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शनिवार, 20 नवंबर 2010

हिँसा में जो शक्ति है, वह प्रेम में कहाँ.......

लोग 'प्रेम' की बात करते हैं, 'अमन' की बात करते हैं, 'करूणा' की बात करते हैं, लेकिन मैं कहता हूँ कि हिँसा में जो शक्ति है, वह न तो प्रेम में है, न अमन में,न शान्ती में और न ही करूणा, दया जैसी किसी भावना में है!

अतीत में बडे-से-बडे पैगम्बरों और अवतारों नें आपको प्रेम करना सिखाया है----मानवता से, सत्य से. जो पुण्य है उससे प्रेम करने की शिक्षा उन्होने दी है, परन्तु आपने अपने कईं हजार वर्षों के निरन्तर चलन से यह प्रमाणित करने की कीशिश की है कि आपकी हिँसा अमर है, प्रेम नहीं. जोर देने पर आप प्रेम को एक बाह्य परदे की भान्ती सामयिक तौर पर ओढ सकते हैं, परन्तु स्वतन्त्रता मिलते ही आप उस नकाब को नोच फैंकना चाहते हैं और फिर से अपनी मनचाही क्रीडाओं में व्यस्त हो जाते हैं. उस समय आप हर पिछली लडाई से अधिक भयंकर एक और लडाई लडते हैं, हिँसा की कालोत्पन सैरगाहों में मानवी रक्त के सुर्ख फुवारे आकाश-शिखर पर विजय पाने की कौशिश में लग जाते हैं और किसी शाहजहाँ की आँख से प्रेम और वफा के नाम पर बहाये गये उस एक आँसू-----ताजमहल को जमे हुए सफेद लहू से बनाये गये पाषाणों का एक ढेर-मात्र बना दिया जाता है.
मुझे विश्वास है कि यह सब इसलिए नहीं होता है कि आपको 'इन्सानियत' से बैर है(क्योंकि आखिर इन्सान आप स्वयं ही तो हैं और अपना विनाश किसी को प्रिय नहीं होता), बल्कि शायद आप यह सब कुछ इसलिए करते हैं कि आपको प्रेम,करूणा, दया के उपदेशों से ही घृणा है. एक मासूम बालक की भान्ती-----आपके प्राकृतिक मासूमपन अथवा निर्विकार होने और इस परम विशाल प्रकृति के उस अनदेखे सिरजनहार के सम्मुख आपके और अपने बचपने का मैं निरापद रूप से कायल हूँ------आप अपनी जिद मनवाने के लिए अपने निजि नुक्सान की भी चिन्ता नहीं कर रहे. अत: मनोविज्ञानवेत्ताओं के आधुनिक शिक्षानुसार मैं आप पर धर्मोपदेशों के कोडे फटकारने के बजाय आप ही की जिद्द मान लेता हूँ. आपकी बात रखने के लिए, मैं आपसे कहता हूँ कि आप ही की भावना ठीक है. इसी को फलने-फूलने दीजिए.

इस पोस्ट के जरिये मैं आपको हिँसा का संदेश देना चाहता हूँ, घृणा का सन्देश देना चाहता हूँ------वहशीपन से, बर्बरता और पाशविकता और अमानुषिकता के प्रति हिँसा एवं घृणा का संदेश. आपको घृणा ही करनी है तो इनसे घृणा कीजिए, हिँसा करनी हो तो इनके प्रति कीजिए और इस प्रकार आप घृणा और हिँसा के पथ से ही सत्य-मार्ग पर आ जायेंगें. आपको आखिर हिँसा ही तो चाहिए---तो फिर कीजिए हिँसा. जी भर कर कीजिए.
हिँसा,वध और हर पुण्य-भावना का स्तीत्व नष्ट करने का आपका यह शौक जब अपनी चरम सीमा को पहुँच जाएगा तो उसका एकमात्र परिणाम हमारे एक मित्र के शब्दों में कहूँ, तो सिर्फ यही हो सकता है कि------"इन कातिल कौमों के घर भविष्य में बच्चों की जगह भेड, बकरियाँ ही पैदा हों---माँस के लोथडे ही इस कौम की कोख से जन्म लें; और फिर सारी की सारी कौम किसी पापी के जमीर की भान्ती, अपने ही आंतक और घृणा के मारे दरियायों में कूद-कूदकर मर जाए-----"

