क्यों जम्हाई आ रही है बेतरह
इस तरह से आँख क्यों है झप रही
देख लो चहुँ ओर क्या है हो रहा
बात सुन लो, आँख खोलो तो सही..........
सच की समझ तुम जो नहीं रखते
तो क्यों न रूचें तुम्हें घुनी बातें
सच को सच कहें कैसे
जब सुनी हैं बनी चुनी बातें.......
आँख खोलिए तनिक जतन करिये
जागिए हो रहा सवेरा है
बन गये हो किसलिए अन्धे
आँख के सामने क्यूँ अन्धेरा है........
17 टिप्पणियां:
बहुत घनघोर अंधेरा है
चहुं ओर तम छाया है
उधर सूरज चमकता है
इधर बादलों साया है
बहुत बढिया जीयो महाराज
अंधों का इलाज होना चाहिए।
आपकी यह रचना बहुत कुछ कह रही है...बहुत बढिया रचना है।बधाई।
सच की समझ तुम जो नहीं रखते
तो क्यों न रूचें तुम्हें घुनी बातें
सच को सच कहें कैसे
जब सुनी हैं बनी चुनी बातें....
अरे वाह पंडीत जी हमे तो आज पता चला कि आप तो कविता भी करते हैं.
सच की समझ तुम जो नहीं रखते
तो क्यों न रूचें तुम्हें घुनी बातें
सच को सच कहें कैसे
जब सुनी हैं बनी चुनी बातें....
आपने इन पंक्तियों मे तो सच्चाई उढेल के रख दी..बहुत कुछ सोचने को विवश करती हुई.
प्रणाम.
बढ़िया रचना!
आँख खोलिए तनिक जतन करिये
जागिए हो रहा सवेरा है
बन गये हो किसलिए अन्धे
आँख के सामने क्यूँ अन्धेरा है........
जागृत करती रचना वत्स साहब !
आँख खोलिए तनिक जतन करिये
जागिए हो रहा सवेरा है
बन गये हो किसलिए अन्धे
आँख के सामने क्यूँ अन्धेरा है..
आँखे होते हुवे जो अँधा होगा उसे कौन दिखा सकता है ... आज तो रचना से महक रहा है ब्लॉग .. अति सुंदर ...
"आँख खोलिए तनिक जतन करिये
जागिए हो रहा सवेरा है"
यहीं पर आकार तो बात अटकती है,हम सपने को ही सच समझ रहे है. और आँख खोलकर सच को मानने से कतरा रहे है
बहुत बेहतरीन !
कविवर, हमारा भी धन्यवाद स्वीकारें|
बहुत सुन्दर रचना है | यह पहली बार पता लगा है कि आप कविताएं भी लिखते है |
आँख खोलने को मजबूर करती एक कविता बहुत अच्छी रचना|
"बन गये हो किसलिए अन्धे"
बचने की कोई गुंजाईश छोड़ी ही नहीं पण्डित जी......
अब तो आँखे खोल ही लेनी चाहिए....
कुंवर जी,
बहुत सुंदर कविता. धन्यवाद
तम तमस और तामस………अन्धेरा ……अन्धेर आ॥यही सब दूर करने का प्रयास करेंगे तो लगेगा खुल रही है आँखें। बहुत सुन्दर!
अच्छी रचना !!!
सुन्दर रचना के लिए बधाई!
कहीं कुछ छुपा हुआ है जो बाहर निकलने के लिये है..
...प्रसंशनीय रचना !!!
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