वह उदास और परेशान सा मेरे पास आया. उसके चेहरे पर घबराहट के चिन्ह स्पष्ट दिखलाई पड रहे थे. मैने पूछा "क्या हुआ! ये इतने घबराए हुए से क्यूं हो ?"
बोला" देख नहीं रहे, चारों तरह क्या हो रहा है. हत्याएं, लूट-खसोट, भुठमेड और गुण्डागर्दी का नंगा नाच हो रहा है.अपने मोहल्ले मे तो आज सुबह पुलिस फाईरिंग भी हुई थी और अब पुलिस सारे मोहल्ले की तलाशी लेती घूम रही है. अब क्या करें?"
"मगर तुमको किस बात की फिक्र हो रही है भाई ?"
"बताईये हमको फिक्र नहीं होगी तो फिर किसे होगी?" उसके लज्फों से घबराहट अब भी झलक रही थी.
"क्यूँ ? तुम क्या कोई चोर डाकू हो?"
"नहीं"
"तो किसी का खून-वून किया या किसी दंगे वगैरह में हाथ होगा"
"अरे राम-राम्! कैसी बातें कर रहे हैं आप"
"तो फिर क्या कोई बहुत बडे सेठ साहूकार हो कि जिसने घर में ब्लैक मनी छिपा रखी है?"
"नहीं भाई नहीं. आप तो जानते ही हैं कि मैं तो एक साधारण सा दुकानदार हूँ बस"
"अरे भाई जब तुमने कुछ किया ही नहीं तो फिर पुलिस की सर्च से तुम्हे किस बात का डर. तुम कोई गुंडे बदमाश हो तो बताओ"
"अजी ऎसा कुछ होता तो फिर डर ही किस बात का था ?" वह कांपता सा बोल उठा " बस इज्जतदार आदमी हूँ इसीलिए.........."
इतना कहकर वो तो चुपचाप चला गया. मगर लग रहा है कि, मानो वो जाते जाते अपने डर में मुझे भागीदार बना गया.....
15 टिप्पणियां:
कोई भी शरीफ आदमी पुलिस से दूर रहना ही पसंद करेगा..
बहुत सुंदर. कई बातें हैं जो नहीं कह कर भी कह दी जाती हैं.
क्या वत्स साहब, आपने कहना था कि आम आदमी और वह भी इज्जतदार ? आम आदमी की इज्जत होती तो इस तरह से डरा-डरा क्यों फिरता ?
बढ़िया प्रस्तुति
एक बेहद उम्दा और सच्ची प्रस्तुति ...........
शायद हमें भी भागीदार बना लिया जी आपने उस की घबराहट में....
कुंवर जी,
"वह कांपता सा बोल उठा "बस इज्जतदार आदमी हूँ इसीलिए.........."
इतना कहकर वो तो चुपचाप चला गया मगर लग रहा है कि मानो वो अपने डर में मुझे भागीदार बना गया....."
वक्त की चाल को देखते हुए उसका और आपका डरना जायज है - सच्चा और अच्छा सन्देश और प्रस्तुति भी कारगर.
सही है .... इज्ज़तदार आदमी हूँ .. इसलिए !
इज्जत का ख्याल तो रखना ही पड़ता है!
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कल की चर्चा भी तो आपको ही पोस्ट करनी है!
माहौल ही ऐसा है हर तरफ कि शरीफ आदमी को डर कर रहना पड़ता है ...
सुन्दर एवं सामयिक रचना
बहुत ही बढिया लगी आपकी ये लघुकथा.इसके माध्यम से बिल्कुल सटीक बात कही आपने. सच में आज के इस माहौल नें एक आम आदमी के मन में डर पैदा कर डाला है.
सच है आज इज्जतदार व्यक्ति में ही डर बचा है। बढिया अभिव्यक्ति।
इज्जतदार व्यक्ति मे ही इज्जत खोने का डर बना रहता है और वह होता है आम आदमी। बाकी "खास" आदमी की इज्जत "नकटा के नाक कटे सवा हाथ बढे" की तरह बरकरार रहती है। इस "खास" मे विद्वान चिन्तक परोपकारी साधू महात्मा और जो अपने आपको इस खास के लायक समझते हैं, शामिल नही है।
इज्जतदार आदमी ही बेचारा है | आज के हालात ने केवल इज्जतदार आदमी का ही बेड़ा गर्क किया है |
सच कहा .. पुलिस के नाम से हर इज़्ज़तदार इंसान घबराता है ... दरअसल हमारे समाज में पुलिस की छवि और उनक कार्य करने क तरीका इतना खराब है .. की वो हर किसी को गुनाह गार बना देते हैं ... और समाज में भ्रम की स्थिति पैदा कर देते हैं ... आम इंसान इसलिए उनसे डरता रहता है ....
बेचारा आम आदमी।
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ब्लॉगवाणी माहौल खराब कर रहा है?
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