इन कटु शब्दों को लिखकर अगर मैने बुनियादी तौर पर इस परिणाम, इस हिंस्र पाशविकता, इस अमानुषिकता के विरूद्ध आपके ह्रदय में थोडी सी भी हिँसा पैदा कर दी हो, तो मैं अपने आपको कृतकार्य्य समझूँगा. निश्चय ही बर्बरता के प्रति की गई यह हिँसा आपको मानवता के निकटतर ले आएगी. मैं दिल से चाहता हूँ कि यहाँ लिखे गए इन कटु शब्दों की सान पर चढकर आपकी उस हिँसा की तलवार को इतनी तीखी धार मिल जाए कि फिर भविष्य में जब कभी किसी निरीह पशु की गर्दन तक आपका छुरा पहुँचने लगे, तो वही तेज कटार आपके उस उठते हुए हाथ को काट डाले, शब्दों का यह लोहा उस कटार के लोहे को कुण्ठित कर दे, तो मैं समझूंगा कि इस बारे में ब्लाग पर आकर हमारा ये सब लिखना सफल हुआ.
****************
ऊपर की पंक्तियाँ किसी धर्म विशेष को आधार में रखकर नहीं लिखी गई, बल्कि उन लोगों के लिए लिखी गई हैं जो हिँसा, क्रूरता, पाशविकता की प्रभुता में विश्वास रखते हैं.
उनके अतिरिक्त और लोग भी हैं जो दूसरी सीमा पर हैं, उस सीमा पर जहाँ मन के लड्डुओं के सिवा और कुछ है ही नहीं, जहाँ प्रेम के सोते फूटते हैं,जहाँ करूणा का सागर हिल्लोरे ले रहा हो, हठधर्मिता, कलुषता और निर्दयता  की दलदल से दूर.....उनके लिए होगी हमारी आगामी पोस्ट.
(प्रस्तुत पोस्ट अमित शर्मा जी की कल की इस पोस्ट की उपज हैं)
ज्योतिष की सार्थकता
धर्म यात्रा

19 टिप्‍पणियां:

naresh singh ने कहा…

एक बार और पढ़ना पडेगा मेरे मोटे भेजे में बात कुछ समझ में नहीं आ रही है |पाप की बदली जब भर जाती है तभी धर्म की बरसात होती है |

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" ने कहा…

बेहतरीन लेख !

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

काश कि कुछ लोग समझ सकें...

PN Subramanian ने कहा…

आपकी यह पोस्ट बड़ी अच्छी लगी.

सुज्ञ ने कहा…

अधोगमन आह्वान, चलो अमानुषिकता की ओर………

Satish Saxena ने कहा…

बहुत खूब पंडित जी आज आपने बड़े मन से लिखा है ! यादगार पोस्ट! मगर समझेगा कौन ?

बेनामी ने कहा…

पंडित जी, बडे बडे महापुरूष,अवतार, पीर-पैगम्बर समझाते समझाते चले जाए/ लेकिन इन निर्बुद्धियों के मन में ज्ञान का प्रकाश न फैला सके तो भला ब्लाग पर लिखे को पढकर ये लोग समझ जायेंगें/ माफी चाहूँगा, ऎसा सोचना भी एक तरह से पागलपन ही है/
मेरा लिखा कोई शब्द गलत लगे तो कृप्या अपना बालक समझ कर क्षमा कर दीजिएगा/
प्रणाम/

बेनामी ने कहा…

पंडित जी, बडे बडे महापुरूष,अवतार, पीर-पैगम्बर समझाते समझाते चले जाए/ लेकिन इन निर्बुद्धियों के मन में ज्ञान का प्रकाश न फैला सके तो भला ब्लाग पर लिखे को पढकर ये लोग समझ जायेंगें/ माफी चाहूँगा, ऎसा सोचना भी एक तरह से पागलपन ही है/
मेरा लिखा कोई शब्द गलत लगे तो कृप्या अपना बालक समझ कर क्षमा कर दीजिएगा/
प्रणाम/

Arvind Mishra ने कहा…

अमित की पोस्ट के बाद यह प्रतिक्रिया सहज है

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

ईश्वर आपको शक्ति दें!

S.M.Masoom ने कहा…

हमारा देश भारतवर्ष अनेकता में एकता, सर्वधर्म समभाव तथा सांप्रदायिक एकता व सद्भाव के लिए अपनी पहचान रखने वाले दुनिया के कुछ प्रमुख देशों में अपना सर्वोच्च स्थान रखता है, परंतु दुर्भाग्यवश इसी देश में वैमनस्य फैलाने वाली तथा विभाजक प्रवृति की तमाम शक्तियां ऐसी भी सक्रिय हैं जिन्हें हमारे देश का यह धर्मनिरपेक्ष एवं उदारवादी स्वरूप नहीं भाता. .अवश्य पढ़ें धर्म के नाम पे झगडे क्यों हुआ करते हैं ? हिंदी ब्लॉगजगत मैं मेरी पहली ईद ,इंसानियत शहीद समाज को आज़ाद इंसान बनाया करते हैं
ब्लोगेर की आवाज़ बड़ी दूर तक जाती है, इसका सही इस्तेमाल करें और समाज को कुछ ऐसा दे जाएं, जिस से इंसानियत आप पे गर्व करे.

kshama ने कहा…

निश्चय ही बर्बरता के प्रति की गई यह हिँसा आपको मानवता के निकटतर ले आएगी.
Bahut badhiya tareeqese aapne apni baat kahee hai!

