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सोमवार, 31 मई 2010

आँख के सामने क्यूँ अन्धेरा है

क्यों जम्हाई आ रही है बेतरह
इस तरह से आँख क्यों है झप रही
देख लो चहुँ ओर क्या है हो रहा
बात सुन लो, आँख खोलो तो सही..........

सच की समझ तुम जो नहीं रखते
तो क्यों न रूचें तुम्हें घुनी बातें
सच को सच कहें कैसे
जब सुनी हैं बनी चुनी बातें.......

आँख खोलिए तनिक जतन करिये
जागिए हो रहा सवेरा है
बन गये हो किसलिए अन्धे
आँख के सामने क्यूँ अन्धेरा है........

17 टिप्‍पणियां:

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

बहुत घनघोर अंधेरा है
चहुं ओर तम छाया है
उधर सूरज चमकता है
इधर बादलों साया है

बहुत बढिया जीयो महाराज
अंधों का इलाज होना चाहिए।

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

आपकी यह रचना बहुत कुछ कह रही है...बहुत बढिया रचना है।बधाई।

सच की समझ तुम जो नहीं रखते
तो क्यों न रूचें तुम्हें घुनी बातें
सच को सच कहें कैसे
जब सुनी हैं बनी चुनी बातें....

बेनामी ने कहा…

अरे वाह पंडीत जी हमे तो आज पता चला कि आप तो कविता भी करते हैं.
सच की समझ तुम जो नहीं रखते
तो क्यों न रूचें तुम्हें घुनी बातें
सच को सच कहें कैसे
जब सुनी हैं बनी चुनी बातें....

आपने इन पंक्तियों मे तो सच्चाई उढेल के रख दी..बहुत कुछ सोचने को विवश करती हुई.
प्रणाम.

Udan Tashtari ने कहा…

बढ़िया रचना!

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

आँख खोलिए तनिक जतन करिये
जागिए हो रहा सवेरा है
बन गये हो किसलिए अन्धे
आँख के सामने क्यूँ अन्धेरा है........

जागृत करती रचना वत्स साहब !

दिगम्बर नासवा ने कहा…

आँख खोलिए तनिक जतन करिये
जागिए हो रहा सवेरा है
बन गये हो किसलिए अन्धे
आँख के सामने क्यूँ अन्धेरा है..

आँखे होते हुवे जो अँधा होगा उसे कौन दिखा सकता है ... आज तो रचना से महक रहा है ब्लॉग .. अति सुंदर ...

Amit Sharma ने कहा…

"आँख खोलिए तनिक जतन करिये
जागिए हो रहा सवेरा है"

यहीं पर आकार तो बात अटकती है,हम सपने को ही सच समझ रहे है. और आँख खोलकर सच को मानने से कतरा रहे है
बहुत बेहतरीन !

Cancerian ने कहा…

कविवर, हमारा भी धन्यवाद स्वीकारें|

naresh singh ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना है | यह पहली बार पता लगा है कि आप कविताएं भी लिखते है |

tension point ने कहा…

आँख खोलने को मजबूर करती एक कविता बहुत अच्छी रचना|

kunwarji's ने कहा…

"बन गये हो किसलिए अन्धे"
बचने की कोई गुंजाईश छोड़ी ही नहीं पण्डित जी......
अब तो आँखे खोल ही लेनी चाहिए....

कुंवर जी,

राज भाटिय़ा ने कहा…

बहुत सुंदर कविता. धन्यवाद

सूर्यकान्त गुप्ता ने कहा…

तम तमस और तामस………अन्धेरा ……अन्धेर आ॥यही सब दूर करने का प्रयास करेंगे तो लगेगा खुल रही है आँखें। बहुत सुन्दर!

Ra ने कहा…

अच्छी रचना !!!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

सुन्दर रचना के लिए बधाई!

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

कहीं कुछ छुपा हुआ है जो बाहर निकलने के लिये है..

कडुवासच ने कहा…

...प्रसंशनीय रचना !!!

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