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बुधवार, 11 फ़रवरी 2009

बेरोजगारी


एक डूबते हुए आदमी ने
पुल पर चलते हुए आदमी से
आवाज लगाई "बचाओ,बचाओ"
पुल पर चलते आदमी नें नीचे
रस्सी फैंकी ओर कहा "आओ"...

नदी में डूबता हुआ आदमी
रस्सा नहीं पकड पा रहा था
रह रह कर चिल्ला रहा था
"मैं मरना नहीं चाहता"
"जिन्दगी बहुत महगी है"
अरे! कल ही तो एक कंपनी में
मेरी नौकरी लगी है......

इतना सुनते ही पुल पर चलते
आदमी ने अपनी रस्सी खींच ली
ओर भागते भागते उस कंपनी में गया
जाते ही मालिक को बताया कि
एक आदमी अभी अभी डूब कर मर गया है
ओर इस तरह आपकी कंपनी में
एक जगह खाली कर गया है....

मैं बेरोजगार हूं, मुझे रख लो
मालिक बोला, अरे तुमने देर कर दी
अब से कुछ देर पहले
हमने उस आदमी को लगाया है
जो उसे धक्का देकर
तुमसे पहले यहां आया है.......

9 टिप्‍पणियां:

अनिल कान्त ने कहा…

हा हा हा हा ..... व्यंग्य के साथ एक कड़वी सच्चाई पेश की आपने ...


मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति

बेनामी ने कहा…

क्या बात है. मजा आ गया. आभार

योगेन्द्र मौदगिल ने कहा…

वाह महाराज कविता भी शुरू कर दी.............. ब धा ई........

राज भाटिय़ा ने कहा…

बहुत खुब,मजा आ गया जी, लेकिन हकिकत मै ऎसा कभी ना हो.
धन्यवाद

Anil Pusadkar ने कहा…

सटीक, देश मे व्याप्त बेरोजगारी पर इससे बेहतर कटाक्ष हो ही नही सकता,चड्डी तो कतई नही।

दिगम्बर नासवा ने कहा…

वाह वाह वत्स जी
क्या खूब रचना
हास्य, व्यंग, करुना, और जीवन की पीड़ा लिए ........
एक ही रचना में इतने सुंदर रंग डालें हैं आपने, बधाई

Atul Sharma ने कहा…

बधाई और शुभकामनाएं।

Science Bloggers Association ने कहा…

आपकी कविता में एक ऐसा व्‍यंग्‍य है, जो आज के जमाने की गहरी सच्‍चाई है। बधाई।

सिटीजन ने कहा…

खूब रचना
हास्य, व्यंग, करुना, और जीवन की पीड़ा लिए
सिटीजन: दया और प्रेम की प्रतिमूर्ति स्वामी दयानंद सरस्वती जयंती अवसर : समाज सुधारक ही नही वरन आजादी के भी दीवाने थे ?

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