हमारे ज्ञान की परिधि कितनी सीमित है--- कि, कईं बार तो हम बिल्कुल सामान्य सी छोटी मोटी बातें भी नहीं जानते। जैसे कि पक्षियों में गरूड नहीं बल्कि बाज की गति सबसे तेज होती है। हिरण की आँखे बडी मानी जाती है लेकिन वास्तव में घोडे की आँखे उससे अधिक बडी होती हैं। तेज धूप में संसार के हरेक प्राणी को पसीना आता है लेकिन कुत्ता ऎसा जानवर है जिसे चाहे सारा दिन धूप में खडा करके रखा जाए लेकिन फिर भी उसे पसीना नहीं आएगा। स्तनपायी प्राणियों के शरीर पर बाल होते हैं लेकिन गेन्डा इसका अपवाद है जो स्तनपायी होने पर भी बिना बालों का जीव है। वृ्क्षों में बरगद के पेड को दीर्धजीवी माना जाता है लेकिन सबसे अधिक दिन जैतून का पेड जीवित रहता है।
मेंडक के पैदा होते समय दुम होती है, पैर नहीं लेकिन मरते समय उसके पैर रहते हैं दुम नहीं। हँस के बारे में किम्बदन्ति है कि वो मिले हुए दूध-पानी में से दूध पी लेता है और पानी छोड देता है, साथ ही यह भी कहा जाता है कि वो मोती खाता है लेकिन यह दोनों ही किम्बदन्तियाँ बिल्कुल मिथ्या हैं। हँस भी अन्य पक्षियों की तरह ही कीडे मकोडे तथा बीज इत्यादि का भक्षण करता है।
स्वाती नक्षत्र में वर्षा होने से सीप में मोती, केले से कपूर और बाँस में वंशलोचन पैदा होता है, यह मान्यता सर्वथा कपोल कल्पित है जिसमें सच्चाई का नाममात्र भी अंश नहीं। दस बीस भाषाओं और दर्जन दो दर्जन मजहबों के अतिरिक्त किसे पता है कि संसार में 3064 भाषाएं बोली जाती हैं और 900 से अधिक मत-मतान्तर हैं।
हमारा सामान्य ज्ञान कितना स्वल्प है!---- इस बात का पता इससे चलता है कि अपनी मान्यता प्राप्त जानकारियों में कितनी उपहासास्पद मान्यताएं भरी पडी हैं और हम लोग कितनी मिथ्या धारणाएं संजोएं बैठे हैं।
26 टिप्पणियां:
पं.डी.के.शर्मा"वत्स जी बहुत्ब अच्छी जानकारी दी लेकिन एक खास जानवर के बारे लिखना भुल गये, नेता वो जानवर है जिसे शर्म बिलकुल नही आती, क्योकि जिस से वोट मांगता है,जीतने पर सब से पहले उसी को चोट पहुचाता है
रोचक जानकारी ..!
@ राज भाटिया जी, जिन जीवों की बात आप कर रहे हैं. उन पर तो पूरा का पूरा महाग्रन्थ लिखा जा सकता है. एक छोटी सी पोस्ट में उन पर भला क्या क्या लिखा जाए :)
वाह पंडितजी , आज तो ज्ञान चक्षु खोल दिए है | सचमुच अल्प ज्ञान था | वैसे एक बात और भी है हिन्दू धर्म में ३६ करोड देवी देवताओं का जिक्र होता है वह भी शायद अल्प ज्ञान ही लगता है |
@नरेश राठौड जी,
हिन्दु धर्म में 33 करोड देवी-देवताओ की जो धारणा है, वो भी निरा भ्रम ही है...दरअसल मानव शरीर में कुल तैतीस करोङ आवृतियाँ बनती हैं. यानी मनुष्य में कुल तैतीस करोङ
विभिन्न क्रियायें या फ़ंकशन होते हैं. जिनका प्रत्येक का एक एक छोटा या बङा देवता नियुक्त होता हैं. ये नहीं कि सचमुच में 33 करोड देवी-देवता होते हैं....
ये सन्डे ज्ञान अच्छा लगा.
