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गुरुवार, 21 अक्तूबर 2010

आओ भाई...शब्दों की जुगाली करें ( वादे वादे जायते तत्व बोध )

समाजवादी, राष्ट्रवादी, प्रगतिवादी, नारीवादी, गाँधीवादी, भौतिकवादी, तर्कवादी, संशयवादी, ईश्वरवादी, अनीश्वरवादी, विज्ञानवादी, अज्ञानवादी, बकवादी तथा ओर इनसे अलग भी जितने टाईप के वादी होते होंगें, सब के सब आपको यहाँ हिन्दी ब्लागिंग में मिल जाएंगें. जब इस तरह तरह के भान्ती भान्ती मत, विचारधारा और विश्वासों से जुडे लोग जहाँ जुट जाएं, वहाँ बहस और विवाद के सिवा भला ओर क्या होगा ? अनेक बातों में घोरतम मतभेद होने पर भी "ब्लागिंग" में इस बात पर मतैक्य या सर्वसम्मति है कि "वादे वादे जायते तत्व बोध" अर्थात बात-बात में 'बात' निकल आती है. इसलिए अनेक अवसरों पर तुमुल संघर्ष हो जाने पर भी यहाँ सदैव वाद-विवाद का क्रम बना ही रहता है.

जब कभी विवाद के लिए कोई विषय नहीं भी रहता, तब भी बिना विषय के विवाद चलता रहता है. ओर नहीं तो लोग कम-ज्यादा टिप्पणियों को लेकर ही विवाद शुरू कर देते हैं. अब खाली बैठे भी भला क्या करें. मन बहलाने के लिए कुछ न कुछ तो चाहिए ही न! यूँ भी विवाद के लिए इससे सुलभ विषय ओर हो ही क्या सकता है ? हींग लगे न फटकरी और रंग चोखा.

अपने मनमौजी राम जी, भले आदमी है.....लेकिन सैकुलरी चश्मा पहनते हैं, जो कि आजकल के जमाने में वाजिब भी है. उनका मानना है कि जब तक हम अपने इतिहास, अपने पूर्वज, अपनी तहजीब, अपने धर्म, अपने संस्कार, तथा और तो और अपने आप से भी घृणा नहीं करने लगेंगें, तब तक कोई भी क्रान्तिकारी परिवर्तन नहीं ला सकते और न ही देश और समाज को ही पुरानेपन की गन्दगी से उबार सकेंगें.

बेचारे दिन रात पश्चिम का "हनुमानचालीसा" बाँच रहे हैं, लेकिन आज तक अघाए नहीं. कहीं भी किसी ब्लाग पर धर्म, संस्कृति, आत्मा, परमात्मा, ज्योतिष, मन्त्र-तन्त्र,पूजा उपासना वगैरह का इन्होने नाम पढा नहीं कि इनकी हालात तो ऎसी हो जाती है कि क्या बतायें. बस तुरन्त ही ये उस ब्लागर से सींग फँसा बैठते हैं. उसके बाद बहस मुसाहिबे का कुछ ऎसा दौर शुरू होता है कि यूँ लगता है मानो एकदम से किसी नें मुर्दे में जान फूँक दी हो. उस समय ब्लागजगत की रौनक देखने वाली होती है, वर्ना तो ब्लागवाणी के जाने के बाद ब्लागिंग का सारा रस ही जाता रहा है, पूरे चिट्ठाजगत में हरदम मुर्दानी सी छाई रहती है.

अब "मनमौजी राम" जी, बेचारे जो पिछले कुछ दिनों से इसी खोजबीन में जुटे थे कि कहीं कोई ब्लागर आत्मा-परमात्मा, धर्म, संस्कृ्ति जैसी फालतू की मूर्खता पूर्ण हाँकता मिले तो उससे पंगा लिया जाए. कम से कम एक आध पोस्ट का जुगाड तो बने. अब लिखने के लिए आखिर रोज-रोज सामग्री लायें भी तो कहाँ से.

ऎ ल्यो! हम यहाँ बैठे ये सब लिख ही रहे हैं और मनमौजी राम जी की पोस्ट भी आ गई. शीर्षक तो चकाचक लगाया है---"आध्यात्मिक जुगाली" नाम से. अच्छा अब चलते हैं...देखें तो सही कि बन्धु आज किस से सींग फँसा बैठे :)

20 टिप्‍पणियां:

Amit Sharma ने कहा…

@ उनका मानना है कि जब तक हम अपने इतिहास, अपने पूर्वज, अपनी तहजीब, अपने धर्म, अपने संस्कार, तथा और तो और अपने आप से भी घृणा नहीं करने लगेंगें, तब तक कोई भी क्रान्तिकारी परिवर्तन नहीं ला सकते और न ही देश और समाज को ही पुरानेपन की गन्दगी से उबार सकेंगें.

