युग बीते, समय बदला लेकिन आज भी राम और रावण की सेनाएं आमने-सामने खडी हैं. एक ओर सदाचार एवं सदवृति, दूसरी ओर अनैतिकता, भ्रष्टाचार, अज्ञान, अहंकार और तमस.
विरथ राम और रथी रावण में आज भी युद्ध हो रहा है. निष्ठावान, कर्तव्य परायण, सदाचारी पीछे की पंक्ति में और अवसरवादी, भ्रष्टाचारी, पद लोलुप, दुराचारी उन्हे धक्का देकर जीवन के हरेक क्षेत्र में आगे बढकर अग्रिम पंक्ति में अग्रसर हैं. युद्ध चल रहा है....कईं युग बीत गए लेकिन आज तक न तो राम ही थका है और न रावण नें ही अपनी पराजय स्वीकार की है. युद्ध चलता रहा है, चल रहा है और प्रलयकाल तक भी ये युद्ध ऎसे ही चलता रहने वाला है
तो फिर राम-राज्य कब आएगा ? क्या आ पाएगा ? रावण के जीवित रहते भला राम-राज्य कभी आ सकता है ? नहीं! राम-राज्य तो तभी आ पायेगा, जब कि सचमुच रावण का अन्त हो जाए, वो भी लकडी और कागज के रावण का नहीं मन के रावण का, अहंकार के रावण का, अज्ञान, दुर्बुद्धि और कुसंस्कारों के रावण का.
यदि आप चाहते हैं कि इस युद्ध में राम की विजय हो और रावण मारा जाए तो उसके लिए आवश्यकता है---राम के आदर्शों को चरितार्थ करने की. सिर्फ पुतला दहन से भला क्या होगा ? कुछ नहीं.....भला ऎसे भी कहीं ये रावण मरने वाला है ? उसके लिए आवश्यकता इस बात की है कि-------राम का व्यापक आदर्श कर्म-रूप में सामने लाया जाए. रामचरित का पाठ बहुत हो चुका, माला, धूप-दीप, फूल मात्र से राम की पूजा भी बहुत कर चुके. अब समय है कि उनके संकल्प, आदर्श और जीवन दर्शन को अपनाया जाए. स्वकर्मण अभ्यर्च के मन्त्र की आज घर-घर में आवश्यकता है. सत्वस्थ होकर ही ऊर्घ्व की ओर मानव बढ सकता है------अन्यथा नहीं !
अगर ये न कर पाए तो फिर करते रहिए हर साल यूँ ही इस कागजी रावण का दहन, मनाते रहिए विजयदशमी.......लेकिन ये रावण न आजतक मरा है और न ही कभी मर पाएगा....ये फिर भी आपको वहीं खडा मिलेगा, उसी जलते हुए श्मशान में अट्ठहास करता......
20 टिप्पणियां:
बढ़िया प्रस्तुति।
कहां मरा, दिन-ब-दिन बढ़ता ही जा रहा है...
पंडित जी, राम और रावण तो इन्सान के अन्दर ही है/ बाहर पुतले फूँकने से कहीं अन्दर का रावण मरा करता है/
अच्छी प्रस्तुति/
प्रणाम/
पंडित जी, राम और रावण तो इन्सान के अन्दर ही है/ बाहर पुतले फूँकने से कहीं अन्दर का रावण मरा करता है/
अच्छी प्रस्तुति/
प्रणाम/
पुतला फूँकत जग मुआ
रावण मरा ना कोय
जो फूँके निज अहंकार
रावण क्यूँ पैदा होय।
प्रमोद ताम्बट
भोपाल
www.vyangya.blog.co.in
http://vyangyalok.blogspot.com
व्यंग्य और व्यंग्यलोक
On Facebook
3.5/10
औसत पोस्ट
नयेपन का सर्वथा अभाव
कब मरेगा यह रावण......
विजयादशमी की बहुत बहुत बधाई
विजय दशमी की आप सब को बधाई और शुभ कामनाएँ|
@ उस्ताद जी,
चाहे किसी ओर को कैसा भी लगे, लेकिन हमें आपका ये अन्दाज बहुत भाया. कम से कम इसी बहाने अपने लेखन की निष्पक्ष भाव से समीक्षा तो हो जाती है. अपने लेखन की त्रुटियों को जानना भविष्य के लेखन हेतु मार्गदर्शन का कार्य करता है.
आपका बहुत बहुत धन्यवाद/
अभी सूर्यास्त के बाद मेरे शहर में पुतली जला है रावण का।
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यह बात और हे कि अंधेरे में पहचान नही पाये कि रावण ही था या कोई और था!
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असत्य पर सत्य की विजय के पावन पर्व
विजयादशमी की आपको और आपके परिवार को
बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!
हम प्रतीक जीवी हैं. सचमुच के रावण को मारना हमारी फितरत ही नहीं है.
दशहरा मुबारक पंडित जी!
हम भी जनाब वर्मा जी की बात ही दोहराना चाहेंगें कि हम सदियों से प्रतीकजीवी ही रहे हैं! इसलिए रावण कभी मर ही नहीं सकता!
विजयदशमी की आपको बहुत बहुत बधाई !
bahut sahi sawaal hai ...
kewal in prathaon ko nibhane se kuch nahi hoga ...
zaroorat hai is pratha ke peeche chipi baat ko samjhne kee...
रावण अभी मरा नहीं है उसका अकार जरूर बढ़ ग्या है |
वत्स जी, आपकी बातों ने दिल को छू लिया।
काश, रावण सचमुच मर गया होता।
पंडित जी,
आपके सुझाव से उपजी यह कविता!!
सद् भावना के रंग, बैठें जो पूर्वाग्रही संग।
संगत की रंगत तो, अनिच्छा ही लगनी हैं॥
जा बैठे उद्यान में तो, 'महक' आये फ़ूलों की।
कामीनी की सेज़ बस, कामेच्छा ही जगनी है॥
काजल की कोठरी में, कैसा भी सयाना घुसे।
काली सी एक रेख, निश्चित ही लगनी है॥
कहे कवि 'सुज्ञ'राज, इतना तो कर विचार।
कायर के संग सुरा की, महेच्छा भी भगनी है॥
http://shrut-sugya.blogspot.com/2010/10/blog-post_18.html
मरेगा जरुर मरेगा उसे मरना की पडेगा अन्यथा किसी दिन कहने लगेगा कि मुझे नहीं मरना करलो जो तुम्हे दिखे । अव उंचाई बढाने की वजाय घटाना शुरु कर देना चाहिये। सुन्दर शिक्षाप्रद लेख संकल्प आदर्श और दर्शन को अपनाना ही चाहिये
सच कहा है ... फूस के रावण की बजाए अगर अंदर के रावण को फूँका जाय तो कब का राम राज्य आ जाता .,..
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