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गुरुवार, 31 मार्च 2011

माँसाहार अर्थात वैश्विक अशान्ति का घर

माँसाहार को अगर "अशान्ति का घर" कहा जाये, तो शायद कुछ गलत नहीं होगा. डा. राजेन्द्र प्रसाद जी नें एक बार कहा था कि "अगर संसार में शान्ति कायम करनी है तो उसके लिए दुनिया से माँसाहार को समाप्त करना होगा. बिना माँसाहार पर अंकुश लगाये ये संसार सदैव अशान्ति का घर ही बना रहेगा".

डा. राजेन्द्र प्रसाद जी नें कितनी सही बात कही है. ये कहना बिल्कुल दुरुस्त है कि माँसाहार के चलते दुनिया में शान्ति कायम नहीं रह सकती. शाकाहारी नीति का अनुसरण करने से ही पृथ्वी पर शान्ति, प्रेम, और आनन्द को चिरकाल तक बनाये रखा जा सकता है, अन्यथा नहीं.
पश्चिमी विद्वान मोरिस सी. किघली का भी कुछ ऎसा ही मानना है. उनके शब्दों में कहा जाए, तो " यदि पृथ्वी पर स्वर्ग का साम्राज्य स्थापित करना है तो पहले कदम के रूप में माँस भोजन को सर्वथा वर्जनीय करना होगा, क्योंकि माँसाहार अहिँसक समाज की रचना में सबसे बडी बाधा है".

आज जहाँ शाकाहार की महत्ता को स्वीकार करते हुए माँसाहार के जनक पश्चिमी राष्ट्रों तक में शाकाहार को अंगीकार किया जाने लगा है, उसके पक्ष में आन्दोलन छेडे जा रहे हैं, जिसके लिए न जाने कितनी संस्थायें कार्यरत हैं. पर अफसोस! भगवान राम और कृष्ण के भक्त, शाकाहारी हनुमान जी के आराधक, भगवान महावीर के 'जितेन्द्रिय', गुरू नानक जी के निर्मल चित्त के चित्तेरे, कबीर के 'अविनाशी' पद को प्राप्त करने की परीक्षा में लगे हुए साधक, महर्षि दयानन्द जी के अहिँसक आर्य समाजी और रामकृष्ण परमहँस के 'चित्त परिष्कार रेखे' देखने वाले इस देश भारत की पावन भूमी पर "पूर्णत: शुद्ध शाकाहारी होटलों" को खोजने तक की आवश्यकता आन पडी है. आज से सैकडों वर्ष पहले महान दार्शनिक सुकरात नें बिल्कुल ठीक ही कहा था, कि-----"इन्सान द्वारा जैसे ही अपनी आवश्यकताओं की सीमाओं का उल्लंघन किया जाता है, वो सबसे पहले माँस को पथ्य बनाता है.". लगता है जैसे सीमाओं का उल्लंघन कर मनुष्य 'विवेक' को नोटों की तिजोरी में बन्द कर, दूसरों के माँस के जरिये अपना माँस बढाने के चक्कर में लक्ष्यहीन हो, किसी अंजान दिशा में घूम रहा हो.......

आईये हम माँसाहार का परिहार करें-----"जीवो जीवस्य भोजनं" अर्थात जीव ही जीव का भोजन है जैसे फालतू के कपोलकल्पित विचार का परित्याग कर "मा हिँसात सर्व भूतानि" अर्थात किसी भी जीव के प्रति हिँसा न करें----इस विचार को अपनायें.

माँस एक प्रतीक है---क्रूरता का, क्योंकि हिँसा की वेदी पर ही तो निर्मित होता है माँस. माँस एक परिणाम है "हत्या" का, क्योंकि सिसकते प्राणियों के प्रति निर्मम होने से ही तो प्राप्त होता है--माँस. माँस एक पिंड है तोडे हुए श्वासों का, क्योंकि प्राण घोटकर ही तो प्राप्त किया जाता है--माँस. माँस एक प्रदर्शन है विचारहीन पतन का, क्योंकि जीवों के प्रति आदर( Reverence of Life) गँवाकर ही तो प्राप्त किया जाता है--माँस.
इसके विपरीत शाकाहार निर्ममता के विपरीत दयालुता, गन्दगी के विपरीत स्वच्छता, कुरूपता के विरोध में सौन्दर्य, कठोरता के विपरीत संवेदनशीलता, कष्ट देने के विपरीत क्षमादान, जीने का तर्क एवं मानसिक शान्ति का मूलाधार है. 

अब ये आप को सोचना है कि क्या आप अब भी माँस जैसे इस जड युगीन अवशेष से अपनी क्षुधा एवं जिव्हा लोलुपता को शान्त करते रहना चाहेंगें....................

11 टिप्‍पणियां:

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

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[माँस एक प्रतीक है---क्रूरता का, क्योंकि हिँसा की वेदी पर ही तो निर्मित होता है माँस. माँस एक परिणाम है "हत्या" का, क्योंकि सिसकते प्राणियों के प्रति निर्मम होने से ही तो प्राप्त होता है--माँस. माँस एक पिंड है तोडे हुए श्वासों का, क्योंकि प्राण घोटकर ही तो प्राप्त किया जाता है--माँस. माँस एक प्रदर्शन है विचारहीन पतन का, क्योंकि जीवों के प्रति आदर( Reverence of Life) गँवाकर ही तो प्राप्त किया जाता है--माँस.]