वत्स साहब,
बहुत अच्छी जानकारियां दी आपने। यह सच है कि हम लोग सुनी सुनाई बातों को ही मानना पसंद करते हैं, थोड़ा सा भी शोध करें तो बहुत से प्रचलित तथ्य गलत सिद्ध हो जायें, लेकिन किसे फ़ुर्सत है?
सेक्स, क्राईम, सीरियल्स, रियलटी शो ये देखना ज्यादा पसंद है लोगों को आजकल।
बहुत अच्छा लगा ये लेख, बधाई स्वीकार करें।
संडे धन्यवाद जी. अच्छा खरा लिखा है आपने.
बहुत सुन्दर पोस्ट लगाई है!
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मित्रता दिवस पर बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!
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"दरअसल मानव शरीर में कुल तैतीस करोङ आवृतियाँ बनती हैं. यानी मनुष्य में कुल तैतीस करोङ विभिन्न क्रियायें या फ़ंकशन होते हैं. जिनका प्रत्येक का एक एक छोटा या बङा देवता नियुक्त होता हैं."
आदरणीय पंडित 'वत्स' जी,
३३ करोड़ फंक्शन ?... बहुत ज्यादा हैं... थोड़ा कम करिये न कृपया... वैसे भी गिने किसने हैं ?... कहाँ है इन ३३ करोड़ फंक्शनों का ज्ञान?
"हमारा सामान्य ज्ञान कितना स्वल्प है!---- इस बात का पता इससे चलता है कि अपनी मान्यता प्राप्त जानकारियों में कितनी उपहासास्पद मान्यताएं भरी पडी हैं और हम लोग कितनी मिथ्या धारणाएं संजोएं बैठे हैं।"
बिल्कुल सही बात ! और सबसे ज्यादा मजा तो तब आता है जब इन उपहासास्पद मान्यताओं को हम हमें धरोहर में मिला प्राचीन ऋषि-मुनियों का ज्ञान बताकर डिफेंड भी करते हैं और फैलाते भी हैं।
आभार!
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रोचक जानकारी ..!
jhamaajham.
बड़ी रोचक जानकारी दे डाली पंडित जी इस पोस्ट में.
रोचक जानकारी!!
एक बेहद उम्दा पोस्ट के लिए आपको बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनाएं!
आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है यहां भी आएं !
वाह वाह ! पंडित जी अननद आ गया आज आपके सान्निन्ध्य में ! सत्संग के लिए धन्यवाद !
सचमुच! हमारा सामान्य ज्ञान कितना स्वल्प है!
@प्रवीण शाह जी,
बन्धु इन्सान को जीवन में कभी तो निष्पक्ष्ता रख ही लेनी चाहिए..इतना दुराग्रह भी ठीक नहीं होता :)
जिस रास्ते पर अभी विज्ञान नें कदम ही नहीं रखा...उसके सही गलत का निर्णय तो बाद की बात है.. उसके होने न होने को भी अगर हम यूँ ही एक झटके से नकार दें तो भला इसे क्या कहा जाए...दुराग्रह ही न ? बस मैं न मानूँ!
खैर आप चाहे बेशक न मानें लेकिन भई हम तो मानते नहीं बल्कि जानते हैं कि वास्तव में तैतीस करोङ मानवी शरीर की आवृतियाँ हैं, जिन सबका छोटा बङा एक देवता नियुक्त हैं. आपको जो उल्टी आती है,इसका भी देवता है.आपको डकार आती है,आपको जम्हाई आती है, पलकें झपकती हैं. आपके अन्दर "काम" जागृ्त होता है,आपके अन्दर संगीत प्रेम जागता है.कब्ज हो जाती है,बुखार आ जाता है,कोई फोडा-फ़ुंसी हो जाती हैं,आप दया करते हैं,क्रोध करते हैं, भय होता है, चिन्ता, अपमान इत्यादि इत्यादि इत्यादि--इन सबका एक एक देवता नियुक्त है.ऐसी कुल मिलाकर प्रत्येक इंसान के अन्दर तैतीस करोङ आवृतियाँ बनती हैं. जिन्हें सरल भाषा में क्रिया भी कह सकते है.आप जो हाथ फ़ैलाते और सिकोङते हैं. इतनी ही बात के दो देवता है. इस तरह प्रत्येक इंसान तैतीस करोङ देवताओं को आश्रय दे रहा है.
