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रविवार, 19 दिसंबर 2010

दिल छोटे और झोलियाँ बडी.......

आज बहुत दिनों के बाद मन्दिर जाना हुआ.कोई पूजा-पाठ करने के विचार से नहीं---बस यूँ ही, टहलने निकले तो खुद-ब-खुद कदम उधर को उठ पडे. गया तो क्या देखता हूँ---भिखारियों, व्यापारियों और खुशामदी पिट्ठुओं की रेलमपेल मची हुई है. बाप रे! इतनी भीड! अमीर-गरीब, औरत-मर्द, विद्यार्थी, व्यापारी, प्रेमी-माशूक, रोगी, सभी माँगने में जुटे हैं.ये नहीं कि हम ईश्वर से प्रेम करना सीखे, उल्टे जिसे देखो हाथ फैलाये वही कुछ न कुछ बस माँगने में जुटा है........लगता है दिन-ब-दिन लोगों के दिल छोटे होते जा रहे हैं और झोलियाँ बडी!
मन ही मन पत्थर की मूरत में छिपा 'वो' भगवान भी जरूर सोचता होगा-----यार! आजिज आ गया इन दरिद्रों से!
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ज्योतिष की सार्थकता
धर्म यात्रा

19 टिप्‍पणियां:

सुज्ञ ने कहा…

शानदार अवलोकन,

दिल छोटे होते जा रहे हैं और झोलियाँ बडी!!!!

वाकई कर्मण्यता अकर्मण्यता में बदल रही है।

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

सही बात है..

anshumala ने कहा…

आप को आज दिख रहे है मुझे तो हमेसा से ही मंदिरों में भिखारी ही ज्यादा दिखते है | जो कुछ ना कुछ मांगने के उद्देश्य से ही आये होते है |

naresh singh ने कहा…

दाता एक राम भिखारी सारी दुनिया.... |इस प्रकार के दरिद्र सब होना चाहते है |

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून ने कहा…

एक दम दुरूस्त.
और फिर वहीं जाकर क्यों मांगना.
अर्जी तो कहीं से भी लगाई जा सकती है, अगर बाज न ही आना हो तो.

बेनामी ने कहा…

शानदार विचार पंडित जी
प्रेम दुनिया में अब बचा ही कहां है जो लोग ईश्वर को प्रेम कर सकें/बस हर तरफ स्वार्थ ही स्वार्थ दिखता है/
प्रणाम/

दीपक "तिवारी साहब" ने कहा…

सही कहा पंडितजी, एक बार हम भी मंदिर में गये. वहां एक गरीब आदमी भगवान जी महाराज को प्रार्थना कर रहा था कि हे भगवान मेरे बच्चे को बुखार हुआ है उसकी दवाई के लिये पचास रूपये का जुगाड करवा दे.

और उसी समय एक करोडपति हाथ जोडे खडा था कि ये आदमी कब यहां से टले और वो अपनी पीडा भगवान को सुनाये. और गरीब आदमी वहां से हटे नही.

आखिर देर होती देख कर करोडपति गुस्से मे आगया और पचास का नोट निकाल उस गरीब को दिया और बोला - तू जा यार, एक घंटा होगया भगवान जी का माथा खाते हुये, हमको बात करनी है अब.

गरीब की प्रार्थना तो सुब ली गई, अब करोडपति बोला - हे भगवान, मुझे कल ही पचास करोड की सख्त जरूरत है नही तो मेरा दिवाला निकल जायेगा, जैसे ही मेरा काम हो जायेगा मैं तेरे को सोने का मुकुट चढवाऊंगा.

अब पता नही उस करोडपति का काम हुआ कि नही पता नही.

रामराम.

दीपक "तिवारी साहब" ने कहा…

सही कहा पंडितजी, एक बार हम भी मंदिर में गये. वहां एक गरीब आदमी भगवान जी महाराज को प्रार्थना कर रहा था कि हे भगवान मेरे बच्चे को बुखार हुआ है उसकी दवाई के लिये पचास रूपये का जुगाड करवा दे.

और उसी समय एक करोडपति हाथ जोडे खडा था कि ये आदमी कब यहां से टले और वो अपनी पीडा भगवान को सुनाये. और गरीब आदमी वहां से हटे नही.