Unknown ने कहा…

शर्मा साहेब! इस बेहतरीन आलेख की जितनी तारीफ की जाए कम है! हकीकत में आज मनुष्य शनै: शनै: मनुष्यता को छोड पशुता की ओर बढता जा रहा है! सोचता हूँ कि कहीं ये कलयुग का चरम काल तो नहीं!

S.M.Masoom ने कहा…

हमारा देश भारतवर्ष अनेकता में एकता, सर्वधर्म समभाव तथा सांप्रदायिक एकता व सद्भाव के लिए अपनी पहचान रखने वाले दुनिया के कुछ प्रमुख देशों में अपना सर्वोच्च स्थान रखता है, परंतु दुर्भाग्यवश इसी देश में वैमनस्य फैलाने वाली तथा विभाजक प्रवृति की तमाम शक्तियां ऐसी भी सक्रिय हैं जिन्हें हमारे देश का यह धर्मनिरपेक्ष एवं उदारवादी स्वरूप नहीं भाता. .अवश्य पढ़ें धर्म के नाम पे झगडे क्यों हुआ करते हैं ? हिंदी ब्लॉगजगत मैं मेरी पहली ईद ,इंसानियत शहीद समाज को आज़ाद इंसान बनाया करते हैं
ब्लोगेर की आवाज़ बड़ी दूर तक जाती है, इसका सही इस्तेमाल करें और समाज को कुछ ऐसा दे जाएं, जिस से इंसानियत आप पे गर्व करे.

उस्ताद बाल गोविन्द ने कहा…

हे ब्राह्मण श्रेष्ट ,
९.७५/१०
सुन्दर विचार !




क्या आप जानते हैं कि उस्ताद जी वास्तव में अत्यधिक दुबले पतले मरियल से दिखते हैं ?
क्या आप जानते हैं कि उस्ताद जी अपने असली ब्लॉग में बिजनेसमैन बने हुए हैं ?
क्या आप जानते है कि उस्ताद जी के सच्चे नाम से लाईट का क्या सम्बन्ध है ?
क्या आप जानते हैं कि उस्ताद जी के असली ब्लॉग में उनका साइड पोज वाला फोटो लगा है ?
क्या आप जानते हैं कि उस्ताद जी कानों के ऊपर बालों वाला फोटो बहुत पसंद करते हैं ?
क्या आप जानते हैं कि उस्ताद जी मोहल्ला होशियारपुर ग्राम लखनऊ में रहते हैं ?
क्या आप जानते हैं कि उस्ताद जी बोध कथाओं को हास्य कथा मानते हैं ?
क्या आप जानते हैं कि उस्ताद जी अपने फर्जी ब्लॉग में माडरेशन लगाये हुए हैं ?
क्या आप जानते हैं कि उस्ताद जी का गोविन्द से क्या सम्बन्ध है ?
क्या आप जानते हैं कि उस्ताद जी पहेलियाँ किस नाम से बूझते हैं ?
क्या आप जानते हैं कि उस्ताद जी फर्जी आई डी क्यों बनाये हुए हैं ?

दिगम्बर नासवा ने कहा…

वत्स जी .. . दुनिया इतिहास तो यही बताता है की हिंसा के जरिये आसानी से काम हो जाता है ... लोग डर के मरे सब काम करते हैं ... प्यार से कोई कुछ नहीं करता ... पर क्या करें हमारे संस्कार .... आप ही कुछ बदलाव लायें ... पंडितों की बात सब मानते हैं ...

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" ने कहा…

@ उस्ताद बाल गोविन्द जी
बख्शिये हजूर! हम कुछ नहीं जानते महाराज और न ही हमारे पास इतनी बुद्धि है कि आपकी इस पहेली को बूझ पाएं :)

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" ने कहा…

"आप ही कुछ बदलाव लायें ... पंडितों की बात सब मानते हैं..."

दिगम्बर जी,
आप भी अच्छा मजाक कर लेते हैं. लोग जिसे "ईश्वर की वाणी" "प्रभु की वाणी" कह कह कर दिन रात एक किए दे रहे हैं, उसकी नहीं मान रहे तो आप उम्मीद करते हैं कि वो एक पंडित का कहा मान जाएंगें :)
अगर "खुदा" भी जमीं पर उतर आए तो शायद वो भी हाथ खडे दे कर कि भईया इन शैतानों को समझाना मेरे बस की बात नहीं :)

संजय @ मो सम कौन... ने कहा…

धन्य हो महाराज:)
इस दुनिया को देखने का हरेक का अपना नजरिया है। वैसे कई बार शीर्षासन करते समय यह उल्टी दुनिया सीधी दिखती है, है न?

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