क्रमश:....
@प्रवीण शाह जी,
धर्म शास्त्रों में तैतीस करोङ देवताओं की पूजा या भोग की बात भी कही गई है.--उसे भी समझने की जरूरत है. आपने धर्म शास्त्रों में यज्ञ और आहुति का जिक्र पढा/सुना होगा. यज्ञ पंचाग्नि जलाकर किया जाता है. और आहुति भोग सामग्री की दी जाती है. यज्ञ का अर्थ है--इसको जानना. यानी ये शरीर जो प्राप्त है. इसका असली रहस्य क्या है ? पंचाग्नि यानी जठराग्नि. मंदाग्नि आदि पाँच प्रकार की अग्नि हमारे पेट में स्वतः प्रज्वलित है. आहुति, जो भोजन हम करते हैं, वह यज्ञ की आहुति के रूप में हमारे शरीर पर आश्रित तैतीस करोङ देवताओं का पोषण करता हैं. यानी हमारे इस भोग से उनको तृ्प्ति प्राप्त होती है. तो कभी किसी बात पर उपाय के रूप में या हमारे अध्यात्म ज्ञान के रूप में या शरीर,आत्मा,मन, विषयक प्रश्नों की वजह से ऋषि मुनियों ने यह सत्य उजागर कि तैतीस करोङ देवताओं को भोग देने से ही हमारे सभी कार्य सुचारु रूप से होंगे.और यह एकदम सत्य बात है. अब मान लीजिए किसी को फ़ोङा हो गया तो पहले आजकल की तरह डाक्टर तो थे नहीं.आयुर्वेद ही था.जो निसंदेह वैदिक ज्ञान परम्परा पर आधारित है,तो पहले के वैध अपने शब्दों में इस तरह कह देते थे कि फ़लाना देवता बिगङ गया.इसे इस विधि या उपचार के द्वारा पुष्ट कर दो. और ये बात सही है कि आपकी किसी असाबधानी से ही कोई रोग-व्याधी जन्म लेती है,तो उसका उपचार कर दो,उसको पोषण दे दो,बात खत्म. इस तरह तैतीस करोङ देवताओं की बात प्रचलन में आ गयी.पर हो उल्टा रहा है. जब कि हकीकत में यह तैतीस करोङ देवता हमारे आश्रित है.लेकिन इन्सान समझने लगा कि हम ही इन देवताओं के आश्रित हैं.
छोटी सी पोस्ट में बेहद रोचक और बहुत सारी जानकारी दी जी आपने, धन्यवाद
प्रणाम
आँख मूंदकर इन कपोल कल्पित बातों को यकीन करने के कारण ही हम अंधविश्वासी कहलाए. कुछ बातों का प्रयोग तो कवियों ने अपनी कविताओं में भी किया है और बहुत से समझदार पढ़ाकू भाइयों ने जमकर तारीफ भी की है.
क्षीर-नीर का भेद मिटाने वाला हंस...! हाय! अब क्या कहा जाय!
33 करोण देवता का ज्ञान..वाह!
बहुत लाजवाब.
रामराम
मत्था घुम गया। जाने कौन से देवता आकर बैठ गए हैं। ज्ञान तो पंडित जी वैसे ही हम से कुछ दूर दूर ही रहता है। धन का पता है, पर आता नहीं। आपने तो आंखे खोल दी हैं। 33 करोड़ देवताओं को खुश करने के चक्कर में घनचक्कर बना रखा था जाने किस देवता ने। बेहतर है कि एकांत में शीशे के सामने जमकर जम्हाई लें और अपनी मोहनी सुरत पर इतराएं, अगर नींद न आ जाए तो।
वैसे पंडित जी घोड़े की आंखों में कभी झांका नहीं, हिरणी की आंखो से मरे नहीं......
तो इस बारे में क्या कहें......
रह गई दुम तो शायद पहले की कट गई..
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