आखिर देर होती देख कर करोडपति गुस्से मे आगया और पचास का नोट निकाल उस गरीब को दिया और बोला - तू जा यार, एक घंटा होगया भगवान जी का माथा खाते हुये, हमको बात करनी है अब.

गरीब की प्रार्थना तो सुब ली गई, अब करोडपति बोला - हे भगवान, मुझे कल ही पचास करोड की सख्त जरूरत है नही तो मेरा दिवाला निकल जायेगा, जैसे ही मेरा काम हो जायेगा मैं तेरे को सोने का मुकुट चढवाऊंगा.

अब पता नही उस करोडपति का काम हुआ कि नही पता नही.

रामराम.

दीपक "तिवारी साहब" ने कहा…

सही कहा पंडितजी, एक बार हम भी मंदिर में गये. वहां एक गरीब आदमी भगवान जी महाराज को प्रार्थना कर रहा था कि हे भगवान मेरे बच्चे को बुखार हुआ है उसकी दवाई के लिये पचास रूपये का जुगाड करवा दे.

और उसी समय एक करोडपति हाथ जोडे खडा था कि ये आदमी कब यहां से टले और वो अपनी पीडा भगवान को सुनाये. और गरीब आदमी वहां से हटे नही.

आखिर देर होती देख कर करोडपति गुस्से मे आगया और पचास का नोट निकाल उस गरीब को दिया और बोला - तू जा यार, एक घंटा होगया भगवान जी का माथा खाते हुये, हमको बात करनी है अब.

गरीब की प्रार्थना तो सुब ली गई, अब करोडपति बोला - हे भगवान, मुझे कल ही पचास करोड की सख्त जरूरत है नही तो मेरा दिवाला निकल जायेगा, जैसे ही मेरा काम हो जायेगा मैं तेरे को सोने का मुकुट चढवाऊंगा.

अब पता नही उस करोडपति का काम हुआ कि नही पता नही.

रामराम.

दीपक "तिवारी साहब" ने कहा…

भूल सुधार :

सुब = सुन

पढा जाये।

राज भाटिय़ा ने कहा…

वत्स जी इन दीपक तिवारी साहब को भी मंदिर मे छोड कर आना पडेगा, एक ही टिपण्णी तीन बार गलती फ़िर भी,
वेसे एक सवाल हे कि मंदिर मै भगवान हे भी या नही?

vandana gupta ने कहा…

कब तक बेचारा वो भी झेलेगा कभी तो यही कहेगा ही।

इस बार के चर्चा मंच पर आपके लिये कुछ विशेष
आकर्षण है तो एक बार आइये जरूर और देखिये
क्या आपको ये आकर्षण बांध पाया ……………
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (20/12/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.uchcharan.com

दिगम्बर नासवा ने कहा…

क्या करें बिचारे उनको भी तो भगवान् का ही आसरा है ... वो जाएँ तो कहाँ जाएँ ..

अनुपमा पाठक ने कहा…

सच! प्रार्थना के मायने बदल गए हैं!

VICHAAR SHOONYA ने कहा…

sahi kaha

Kunwar Kusumesh ने कहा…

हेडिंग अच्छी और बिंदु सचमुच विचारणीय

वीरेंद्र सिंह ने कहा…

आपसे पूरी तरह सहमत हूँ। सार्थक पोस्ट।

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

अति सुंदर।

---------
अंधविश्‍वासी तथा मूर्ख में फर्क।
मासिक धर्म : एक कुदरती प्रक्रिया।

सुज्ञ ने कहा…

आपको तो सदैव ही हमारी शुभकामनाएं रहती है यह पाश्चात्य नव-वर्ष का प्रथम दिन है, अवसरानुकूल है आज शुभेच्छा प्रकट करूँ………

आपके हितवर्धक कार्य और शुभ संकल्प मंगलमय परिपूर्ण हो, शुभाकांक्षा!!

आपका जीवन ध्येय निरंतर वर्द्धमान होकर उत्कर्ष लक्ष्यों को प्राप्त करे।

www.hamarivani.com
रफ़्तार