम देना चाहिये था जी।
हा-हा-हा
प्रणाम
Hey !
This is escapism !
You cannot run away like this.
वैसे सोच तो हम भी रहे हैं कि चुनाव लड ही लिया जाए. का मालूम बिल्ली के भागों छींका टूट ही पडे.
बेहद मजेदार रचना. बढिया व्यंग्य पंडित जी.
हमारा नेता कैसा हो,
बनवारी लाल जैसा हो...
कन्वेसिंग की पेमेंट मेरे पते पर भिजवा दीजिएगा...
जय हिंद...
सटीक व्यंग्य किया है। शायद इससे ही कुछ फर्क पडे।
कैसे लिखेगें प्रेमपत्र 72 साल के भूखे प्रहलाद जानी।
ग़ज़ल
आदमी आदमी को क्या देगा
जो भी देगा ख़ुदा देगा ।
मेरा क़ातिल ही मेरा मुंसिफ़ है
क्या मेरे हक़ में फ़ैसला देगा ।
ज़िन्दगी को क़रीब से देखो
इसका चेहरा तुम्हें रूला देगा ।
हमसे पूछो दोस्त क्या सिला देगा
दुश्मनों का भी दिल हिला देगा ।
इश्क़ का ज़हर पी लिया ‘फ़ाक़िर‘
अब मसीहा भी क्या दवा देगा ।
http://vedquran.blogspot.com/2010/05/hell-n-heaven-in-holy-scriptures.html
हा हा हा...
हा-हा-हा-हा-हा-हा
बहुत मजेदार / यहाँ बनवारी लालों की कोई कमी नहीं / एक खोजो हजार मिलेंगे
और हाँ पंडित जी
पहला कोई समझदार ब्लॉगर दिखा है जिसने जलजला की प्रतिक्रिया हटाई है / यहाँ आदर्शवादी तो सभी हैं / लेकिन कोई भी सुधार की कोशिश अपने से शुरू नहीं करना चाहता / नकारात्मक चीजों की अनदेखी की जाए यही आज की मांग है / लेकिन यहाँ तो लोग नकारात्मक चीजों को ही गले लगाते हैं / एक महिला ब्लॉगर ने उस पर पोस्ट भी बना दी / हालांकि उनके पास कोई काम भी नहीं है / यहाँ की हर चीज में कूदना ही उनका प्रमुख व्यवसाय है / आजकल म्यूजिकल ब्लॉग न्यूज भी चालु आहे / अच्छा हुआ की आडियो ही है वरना आप लोगों को ब्लॉग न्यूज डांस के साथ दिखाया जाता / बहरहाल मुख्या मुद्दा ये है की ब्लॉग जगत नकारात्मक बातों की तरफ आकर्षित क्यूँ होता है / क्यूँ नहीं उसको अनदेखी करता / अभी कुछ दिन पहले जिस तरह दो अति वरिष्ठ ब्लॉगर को लेकर खेमेबंदी हुयी / निरर्थक लेखन की भरमार लग गयी / क्या यही बौद्धिकता है / यही ब्लागिंग है ?/ एक और भी महाशय हैं- ब्लॉग जगत के बापू आशाराम / उनके ब्लॉग पर रोजाना प्रवचन देख सकते हैं / उनका सारा जोर बस खेमेबंदी पर है / आज बहुत जरूरत है की दलदलबाजी और नकारात्मक बातों से दूर रहा जाए / उसको अनदेखा किया जाये ----जय हिंद !!*
बनवारी लाल की जय ...
मजेदार पंडित जी .... par aap palaayan kyon kar rhe hain .. ap bhi aage badhe ... sab aapka saath denge ...
मूर्ख सिर्फ पागलखानों में ही नहीं पाए जाते और न ही वो गले में तख्ती लटकाए घूमते हैं कि "हम पागल हैं,"
हा हा हा !!
बहुत ही सही और बेहद मजेदार :-)
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