आजकल ब्लागजगत में जिस रस की पोस्टें सबसे अधिक लिखी जा रही हैं, वह है हास्य-रस . अब यह बात दूसरी है कि लिखने वाला स्वयं उसे करूण या वीर रस समझता हो. लेकिन जब उनकी शैली हास्यास्पद लगे तो तब इन्हे हास्य रस के अन्तर्गत रखना ही ठीक समझा जाएगा.
हमारे एक ब्लागर बन्धु, जो रोजाना नियम से एक पोस्ट की सृ्ष्टि रचना करते हैं, उनकी लिखने की शैली इतनी जबरदस्त होती है कि क्या कहें! पाठक गम्भीर पोस्ट समझकर पढने आता है और महज चार पंक्तियाँ पढकर ही हँसता हुआ खिसक लेता है. यूँ भी एक आम पाठक भला इतना समझदार भी कहाँ होता है. वो तो लेखक के दो चार बुद्धिमान टाईप के यार मित्र हैं, जो पोस्ट को पूरा पढने का दम रखते हैं वर्ना आम पाठक में कहाँ दम कि वो इनकी पोस्ट को पूरा झेल सके. देखने में आता है कि ऎसे कुछ ब्लागरों को हमेशा शब्दों और भावों का अपच हुआ रहता है और तब वे मदारी के गोलों की भान्ती एक के बाद एक रन थ्रू निकलते चलते हैं. तब ऎसे में क्रम भंग हो जाए, मतलब कि कभी शब्द पहले निकल आए और भाव बाद में, और कभी भाव आगे निकल गए और शब्द कहीं मन में ही अटक गए तो कोई आश्चर्य की बात थोडे ही है.
ईमान धर्म की बात तो ये है कि ब्लाग लेखन स्वांत सुखाय होना चाहिए और ऎसा लिखा जाए कि पढने वाले की समझ में आए------ये सिद्धान्त बहुत पुराना हो चुका है. नया सिद्धान्त तो है कि बात ऎसी कहो जिसे कोई भले न समझे, उसका किसी को कोई लाभ हो या न हो, लेकिन टिप्पणी मिलनी चाहिए और दूसरी बात ये कि भाई बन्धुओं के प्रताप से पुरूस्कार उरस्कार मिलने के चाँस भी बने रहे. इससे उन्हे खुद को तो खुशी मिलेगी ही, साथ में हम जैसे तमाशबीन भी तनिक हास्य रस का आनन्द ले सकेंगें. इसलिए हमने निवेदन किया था कि आजकल ब्लागजगत में हास्य रस की धूम है. आगे चलकर जब कोई ब्लागिंग का इतिहास लिखेगा तो उसे हास्यास्पद रचनाओं की कमी न रहेगी और उसे यह मानना पडेगा कि ब्लागिंग के इस वर्तमान काल में इन हास्यास्पद रचनाओं को सराहने वाले भी जितने गुणग्राहक मिले, उतने पहले कभी न थे. आपने अभी तक ऎसी रचना न चेपी हो तो अब चेप लीजिए, टिप्पणी और पुरूस्कार देने वालों की यहाँ कोई कमी थोडे ही है....:)
चलते चलते आपकी नजर एक एक शेर अर्ज है:---
कहाँ हैं गुण के ग्राहक, जो गुण को देखते हैं
बस,जो हमको टीपते हैं, हम उनको टीपते हैं!!
29 टिप्पणियां:
अब आप कहोगे वत्स सहाब कि ये भी हास्य रस पर उतर आया है , मगर क्या करें गम्भीर रस बहुत महंगे हो गये, जिसे कोइ खरीद्ना ही नही चाह्ता !
हास्य रस!?...अब क्या करे कोई....असली जीवन मे सभी रो रहे हैं....ब्लोगजगत मे तो हँस लेने दें:))
शेर सही लिखा है....लेकिन सभी पर लागू नही होता...५० जगह टीपने के बाद भी ५ वापिस आती हैं:))
हम तो कब से समझा रहे हैं, पर कोई समझे तब ना. :)
रामराम.
"यूँ भी एक आम पाठक भला इतना समझदार भी कहाँ होता है. वो तो लेखक के दो चार बुद्धिमान टाईप के यार मित्र हैं, जो पोस्ट को पूरा पढने का दम रखते हैं वर्ना आम पाठक में कहाँ दम कि वो इनकी पोस्ट को पूरा झेल सके......"
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ब्लॉगर चरित्रं देवो न जानति
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आपका व्यंग लेखन हमेशा ही बढ़िया होता है
बहुत आनंद आया पढ़कर
आभार
वत्स साहब,
एक पुरानी चीज सुनो।
एक लड़का अपने दोस्तों से कह रहा था, "यार, लोग पता नहीं महीने भर बिना नहाये कैसे रह लेते हैं, मुझे तो यार छब्बीसवें या सत्ताईसवें दिन ही खुजली होने लगती है।"
सही व्यंग्य किया है जी आपने। लोग पता नहीं कैसे रोज व्यंग्य लिख लेते हैं हम तो दो तीन दिन से पहले कुछ भी टाईप ही नहीं कर पाते।
वैसे आपका इशारा अपने पड़ौस पर ही तो नहीं है, महाराज? हा हा हा। हो सकता है पड़ौस का लिहाज करके दिन कुछ घटा बढ़ा दिये हों।
हमें तो आपकी पोस्ट पढ़कर बड़ी गंभीरता का अहसास हो रहा है:)
जनाब शर्मा साहेब! अमूमन तो कुछ ऎसा ही है, जैसा कि आपने फरमाया! बहरहाल आपकी लेखनी दमदार है, जो पाठक को पूरा पढे बिना नहीं छोडने देती
जनाब शर्मा साहेब! अमूमन तो कुछ ऎसा ही है, जैसा कि आपने फरमाया! बहरहाल आपकी लेखनी दमदार है, जो पाठक को पूरा पढे बिना नहीं छोडने देती
जनाब शर्मा साहेब! अमूमन तो कुछ ऎसा ही है, जैसा कि आपने फरमाया! बहरहाल आपकी लेखनी दमदार है, जो पाठक को पूरा पढे बिना नहीं छोडने देती
अरे पंडितजी ,आप भी शायर बन गए | शेर बहुत बढ़िया कहा है |
बस,जो हमको टीपते हैं, हम उनको टीपते हैं!!