# अब बिचारे मनमौजिराम को जो इतना लतिया दिए हो सबेरे सबेरे तो, खोज खबर तो लीजिये की किस कोने में सुबक रहें है :)

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

इन जैसे लोगों का यही काम है.. इन्हें सही रास्ते पर लाना हमारा काम है..

सुज्ञ ने कहा…

पंडित जी,

मेरे मन की बात छीन ली।

आध्यात्मिक जुगाली करते इन एक-कोशीय मांस के लौदों में भी अभिमान चेतना पता नहिं कहां से उत्पन्न होती है।

आत्म-तत्व से इन्कार, और ईश्वर सत्ता पर संशयवादी? अपने विचारों का दोगलापन भी छुपा नहिं पाते।

बेनामी ने कहा…

पंडित जी,ये तो आज के जमाने में कुछ लोगों का शगल हो चुका है/ आधुनिक बनना(दिखना) है तो आँख मूंदकर बस धर्म,संस्कृति का विरोध करते रहो/
प्रणाम/

बेनामी ने कहा…

पंडित जी,ये तो आज के जमाने में कुछ लोगों का शगल हो चुका है/ आधुनिक बनना(दिखना) है तो आँख मूंदकर बस धर्म,संस्कृति का विरोध करते रहो/
प्रणाम/

Unknown ने कहा…

जनाब आप भी कमाल करते हैं! जब युग नया आया है तो उसके साथ साथ सोच भी तो नई होनी चाहिए कि नहीं! मनमौजी राम जी सही कहते हैं कि आत्मा-वात्मा कुछ नहीं होती! अगर पहले कभी होती भी होगी तो अब नहीं होती! आज हम पूरी तरह से आत्माविहीन हो चुके हैं! युग बीतते बीतते तो बुद्धिविहीन भी हो जाएंगें :)

उस्ताद जी ने कहा…

6/10

मन को गुदगुदाता हुआ सुन्दर व्यंग.
ये जो जितने वादी आपने बताये हैं- समाजवादी, राष्ट्रवादी, प्रगतिवादी, नारीवादी... वगैरह-वगैरह लेकिन आप सर्व-प्रमुख अवसरवादी को भूल गए.

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" ने कहा…

@उस्ताद जी,
सही कहते हैं आप..इन्हे तो सर्वप्रमुखता मिलनी चाहिए थी ओर ये ही छूट गए :)

tension point ने कहा…

सैकुलरी चश्मा पहनते हैं, जो कि आजकल के जमाने में वाजिब भी है. उनका मानना है कि जब तक हम अपने इतिहास, अपने पूर्वज, अपनी तहजीब, अपने धर्म, अपने संस्कार, तथा और तो और अपने आप से भी घृणा नहीं करने लगेंगें, तब तक कोई भी क्रान्तिकारी परिवर्तन नहीं ला सकते

बेचारे दिन रात पश्चिम का "हनुमानचालीसा" बाँच रहे हैं,
मन मौजी लाल की खबर भी लेलेना भाईसाहब |

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

अब मौजीराम जी की मौज है. क्या किया जा सकता है? सींग फ़ंसा दिये तो तोडकर निकलवा दिजिये.:)

रामराम.

राजीव कुलश्रेष्ठ ने कहा…

bhaaI saahab ham sab yahan shabdon ki jugaali hi to kar rahe hain :)
rochak post.

ASHOK BAJAJ ने कहा…

बड़ी प्रेरणादायी बातें ;

ग्राम -चौपाल में पधारने के लिए आभार .

रत्नेश त्रिपाठी ने कहा…

अच्छी प्रस्तुति श्रीमान जी

मजा आया पढकर.
आभार.

ZEAL ने कहा…

मजेदार जुगाली। !

सुज्ञ ने कहा…

प्रस्तूति ने सफ़लता प्राप्त की, बधाई!!!;)
सही जगह जाकर 'लग'गई।
जुगाली अब कराह में बदल चुकी।
सुप्तात्मा को सबक!!

मुन्नी बदनाम ने कहा…

Hi Vats darling very powerful vyang article written by you. love you darling take care.

naresh singh ने कहा…

जुगाली करने से दांत घिसने का डर रहता है |

उस्ताद जी (असली पटियाला वाले) ने कहा…

इन नकली उस्ताद जी से पूछा जाये कि ये कौन बडा साहित्य लिखे बैठे हैं जो लोगों को नंबर बांटते फ़िर रहे हैं? अगर इतने ही बडे गुणी मास्टर हैं तो सामने आकर मूल्यांकन करें।

स्वयं इनके ब्लाग पर कैसा साहित्य लिखा है? यही इनके गुणी होने की पहचान है। क्या अब यही लोग छदम आवरण ओढे हुये लोग हिंदी की सेवा करेंगे?

दिगम्बर नासवा ने कहा…

पंडित जी इतने सारे वाद होते हैं .. पता ही नही था .... ग़ज़ब की व्यंग धार है आपकी ...

बेनामी ने कहा…

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