पंडित जी, आपने मांस की खिलाफत जिन शब्दों में की है वे अब तक सम्पूर्ण विरोध का सार है. निरामिष में दिये लेखों का सार है.

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सुज्ञ ने कहा…

माँसाहार के चलते दुनिया में शान्ति कायम नहीं रह सकती.

सटीक व सार्थक बात!!

इस प्रस्तुति के लिये आभार

Rajeysha ने कहा…

उत्‍तम वि‍चार।
दरअसल मांस खाने का मतलब है कि‍ आप कि‍सी जि‍न्‍दा चीज को खत्‍म कर उसे वस्‍तु बना रहें हैं, और फि‍र उसे खा रहे हैं।
कि‍सी जि‍न्‍दा चीज को वस्‍तु बना देना...क्‍या ठीक है? हमें नहीं लगता कि‍ अण्‍डा इसका अपवाद है?

Rakesh Kumar ने कहा…

सुन्दर,सार्थक, मन को आंदोलित करता है यह लेख.बहुत बहुत आभार इस सारगर्भित लेख के लिए.
समझ नहीं आता खाने के लिए हिंसा का सहारा क्यूँ.माँसाहार करने वाला तो अपने पेट को ही कब्रिस्तान बना देता है,जो मरे हुए जीवों का नहीं बल्कि खाने के नाम पर मारे गए जीवों का कब्रिस्तान है.जब पेट कब्रिस्तान होगा तो मन में भी भूत प्रेतों का ही निवास होगा,फिर कैसे कर सकतें हैं हम शांति की बातें.यदि करतें भी हैं तो वे सब बनावटी और बेमानी है.
लेकिन मेरा यहाँ शाकाहारी सज्जनो से भी अनुरोध है की तन को तो वो कब्रिस्तान बनाने से बचातें है पर मन को भी सुन्दर भावों और विचारों से सुन्दर बनायें.वर्ना शाकाहार को अपनाने का वरदान निष्फल हो जायेगा ,और माँसाहारी को इस कारण शाकाहार पर अंगुली उठाने का मौका मिलेगा .

बेनामी ने कहा…

पंडित जी आपके एक एक शब्द से सहमति है/ जब हम किसी को जीवन दे नहीं सकते तो भला जीवन ले लेने का अधिकार हमें किसने दिया?/ मेरी नजर में मांसभोजी ईश्वर द्वारा निर्मित इस सुन्दर संसार के विनाश का कार्य कर रहे है/
प्रणाम/

बेनामी ने कहा…

पंडित जी आपके एक एक शब्द से सहमति है/ जब हम किसी को जीवन दे नहीं सकते तो भला जीवन ले लेने का अधिकार हमें किसने दिया?/ मेरी नजर में मांसभोजी ईश्वर द्वारा निर्मित इस सुन्दर संसार के विनाश का कार्य कर रहे है/
प्रणाम/

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

प्रतुल जी की टिप्पणियों के साथ बाकी सभी टिप्पणियों से लेख को और अधिक रोचकता प्राप्त हुई है..

DR. ANWER JAMAL ने कहा…

अब हर कोई खा सकेगा मांस Take meat
वैज्ञानिकों की मानें तो जल्दी ही मांस को भी फल फूल और सब्ज़ियों की तरह पौधों पर उगाया जा सकेगा। मेडिकल यूनिवर्सिटी आॅफ़ साउथ कारोलिना के वैज्ञानिक पिछले दस वर्षों से इस बायो इंजीनियरिंग मांस को उगाने का प्रयास कर रहे हैं। वैज्ञानिकों का मानना है बायो इंजीनियरिंग मीट उगाने में सफलता हासिल करने से न केवल भविष्य में वैश्विक फ़ूड ज़रूरतें पूरी करने में मदद मिलेगी बल्कि इससे दिनोंदिन तेज़ी से सिकुड़ रहे उपजाऊ ज़मीन की उपलब्धता के झंझट से भी मुक्ति मिल सकेगी।
http://aryabhojan.blogspot.com/2011/02/take-meat.html

सुज्ञ ने कहा…

शाकाहारी तो छुएँगें भी नहीं, क्योंकि वह भी रक्त-माँस के जीवीत कोषों से ही पनपाया जाएगा। दुआ करो अपने लिये कि यह प्रयोग सफल हो। कमसे कम माँसाहारी बडी जीव हिंसा के भार से बच जाएंगे।

बेनामी ने कहा…

Intriguing article. I know I’m somewhat late in posting my comment however the article ended up being to the actual and just the details I'd been looking for. I can’t say that I trust whatever you mentioned nevertheless it was emphatically fascinating! BTW…I found your web site by way of a Google search. I’m a frequent visitor for a blog and may return again soon. Tramadol.

Kailash Sharma ने कहा…

आपकी बात से पूर्णतः सहमत हूँ..निरामिषता शांति, अहिंसा और सहअस्तित्व का प्रतीक है..बहुत सार्थक प्रस्तुति..

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रफ़्तार