बस ब्लागिंग के सार को धर दिया आपने पंडित जी
यह शेर तो है ही बाघ cheeta तेंदुआ सब है ,लम्बे समय तक यह दहाड़ याद रहेगी
@ मो सम कोन
भाई संजय जी, हम तो ये मानकर चलते है कि इन्सान बेशक दुनिया भर से बिगाड ले लेकिन अपने पडोसियों से सम्बन्ध हमेशा अच्छे ही रखने चाहिए....मौके-बेमौके वही तो ढाल बनते हैं :)
इसलिए ऎसा वैसा कोई डाऊट न रखा जाए :))
वाह जी वाह क्या मज़े की पोस्ट लिखी पंडीत जी/ आनंद आ गया/ कमाल है जिस पोस्ट के इतने गहरे भावार्थ हैं उसे "बस यूँ ही" कहना पड़ रहा है हा हा हा….
वो तो लेखक के दो चार बुद्धिमान टाईप के यार मित्र हैं, जो पोस्ट को पूरा पढने का दम रखते हैं वर्ना आम पाठक में कहाँ दम कि वो इनकी पोस्ट को पूरा झेल सके.
वाह पंडित जी महाराज आज तो बहुत गजब की बात कह दिये आप. ये मित्र लोग कौन हैं? सब जानते हैं इन्होने अपना एक घर घुस्सु गुट बना रखा है जो मैं तेरी खूंजाऊं तू मेरी खुजा वाला काम करते हैं.
@ दिनेश भाई ,
पहले तो मैं डर गया कि पंडित जी नें आज मुझे तो नहीं निपटा दिया फिर तसल्ली हुई कि वो तो रोज़ लिखनें वाले भाई बन्दों पे गाज़ गिरी है :)
@अली भाई,
बताईये आप पर लिखने के लिए क्या हमें व्यंग्य का सहारा लेना पडेगा. वो तो हम सीधे सीधे आपका नाम लेकर भी लिख सकते हैं. आखिर् आप पर इतना तो हक बनता ही है :))
पंडित जी बहुत काम की बात कह गये आप इस रस मै भी
@परमजीत बाली जी,
"शेर सही लिखा है....लेकिन सभी पर लागू नही होता...५० जगह टीपने के बाद भी ५ वापिस आती हैं:))"
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मानव जीवन की सार्थकता भी इसी बात में है कि वह समाज से कम से कम ले और अधिक से अधिक देने का प्रयास करे. सो आप तो मानवता के सच्चे धर्म का निर्वहण करने में जुटे हैं :)
संसार से कर सरल सौदा
दे अधिक पर ले अधिक मत!!
:)
@ दिनेश भाई ,
सही है :)
हम ब्लाग पर कई घण्टे बिगाडकर भी यदि दिन की पांच अच्छी पोस्ट नहीं पढ पाते तो बडा खराब लगता है और आजकल ऐसा ही हो रहा है। बस सब तरफ संख्या की बात की जा रही है गुणवत्ता की नहीं।
बहुत ही अच्छा लिखा है आपने…
कहाँ हैं गुण के ग्राहक, जो गुण को देखते हैं
बस,जो हमको टीपते हैं, हम उनको टीपते हैं!!
- :) बस्स!
सोच रहा हूँ कि एक-आध कविता मैं भी रच डालूं।
फिर लगा रहूं पूरा दिन दे दनादन टिप्पणी करने में।
कुछ तो बदले में मिलेंगीं ही।
बहुत बढिया व्यंग्य पोस्ट
प्रणाम
कहाँ हैं गुण के ग्राहक, जो गुण को देखते हैं
बस,जो हमको टीपते हैं, हम उनको टीपते हैं ..
वाह वाह .. शेर तो कमाल का है पंडित जी ...
और आप जो कहना चाहते हैं वो भी समझ आ गया .... सच कह रहे हैं आप ... हास्य या गंभीर ... जो भी हो अपने रंग में भरपूर होना चाहिए ...
जानकर अच्छा लगा कि हास्य-व्यंग्य की आज इतनी पूछ है. हास्य जीवन के लिए ज़रूरी है तो व्यंग्य कुंठित होने से बचाता है, यह एक खिड़की है....
ओह!...इस सब से तो अपनी रोजी-रोटी पर आ बनेगी...
बढ़िया शेर...
पंडित जी,
जन्म दिवस की ढेर सारी शुभकामनाएं।
हर वर्ष उतरोत्तर सुखप्रद व समृद्धि लाने वाला हो।
भाई संजय जी, हम तो ये मानकर चलते है कि इन्सान बेशक दुनिया भर से बिगाड ले लेकिन अपने पडोसियों से सम्बन्ध हमेशा अच्छे ही रखने चाहिए....मौके-बेमौके वही तो ढाल बनते हैं :)
बजा फ़रमाया आपने ....!!
Sahee kah rahe hain. mai bhee to aagaee tipiyane.
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