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बुधवार, 15 सितंबर 2010

हे सूर्य! तुम जरा कुछ देर से आया करो........

सूर्य लालिमा लिए उदित होता है और बराबर बढता जाता है और इन्सान ? दिन भर अपने स्वार्थ साधन एवं दूसरों को मूंडनें की कोशिश में लगा रहता हैं. सूर्य दरअसल हम लोगों के सदगुणों को परखने आता है, सुबह से शाम तक परखता है और जब थक जाता है तो थोडी देर के लिए विश्राम करने चला जाता है. दूसरे दिन फिर सोचता है कि चलो बच्चों का अन्धेरा दूर करूँ, उनमें जागृ्ति लाऊँ, उजाले से उनका ह्रदय प्रकाशित कर दूँ. ओर यही कामना लेकर वह तरोताजा बना आता है.
हम लोगों नें उसकी यह चीज तो परख ली है. उसकी हर दिन की आशा को आशा न कह उषा, सवेरा, प्रभात, सुबह, प्रात:काल, दिन, उजाला, लालिमा वगैरह न जाने कैसे कैसे नाम जरूर इस्तेमाल करने लगे हैं. लेकिन मन के अन्धेरों को हम दूर नहीं करना चाहते. बस तिमिर को अन्दर सहेजे बैठे हैं. आज अगर हमारे वे पूर्वज होते जो इसका कारण जानने के लिए बराबर साधनाओं, तपस्यायों में जुटे रहते थे, उन्हे मैं बता देता और वें भी जान जाते कि अब उनके वंशज उलूक पूजक हो गए हैं.
हमें अब अन्धेरा अधिक प्रिय हो गया है. पर्दे के पीछे कोई कार्य बडी सफाई से हो सकता है और होता है. हम तो उसके रोज आने जाने से भी आजिज आ गए हैं. यदि वह कुछ देर करके आया करे और कुछ जल्दी चले जाया करे तो हम अधिक पसन्द करेंगें. तब हम उसके लिए धन्यवाद भी देंगें और यह भी बता देंगें कि वह घबराए नहीं, निश्चिंत रहे, हम प्रगति की ओर बढते जा रहे हैं................
I Know the Better Course But I Follow The Worse

19 टिप्‍पणियां:

P.N. Subramanian ने कहा…

सुन्दत व्यंगात्मक आलेख. अभी अभी ही एक ब्लॉग पर पढ़ा की मालद्वीप के लोग अँधेरे में ही खाना खाते हैं. सूर्य की आराधना के लिए मन्त्र "अरुणं" यहाँ से डाउनलोड कर सकते हैं:
http://www.vedamantram.com/

बेनामी ने कहा…

टट्टूओं पर चलने वाले, घोड़ों का महत्व क्या जाने !
फट्टूओं के संग रहने वाले, वीरों का महत्व क्या जाने !
बिजली के लट्टूओं में जीने वाले, सूरज का महत्व क्या जाने !!

naresh singh ने कहा…

पंडितजी लगता है आप पर भी अँधेरे का असर हो रहा है |

राज भाटिय़ा ने कहा…

वत्स जी बहुत सुंदर लिखा लेकिन यह संदेश आम आदमी नही समझता, वेसे स्वीडन मै तो सुर्य देवता ६ महीनो बाद आते है, ओर फ़िर ६ महीने डटे रहते है, कभी आओ तो आप को दिखाये

बेनामी ने कहा…

पंडित जी/ इस पोस्ट के जरिए आपने बेहद सटीक व्यंग्य कसा है/ इन्सान जिसे प्रगति का पथ समझ रहा है, हकीकत में वो प्रगति नहीं विनाश की पथ है/ लेकिन इन्सान भला कहाँ समझा है/
प्रणाम/

बेनामी ने कहा…

पंडित जी/ इस पोस्ट के जरिए आपने बेहद सटीक व्यंग्य कसा है/ इन्सान जिसे प्रगति का पथ समझ रहा है, हकीकत में वो प्रगति नहीं विनाश की पथ है/ लेकिन इन्सान भला कहाँ समझा है/
प्रणाम/

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

हम तो पक्के उल्लू हो चुके हैं आजकल,:)

रामराम.

Amit Sharma ने कहा…

कितने सटीक शब्दों में आप हर बार धारदार बात कहतें है, यह है व्यंग विधा का उज्जवल उदहारण. पर आजकल आस्था केन्द्रों पर उलजुलूल लिखने को व्यंग कहा जा रहा है और लोग उसे श्रेष्ट,उत्तम आदि विशेषणों से नवाज कर प्रसन्न हो रहें है .कहीं टी.वी. पर बकवास देख कर हम हँस हँस कर मुर्ख बने जा रहे है. इन सबके बीच आप जैसे लेखकों की कलम से साहित्य की हर विधा के उत्तम दर्शन हो जातें है.


प्रतुल जी ने आपसे अपने कुछ प्रश्नों का समाधान माँगा है. यदि समय निकाल सकें तो उनके साथ-साथ मेरे जैसों का भी भला हो जायेगा.

kshama ने कहा…

Jadon ka mausam isiliye to hai...Aditya narayan der se padharte hain aur jaldi laut jate hain!

Arvind Mishra ने कहा…

सुन्दर कामना!

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

अंधेरा कायम रहे,,, जैसा डायलाग कहीं सुना था.. महत्व आज पता चला :)
असत से सत की तरफ चलना और अन्धकार से प्रकाश की तरफ यही हमारा ध्येय होना चाहिये...

Udan Tashtari ने कहा…

कर्मों के हिसाब से अँधेरा जरा ज्यादा सुविधाजनक लगता है..बेहतरीन कटाक्ष!

वाणी गीत ने कहा…

उजाला मन का बिखरा रहे तो सूरज देर से आये या जल्दी ,
मन में अँधेरा हो तो सूरज नजर कहाँ आता है ...!
अच्छा व्यंग्य !

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

I Know the Better Course But I Follow The Worse
ओह ! तो ये बात थी , हेडिंग पढ़कर मैं तो समझा थी कि पंडित जी आलसी हुए जा रहे है :)

vandana gupta ने कहा…

बेहतरीन व्यंग्य……………चिराग दिल का जलाना जरूरी है।

रचना दीक्षित ने कहा…

अच्छा कटाक्ष!जहाँ मन में उजियाला हो वहां सूरज हो या न हो उजियाला ही रहता है

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

व्यंग्य बहुत ही सटीक रहा!
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बधाई!
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दो दिनों तक नेट खराब रहा! आज कुछ ठीक है।
शाम तक सबके यहाँ हाजिरी लगाने का

दिगम्बर नासवा ने कहा…

अंधेरे हमें रास आने लगे हैं .....
मुकेश का गाया ये गीत याद आ गया अनायास ही ..... पर आपने यथार्थ लिखा है ...

Alpana Verma ने कहा…

'आज हम उलूक पूजक हो गए हैं'यह वास्तविकता ही है.

www.hamarivani.com
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